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जंगलों में बड़ी आग लगी और ग्लेशियर तेजी से पिछले हैं।
साल 2022 में भी दुनिया कयामत से सिर्फ 100 सेकेंड दूर खड़ी है। दुनिया के चर्चित परमाणु वैज्ञानिकों ने पिछले साल की तरह इस साल भी डूम्सडे क्लॉक के समय में कोई बदलाव नहीं किया है। डूम्सडे क्लॉक को प्रलय की घड़ी कहा जाता है। दुनियाभर के शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक खतरों को देखते हुए 1947 से यह बताते आ रहे हैं कि दुनिया महाविनाश से कितना दूर है। गुरुवार को अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में सालाना डूम्सडे क्लॉक की घोषणा करते हुए वैज्ञानिकों ने कहा कि पूरी दुनिया पर तबाही का खतरा अब भी मंडरा रहा है।
डूम्सडे क्लॉक की प्रेसिडेंट और सीईओ रेचल ब्रोंसन ने बुलेटिन ऑफ एटमिक साइंटिस्ट में कहा कि यह घड़ी खतरनाक रूप से अपनी गति को बनाए हुए है। यह हमें याद दिलाता है कि एक सुरक्षित और स्वस्थ ग्रह को सुनिश्चित करने के लिए कितना काम करने की आवश्यकता है। हमें आधी रात से घड़ी की सुईयों को आगे बढ़ाना जारी रखना चाहिए। हम आधी रात के जितने करीब होंगे, हम उतने ही अधिक खतरे में होंगे। अभी यह समय 100 सेकेंड का है।
ऐसे मापते हैं खतरे का स्तर
'डूम्सडे क्लॉक' का यह आकलन युद्धक हथियारों, जलवायु परिवर्तन, विध्वंसकारी तकनीक, फेक विडियो, ऑडियो, अंतरिक्ष में सैन्य ताकत बढ़ाने की कोशिश और हाइपरसोनिक हथियारों की बढ़ती होड़ से मापा गया है। 'द बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स' (BAS) हर साल ऐसी रिपोर्ट जारी करती है। शीत युद्ध की समाप्ति पर 1991 में यह घड़ी मध्यरात्रि यानी विनाश से सबसे अधिक 17 मिनट की दूरी पर थी।
क्या है 'डूम्सडे क्लॉक'
डूम्सडे क्लॉक एक सांकेतिक घड़ी है जो मानवीय गतिविधियों के कारण वैश्विक तबाही की आशंका को बताती है। घड़ी में मध्यरात्रि 12 बजने को भारी तबाही का संकेत माना जाता है। 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में हुए हमले के बाद वैज्ञानिकों ने मानव निर्मित खतरे से विश्व को आगाह करने के लिए इस घड़ी का निर्माण किया गया था। इस घड़ी में मध्य रात्रि के 12 बजने के मायने हैं कि दुनिया का अंत बेहद नजदीक है, या दुनिया में परमाणु हमला होने की आशंका 100 प्रतिशत है।
परमाणु हथियार
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया परमाणु युग में है। नेताओं ने पिछले कई सालों में हथियारों की होड़ रोकने वाली कई संधियों को कमजोर किया है। इसके कारण दुनिया में परमाणु हथियारों की होड़ बढ़ी है। उत्तर कोरिया और ईरान की परमाणु हथियारों की होड़ पर अनिश्चितता है। अगर कहीं भी चूक हुई तो प्रलय तय है।
क्लाइमेट चेंज
क्लाइमेट चेंज पर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ी है। 2020-21 में पूरी दुनिया में पर्यावरण संरक्षण को लेकर काफी प्रदर्शन हुए हैं। सीओपी सम्मेलन में भी क्लाइमेट चेंज का मुद्दा उठा। पूरी दुनिया ने भविष्य के लिए पर्यावरण के संरक्षण की अहमियत को स्वीकारा लेकिन, अब भी कई देशों में इसे लेकर बहुत कम प्रयास हुए हैं। मनुष्यों के कारण हुए क्लाइमेट चेंज के कारण दुनिया काफी गर्म रही। जंगलों में बड़ी आग लगी और ग्लेशियर तेजी से पिछले हैं।
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