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जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए जीवाश्म ईधन के स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देना अहम कदम

Gulabi Jagat
28 April 2022 2:05 PM GMT
जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए जीवाश्म ईधन के स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देना अहम कदम
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जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने
सिडनी, पीटीआई: जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने के लिए जीवाश्म ईधन के स्थान पर नवीकरणीय ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देना अहम कदम है। ज्यादातर विज्ञानी, इंजीनियर, राजनेता और एक्टिविस्ट कह रहे हैं कि टेक्नोलाजी में इस समस्या का हल है। जीवनशैली, समाज और अर्थव्यवस्था में कोई बदलाव किए बिना, बस टेक्नोलाजी के दम पर 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को आधा और 2050 तक इसे शून्य करने यानी नेट जीरो का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
नेट जीरो का अर्थ है कि विभिन्न गतिविधियों में जितना कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन होगा, उतने कार्बन डाई आक्साइड के अवशोषण की व्यवस्था भी होगी। एक नए अध्ययन में इस अवधारणा पर सवाल उठाया गया है। आस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी आफ न्यू साउथ वेल्स के मार्क डिसेनडोर्फ ने इस अध्ययन को अंजाम दिया है। 50-75 प्रतिशत ऊर्जा का उपभोग कम करना होगा, यदि 2050 तक नेट जीरो का लक्ष्य पाना है। इसके लिए आदतों और सामाजिक नीतियों में बदलाव की जरूरत होगी।
टेक्नोलाजी की भी कुछ सीमाएं हैं
टेक्नोलाजी से काफी हद तक अक्षय ऊर्जा संसाधनों के प्रयोग और कार्बन उत्सर्जन कम करने की राह निकल सकती है, लेकिन इसकी भी सीमाएं हैं। वर्ष 2000 से 2019 के बीच अक्षय ऊर्जा के प्रयोग में अच्छी खासी वृद्धि के बाद भी इस अवधि में वैश्विक स्तर पर कुल ऊर्जा उपभोग में जीवाश्म ईधन की हिस्सेदारी कम होने के बजाय एक प्रतिशत बढ़ गई। सीधा सा अर्थ है कि ऊर्जा का कुल प्रयोग इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि उसे 2050 तक पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा स्रोतों से पूरा कर पाना संभव नहीं है। कोविड महामारी से पहले ऊर्जा उपभोग जिस गति से बढ़ रहा था, यदि वह गति बनी रही, तो अकेले टेक्नोलाजी कुछ नहीं कर पाएगी।
समय बहुत कम है
आंकड़ों से साफ है कि अक्षय ऊर्जा स्रोतों के विकास की गति कितनी भी तेज हो जाए, फिलहाल कुछ दशक तक जीवाश्म ईधनों का प्रयोग पूरी तरह खत्म कर पाना संभव नहीं है। नेट जीरो के लिए जो समयसीमा तय की गई है, वह बहुत कम है। इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें अन्य तरीकों को अपनाना होगा। व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर ऐसे कदम उठाने होंगे, जिनसे ऊर्जा का कुल उपभोग कम हो। इसमें अमीर देशों और उनके लोगों को ज्यादा गंभीरता से कदम उठाना होगा। रहने, खाने, पहनने, सफर करने से लेकर जीवन के हर कदम पर हमें संभालकर कदम रखना होगा।
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