अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति और खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरुल्ला सालेह ने पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़ने पर चुप्पी तोड़ी है. अशरफ गनी के देश छोड़ने को उन्होंने वादा तोड़ने वाला करार दिया है. अमरुल्ला सालेह ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति ने देश न छोड़ने की जुबान दी थी, लेकिन वह अपने वादे पर अडिग नहीं रह सके. अमरुल्ला सालेह ने तालिबान को भी ललकारा है. उन्होंने कहा कि अगर आतंकी गुट समझौता के लिए राजी नहीं हुआ और जंग का रास्ता चुनता है तो वो भी इससे पीछे नहीं हटेंगे.
अमरुल्ला सालेह ने बीबीसी वर्ल्ड न्यूज़ से बातचीच में कहा, 'अशरफ गनी ने कसम खाई थी कि अगर तालिबान एक "सम्मानजनक राजनीतिक समझौता" के लिए सहमत नहीं हुआ तो वह अपनी 'कुर्बानी' दे देंगे.' अमरुल्ला सालेह ने कहा कि तालिबान के अफगानिस्तान पर काबिज होने के बाद अशरफ गनी का देश छोड़कर भागना देश पर धब्बा है. अमरुल्ला सालेह ने कहा कि वह अफगानिस्तान से नहीं भागे क्योंकि वह अपमान और ऐतिहासिक शर्म का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे, जो कि उनके भागने से होता. WION News से बातचीत में अमरुल्ला सालेह ने यह भी बताया कि उन्हें मित्र देशों की तरफ से अफगानिस्तान से निकलने के लिए चार्टर्ड प्लेन की पेशकश की गई, लेकिन उन्होंने इसे लेने से इनकार कर दिया. कहा, "अफगानिस्तान छोड़ना अपमान और ऐतिहासिक शर्म की बात होगी, और मैं इसका हिस्सा नहीं बनना चाहता था."
तालिबान के काबुल में राष्ट्रपति भवन पर कब्जा करने से ठीक पहले अशरफ गनी के देश से छोड़े जाने का जिक्र करते हुए अमरुल्ला सालेह ने कहा कि उनका जाना "देश पर एक धब्बा" है. 2004 से 2010 तक अफगान खुफिया एजेंसी राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय के निदेशक रहे अमरुल्ला सालेह तालिबान के काबुल पर कब्जा किए जाने के बावजूद देश में बने हुए हैं. माना जाता है कि वह पंजशीर घाटी (काबुल के उत्तर-पूर्व) में ठहरे हुए हैं. तालिबान विरोधी नेता अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद के साथ अमरुल्ला सालेह तालिबान के खिलाफ मोर्चा खड़ा करने की कोशिश में हैं. काबुल पर तालिबान के काबिज होने के बाद अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए और अमरुल्ला सालेह पंजशीर घाटी में रुक गए. पंजशीर घाटी अफगानिस्तान का एक एकमात्र ऐसा इलाका है जो तालिबान की पहुंच से बाहर है.
संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के 'द नेशनल न्यूज' से बातचीत में अमरुल्ला सालेह ने कहा है कि वह तालिबान से लड़ने वाले मोर्चे का हिस्सा हैं. बगराम एयरबेस से 30 किलोमीटर उत्तर में स्थित पंजशीर घाटी में डेरा डाले 48 वर्षीय अमरुल्ला सालेह ने कहा कि देश के संविधान के अनुसार वह अब कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं. वह फरवरी 2020 में अफगानिस्तान के पहले उपराष्ट्रपति बने थे. अमरुल्ला सालेह ने पश्चिमी देशों से अफगानिस्तान का समर्थन करते रहने का आह्वान करते हुए कहा कि यह नैतिक और कानूनी रूप से उनका एक दायित्व है कि वे उनके साथ जुड़े रहें. पश्चिम को स्वीकार करना चाहिए कि वह (सालेह) भागे नहीं हैं.
अमरुल्ला सालेह ने कहा, मैंने कठिन हालात में अपने लोगों को छोड़ने के लिए शर्म और अपमान को स्वीकार नहीं किया है. हमने तालिबान से लोहा लेना शुरू कर दिया है. पंजशीर घाटी में उन सभी को पनाह दी जा रही है जो या तो तालिबान से पीड़ित हैं या उस पर भरोसा नहीं करते. यह पूछे जाने पर कि उनकी योजना क्या है, अमरुल्ला सालेह ने कहा कि हमने तालिबान को सार्थक बातचीत करने की पेशकश की है. लेकिन अगर वे जंग का विकल्प चुनते हैं तो हम भी उसके लिए तैयार हैं. लोग हमारा समर्थन कर रहे हैं.