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इजरायल अमेरिका का साथ देता नजर आ रहा है, लेकिन वह पूरी तरह से रूस के खिलाफ भी नहीं दिख रहा।
यूक्रेन रूस जंग के बीच इजरायल में चार अरब देशों का बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है। खास बात यह है कि इस बैठक में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन भी शामिल हो रहे हैं। इस बैठक में यूएई, बहरीन मिस्र और मोरक्को के विदेश मंत्री हिस्सा ले रहे हैं। यह पहली बार हुआ है, जब इजरायल में अरब देशों के विदेश मंत्री पहुंचे हुए हैं। रूस यूक्रेन जंग के बीच यह बैठक अमेरिका के लिए बेहद खास है। इस बैठक में अमेरिका ईरान परमाणु वार्ता के साथ यूक्रेन संघर्ष पर भी चर्चा होगी। अमेरिका रूस को अलग-थलग करने के अपने मकसद से वह मध्यपूर्वी देशों का समर्थन चाहता है।
1- प्रो अभिषेक प्रताप सिंह का कहना है कि यह पहली बार हुआ है कि इजरायल में इस तरह का सम्मेलन आयोजित हो रहा है। अमेरिका का यह प्रयास है कि मध्यपूर्व में समान हित वाले अमेरिका के सहयोगी देशों को एक साथ लाया जा सके। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अमेरिका के सहयोगी राष्ट्रों में थोड़ी खलबली मची थी। उनमें असुरक्षा की भावना थी। यूक्रेन संघर्ष के बाद रूस ने जो आक्रामक रुख अपनाया उससे अमेरिका और नाटो की साख गिरी है। युद्ध के पूर्व नाटो या अमेरिका ने यूक्रेन की सुरक्षा का जो आश्वासान दिया था, उसमें कहीं न कहीं गिरावट आई है। इस नजरिए से भी अमेरिका के लिए यह बैठक काफी अहम है। इस बैठक में अमेरिकी रक्षा मंत्री सहयोगी राष्ट्रों को उनकी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त कर सकते हैं।
2- इस बैठक के जरिए अमेरिका रूस और चीन को यह संदेश देना चाहता है कि उसके सहयोगी देश उसके साथ खड़े हैं। इसके साथ अमेरिका रूस और यूक्रेन जंग में वह पुतिन को अलग-थलग करना चाहता है। इस सम्मेलन का यह हिडेन एजेंडा हो सकता है। रूस और यूक्रेन जंग के बाद रूसी राष्ट्रपति पुतिन और बाइडन प्रशासन दुनिया के मुल्कों से अपना समर्थन हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। चीन के विदेश मंत्री वांग यी का भारत समेत अन्य एशियाई देशों का दौरा इसी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है। इसके साथ इजरायल में मध्यपूर्व देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक को भी इसी क्रम में देखा जाना चाहिए।
3- इजरायल के लिए भी यह बैठक काफी उपयोगी है। इजरायल का यह प्रयास रहा है कि फिलस्तीनी मामलों को अलग रखते हुए क्षेत्र के बाकी देशों के साथ उसके स्वतंत्र रिश्ते बने। इस दृष्टिकोण से यह सम्मेलन इजरायल के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। रणनीतिक महत्व के साथ इस बैठक का प्रतीकात्ममक महत्व भी है। यह बैठक नेगेव में हो रही है। यह इजरायल प्रधानमंत्री डेविन बेन गुरियन का घर भी है।
ऊर्जा संकट से निपटने के लिए उपयोगी है सम्मेलन
रूस यूक्रेन जंग के बाद ऊर्जा संकट को लेकर चर्चा गर्म है। इसके अतिरिक्त अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए मध्यपूर्व के देश अहम भूमिका निभा सकते हैं। खासकर सऊदी अरब या अमेरिका के अन्य सहयोगी राष्ट्र इसमें प्रमुख रोल अदा कर सकते हैं। इसके अलावा इजरायल के लिए ईरान का मसला भी बेहद अहम है। बाइडन प्रशासन ईरान के परमाणु समझौते पर थोड़ा नरम जरूर पड़ा है, लेकिन अमेरिका उसके परमाणु कार्यक्रम को किसी भी तरह से सफल नहीं होने देगा।
क्या है इजरायल की चुनौती
मध्यपूर्व में रूस भी कमजोर नहीं है। रूस के पास मध्यपूर्व को अस्थिर करने की क्षमता है। रूस जिस तरह से सीरिया में मौजूद रहा है, उसका बहुत बुरा असर इजरायल पर पड़ सकता है। रूस यूक्रेन जंग में इजरायल की स्थिति भारत जैसी ही है। इजरायल की कोशिश है कि किसी तरह अमेरिका उससे नाराज नहीं हो और साथ ही साथ वो कुछ ऐसा कर सके, जिससे दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की सकारात्मक भूमिका में दिखे। इजरायल अमेरिका का साथ देता नजर आ रहा है, लेकिन वह पूरी तरह से रूस के खिलाफ भी नहीं दिख रहा।
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