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दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बिकिनी एटोल आइलैंड पर अमेरिका ने 23 न्यूक्लियर टेस्ट किए

Neha Dani
4 July 2022 6:20 AM GMT
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बिकिनी एटोल आइलैंड पर अमेरिका ने 23 न्यूक्लियर टेस्ट किए
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न्यूक्लियर बम के प्रकोप को दिखाने के लिए 2010 में इस आइलैंड को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया।

दुनिया में बहुत सारे द्वीप ऐसे हैं, जिन पर कोई भी इंसान नहीं रहता है। लेकिन प्रशांत महासागर में स्थित बिकिनी एटोल नाम के कोरल आइलैंड पर कोई इंसान नहीं रहना चाहता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये दुनिया का सबसे ज्यादा न्यूक्लियर कंटैमिनेटेड आइलैंड है। इस आइलैंड पर जाने वाला हर व्यक्ति सीधा मौत के मुंह में पहुंचा है। इसका कारण ये है कि इसे अमेरिका ने परमाणु बम की टेस्टिंग साइट के तौर पर इस्तेमाल किया था।



जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम गिरते ही दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हो गया था। लेकिन इसके बाद अमेरिका ने कई और न्यूक्लियर टेस्ट किए। बिकिनी अटोल मार्शल आइलैंड-चेन में स्थित एक द्वीप है। ये दो स्क्वायर किमी का एक क्षेत्र है। ये आइलैंड सेना के लिए एकदम बेस्ट था। नेचुरल रिसोर्स डिफेंस काउंसिल की एक रिपोर्ट में कहा गया कि ये क्षेत्र शिपिंग लेन से दूर था। यहां से बेस सिर्फ 1600 किमी दूर था, जहां से बॉम्बर उड़ान भर सकते थे।

अमेरिका ने किए 23 न्यूक्लियर धमाके
इस टापू की आबादी बहुत कम थी। यहां सिर्फ 167 लोग रहते थे। अमेरिकी सेना ने इन लोगों को यहां से ये कहते हुए दूसरी जगह भेज दिया कि ये टेस्ट भविष्य में युद्ध रोकने के लिए बहुत जरूरी हैं। शुरुआत में लोग यहां से जाने को तैयार नहीं हुए, लेकिन बाद में इन लोगों के नेता किंग जूडा ने कहा कि हम यहां से जाएंगे, सब कुछ ईश्वर के हाथ में है। अमेरिका ने 1946 से 1958 तक 23 न्यूक्लियर टेस्ट बिकिनी अटोल में किए, इनमें से 20 हाइड्रोजन बम थे।

आइलैंड के लोगों को मिली थी वापस आने की इजाजत
इन्ही में से एक टेस्ट में नागासाकी को तबाह करने वाले बम से हजार गुना ताकत वाला बम भी था। 2017 में एटोल आइलैंड पर जाने वाले स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टीफेन पालुंबी का अनुमान है कि बम धमाकों के कारण मलबा आसमान में 65 किमी से ज्यादा ऊपर तक उछला होगा। 1960 के दशक में अमेरिकी परमाणु ऊर्जा कमीशन ने बिकीनी अटोल को रहने के काबिल बताया और यहां आइलैंड के कुछ पुराने लोगों को वापस आने की इजाजत दी। लेकिन ये कदम खतरनाक साबित हुआ।
वापस जाने के लायक नहीं
एक दशक बाद ही इस फैसले को वापस ले लिया गया। क्योंकि अध्ययन में पता चला कि यहां वापस आए लोगों के शरीर में सीसियम-137 का स्तर 75 फीसदी बढ़ गया है। आसान भाषा में उनका शरीर रेडिएशन के संपर्क में आ गया था। सीसियम के कारण शरीर में तरह तरह के रोग हो सकते हैं जिनसे इंसान की मौत हो सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये अब भी वापस जाने के लिए अच्छा विकल्प नहीं है। न्यूक्लियर बम के प्रकोप को दिखाने के लिए 2010 में इस आइलैंड को यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया।

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