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अफगानिस्तान में मची उथल-पुथल के बीच तालिबान का एक शीर्ष प्रतिनिधिमंडल बुधवार को चीन पहुंचा. चीन का दौरा करने वाले तालिबान डेलिगेशन ने बीजिंग को आश्वासन दिया कि वह किसी देश के खिलाफ साजिश रचने के लिए अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देगा. डॉन के मुताबिक, तालिबान के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने कहा कि गुट के नौ प्रतिनिधियों ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की और दोनों पक्षों ने अफगान शांति प्रक्रिया और सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा की. वहीं, वांग यी ने तालिबान को अफगानिस्तान में एक महत्वपूर्ण सैन्य और राजनीतिक ताकत करार दिया.
दोहा में तालिबान के पॉलिटिकल ऑफिस के प्रमुख अब्दुल गनी बरादर के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल ने चीन की राजधानी बीजिंग से लगभग 100 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित तियानजिन में चीनी विदेश मंत्री वांग यी और अन्य अधिकारियों से मुलाकात की. चीन के पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र की सीमा से सटे बदख्शां प्रांत सहित अफगानिस्तान के अन्य हिस्सों पर कब्जा हासिल करने के बाद तालिबान प्रतिनिधिमंडल का चीन का यह पहला दौरा है.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि तालिबान नेताओं की यह पहली चीन यात्रा है. अपने दोस्त पाकिस्तान की मध्यस्थता में चीन पहले भी तालिबान से संपर्क में रहा है. तालिबान का एक प्रतिनिधिनिमंडल 2019 में बीजिंग पहुंचा था जबकि 2015 में, चीन ने शिनजियांग की प्रांतीय राजधानी उरुमकी शहर में तालिबान और अफगान अधिकारियों के बीच पाकिस्तान द्वारा आयोजित वार्ता की मेजबानी की थी.
तालिबान प्रतिनिधिमंडल की यात्रा पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के चीन से लौटने के एक दिन बाद हुई है. कुरैशी की यात्रा के दौरान चीन और पाकिस्तान ने शनिवार को कहा था कि बदलते हालात के बीच अफगानिस्तान में दोनों पक्ष एक साथ मिलकर काम करने के लिए सहमत हैं.
चीनी विदेश मंत्रालय की तरफ से बुधवार को जारी बयान के मुताबिक, वांग यी ने तालिबान से अपने और अन्य आतंकवादी संगठनों के बीच साफ लाइन खींचने को कहा. चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि तालिबान ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) पर नकेल कसेगा क्योंकि यह चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है. चीन का कहना है कि यह चरमपंथी गुट शिनजियांग क्षेत्र में सक्रिय है. चीन को उम्मीद है कि तालिबान दृढ़ता और प्रभावी ढंग से ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट से मुकाबला करेगा.
चीन ने अफगानिस्तान के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने का वादा किया, बल्कि समस्याओं को हल करने और शांति लाने में मदद करने का भी वादा किया. चीन ने तालिबान प्रतिनिधिमंडल से कहा कि उसे उम्मीद है कि विद्रोही गुट अफगानिस्तान के युद्ध को समाप्त करने और देश के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.
वांग ने अमेरिका पर भी निशाना साधा. उन्होंने तालिबान प्रतिनिधिमंडल से कहा कि अफगानिस्तान से अमेरिकी और नाटो सैनिकों की जल्दबाजी में वापसी अफगानिस्तान के प्रति अमेरिकी नीति की विफलता को दर्शाती है.
चीनी विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, तालिबान प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख ने कहा कि वे चीन को नुकसान पहुंचाने के लिए किसी भी गुट को अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं देंगे. तालिबान को यह कहते हुए भी उद्धृत किया गया कि उम्मीद है कि चीन शांति और पुनर्निर्माण प्रक्रिया में अधिक भाग लेगा और अफगानिस्तान के भविष्य के पुनर्निर्माण और आर्थिक विकास में एक बड़ी भूमिका निभाएगा.
चीन-तालिबान मुलाकात पर क्या कहते हैं विश्लेषक: द विल्सन सेंटर के शोधकर्ता माइकल कुगेलमैन ने चीन और तालिबान की इस मीटिंग पर प्रतिक्रिया जाहिर की. उन्होंने ट्वीट किया, 'चीन में तालिबान डेलिगेशन का पहुंचना भारत के लिए एक चुनौती है. भारत को अफगानिस्तान में राजनयिक पहल करने की जरूरत है. भारत का एक प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान पहले से ही इस खेल में है और चीन भी इसमें शामिल होने जा रहा है.
बकौल माइकल कुगेलमैन, 'मैं यह भी कहना चाहूंगा कि चीन-तालिबान बैठक अमेरिकी सरकार के लिए अफगानिस्तान में अधिक भारतीय भागीदारी के महत्व को रेखांकित करती है. जैसे-जैसे ऐसे राजनीतिक घटनाक्रम सामने आएंगे, वैसे वैसे अमेरिका चाहेगा कि क्षेत्रीय कूटनीति में उसके करीबी सहयोगियों (अफगानिस्तान के अधिकांश पड़ोसी प्रतिद्वंद्वी और अमेरिका के जटिल साझेदार हैं) की सक्रियता बढ़े.'
jantaserishta.com
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