खतरे की घंटी! अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA का बड़ा खुलासा, ये खबर आपको हैरान कर देगी
इंसानी इतिहास में अभी तक सिर्फ एक ही बार किसी देश ने किसी देश पर परमाणु हमला किया है, और वो है अमेरिका. जिसने जापान के ऊपर ये कहर ढहाया. उसके बाद से परमाणु हमले की धमकियां तो सामने आईं मगर कभी परमाणु हमला नहीं हुआ. मगर अब अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने खुलासा किया है कि रूस ने चीन पर परमाणु हमले को तकरीबन अंजाम दे ही दिया था. रूसी मिसाइलों का रूख चीन की तरफ था. बस 15 मिनट में परमाणु बम चीन पर गिरने ही वाला था. हालांकि ऐन वक्त पर तबाही का ये प्लान टल गया. मगर जो चीन और रूस इतने गहरे दोस्त हैं उनके बीच ऐसी नौबत आई क्यों?
रूस और चीन एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए हैं. खबर मिली है कि गुस्से में रूस करने परमाणु हमला वाला था. रूस ने मिसाइलें दागने की तैयारी भी कर ली थी. ये सनसनीखेज खुलासा अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने किया है. एजेंसी की सूचना को मानें तो रूस इतना गुस्से में था कि वह चीन पर परमाणु बम गिराने वाला था.
ये खबर आपको हैरान कर सकती है. क्योंकि मौजूदा दौर में रूस और चीन को अमेरिका के खिलाफ सबसे मजबूत साथी माना जाता है. अमेरिका को हमेशा इन इस दोस्ती से खतरा महसूस होता है. क्योंकि दो शक्तिशाली मुल्कों का एक साथ होना. अमेरिका की बादशाहत पर बहुत बड़ा खतरा है. अमेरिका के पास इतना मजबूत कोई साथी नहीं, जो उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल सके. लिहाज़ा वो इस दोस्ती में दरार डालने में कोई कोर कसर छोड़ना नहीं चाहता है. लिहाज़ा वक्त-वक्त पर अमेरिका कोई ना कोई शगूफा छोड़ता रहता है. मगर इस बार अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने जो शगूफा छोड़ा है. वो दुनिया के लिए खतरे की घंटी बजाने वाला है.
अमेरिकी खुफिया एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस ने तो चीन को सबक सिखाने के लिए परमाणु मिसाइलें दागने की तैयारी कर ली थी. मगर ये मौजूदा वक्त की बात नहीं बल्कि शीतयुद्ध के दौर की बात है. मगर आज की तारीख में ऐसी रिपोर्टों को जारी करने के पीछे अमेरिका का एक ही मकसद है. इस दोस्ती को तोड़ना. अमेरिका की इस साजिश को समझने की कोशिश करेंगे मगर उससे पहले जानते हैं कि शीतयुद्ध के दौरान आखिर ऐसा क्या हो गया था कि रूस को चीन पर परमाणु मिसाइलें दागने की तैयारी करने की नौबत आ गई थी.
शीत युद्ध के वक्त एक समय ऐसा भी आया था जब पूरी दुनिया पर परमाणु हमले का खतरा मंडराने लगा था. उस वक्त रूस के राष्ट्रपति निकिता ख्रुश्चेव ने फिदेल कास्त्रो के अनुरोध पर अपनी परमाणु मिसाइलों को क्यूबा में तैनात कर दिया था. उस वक्त तक कम्युनिस्ट शासित देशों में सबसे बड़ा और शक्तिशाली होने के कारण रूस का समर्थन चीन भी करता था. लेकिन चीन के पहले परमाणु परीक्षण के बाद से हालात बदलने लगे. चीन ने इस परीक्षण को प्रोजक्ट 596 का नाम दिया था. इस सफल परीक्षण के बाद चीन दुनिया का पांचवा ऐसा देश बन गया था जिसके पास परमाणु हथियार की क्षमता थी.
इस दौरान चीन और रूस के बीच सीमा संघर्ष चरम पर था. कई बार चीन-रूस की सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच सैन्य झड़पें भी हुईं. जिसके बाद संभावित युद्ध की आशंका से चीन और रूस ने सीमा पर सैनिकों और हथियारों की तैनाती को बढ़ा दिया. दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया था कि महीनों तक दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ अघोषित युद्ध तक लड़ लिया. रूस को उम्मीद थी कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में जारी कलह उसकी मददगार बनेगी. मगर रूस को इस विवाद का कोई फायदा नहीं मिला. और उधर चीन सीमा पर तैनात रूसी सैनिकों पर हमला बोल दिया. इससे भड़के रूस ने स्ट्रैटजिक मिसाइल फोर्स को हाई अलर्ट पर रख दिया.
उस वक्त रूस की परमाणु मिसाइलें 1500 किलोमीटर की दूरी पर 15 मिनट से भी कम समय में हमला करने को तैयार थीं. हालांकि, रूस ने दूसरा विकल्प अपनाते हुए केजीबी के एलीट बॉर्ड गार्ड्स की टुकड़ी से चीनी सैनिकों पर हमला किया. जिसमें चीनी पक्ष के सैकड़ों जवान मारे गए. रूस की जवाबी कार्रवाई से चीन को इतना डर गया कि वो मास्को से बार-बार बातचीत से मसला हल करने के लिए गिड़गिड़ाने लगा. तब कहीं जाकर रूस ने चीन का पीछा छोड़ा.