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अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद आतंकी संगठन अलकायदा के फिर उभरने का खतरा मंडराने लगा है।
अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद आतंकी संगठन अलकायदा के फिर उभरने का खतरा मंडराने लगा है। जानकारों का कहना है, घरेलू उग्रवाद के साथ-साथ रूस और चीन के साइबर हमलों से जूझ रहे अमेरिका के लिए यह बड़ी परेशानियाें का सबब बन सकता है।
ट्रंप प्रशासन में आंतकवाद रोधी मिशन के वरिष्ठ निदेशक रहे क्रिस कोस्टा का कहना है, अलकायदा को एक अवसर मिला है और वह इसका लाभ उठाने की कोशिश करेगा। इससे पहले, पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने स्वीकारा था कि अफगानिस्तान में अलकायदा की मौजूदगी है। लेकिन खुफिया जानकारियों में कमी से इसके आतंकियों की संख्या बताना कठिन है।
अमेरिका ने दो दशकों में खुद को पहले से काफी मजबूत कर लिया है। लेकिन जून में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अलकायदा का शीर्ष नेतृत्व सैकड़ों सशस्त्र लड़ाकों के साथ अफगानिस्तान में मौजूद है। इसमें बताया गया, तालिबान के साथ उसकी नजदीकी बनी हुई है।
कई गुटों की शरणगाह
जानकारों का कहना है कि अफगानिस्तान अब अनेक चरमपंथी गुटों की शरणगाह बन सकता है। यही वजह है कि राष्ट्रपति जो बाइडन ओवर द होराइजन क्षमता की बात कहते रहे हैं। उनके सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने भी बताया था, खुफिया समुदाय का मानना है कि अलकायदा के पास अमेरिका पर पहले जैसा हमला करने की क्षमता नहीं है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी की कमजोर खुफिया क्षमता को चेतावनी की तरह लेना चाहिए।
सहयोगियों से हमले करा सकता है
जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में आतंकवाद विशेषज्ञ ब्रुस हॉफमैन का कहना है, अलकायदा अफगानिस्तान को इतनी जल्दी अमेरिका के खिलाफ इस्तेमाल नहीं कर सकता लेकिन वह सहयोगियों के जरिए हमले करा सकता है।
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