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रूसी एस-400 मिसाइल सिस्‍टम के बाद भारतीय सेना के पास बनी एक देशी संस्‍करण, जानें इसकी खूबियां

Neha Dani
27 Nov 2021 11:33 AM GMT
रूसी एस-400 मिसाइल सिस्‍टम के बाद भारतीय सेना के पास बनी एक देशी संस्‍करण, जानें इसकी खूबियां
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इस राइफल को एके-200 सीरीज में रखा जाता है।

रूसी एस-400 मिसाइल सिस्‍टम के बाद भारतीय सेना के पास रूस की बनी एके-203 असाल्ट राइफल का देशी संस्‍करण होगा। यानी भारतीय सेना को देश में बनी एके-203 असाल्‍ट राइफल मिलेगी। उम्‍मीद की जा रही है कि दिसंबर में राष्‍ट्रपति व्‍लादीमीर पुतिन की यात्रा के दौरान भारत और रूस के बीच यह रक्षा करार होगा। यह कहा जा रहा है कि पांच हजार करोड़ के इस समझौते के तहत यूपी के अमेठी में अगले दस वर्षों तक करीब छह लाख एके-203 असाल्‍ट राइफल का निर्माण होगा। फैक्‍ट्री लगने के 32 महीने बाद से सेना को यह रायफल मिलनी शुरू होगी। आखिर इस रायफल की क्‍या खूबियां हैं। सैनिकों को यह रायफल मिलने के बाद आखिर भारतीय सेना कितनी मजबूत होगी।

रूसी एके-203 असाल्ट की खूबियां
1- एके-203 असाल्ट राइफल इंसास राइफल की तुलना में छोटी और हल्की है। यह मारक क्षमता बेहद घातक है। असाल्‍ट की तुलना में इंसास राइफल बिना मैगजीन और बेयोनेट के भी 4.15 किलोग्राम वजन की है। एक-203 का वजन 3.8 किलोग्राम है। इंसास राइफल की लंबाई 960 मिलीमीटर है, जबकि, एके-203 मात्र 705 मिलिमीटर की है। वजन और लंबाई कम होने के कारण युद्ध के समय यह सैनिकों के लिए काफी सुविधाजनक है। इससे सैनिकों को थकान कम लगेगी। सैनिक इस बंदूक को आसानी से और लंबे समय तक ढो सकते हैं। लंबाई कम होने से इसकी हैंडलिंग आसान हो जाती है।
2- ऐसा कहा जाता है कि इंसास राइफल सिंगल शाट और तीन-राउंड का बर्स्ट फायर कर सकता है, जबकि असाल्‍ट सेमी-आटोमैटिक या आटोमैटिक मोड में चलाई जा सकती है। इंसास राइफल एक मिनट में 650 बुलेट दाग सकती है, जबकि एके-203 एक मिनट में 600 बुलेट्स ही दागती है, लेकिन इसमें भी एके-203 से सटीकता का फायदा मिलता है।
3- इंसास में 20 से 30 राउंड की मैगजीन लगती है, जबकि असाल्‍ट में 30 राउंड की बाक्स मैगजीन लगती है। इंसास की मजल वेलोसिटी 915 मीटर प्रति सेकेंड है, असाल्‍ट की मजल वेलोसिटी 715 मीटर प्रति सेकेंड है। असाल्‍ट गैस आपरेटेड, रोटेटिंग बोल्ट तकनीक पर काम करती है, यही तकनीक इंसास में भी लगी है।
4- इंसास राइफल पर इन-बिल्ट आयरन साइट, माउंट प्वाइंट लगाया जा सकता है, ताकि दूरबीन से दुश्मन को देखा जा सके। इस मामले में असाल्‍ट ज्यादा बेहतर है, क्योंकि इसपर एडजस्टबल आयरन साइट है। इसके अलावा पिकैटिनी रेल लगी है, यानी आप दुनिया के किसी भी तरह के दूरबीन को इस बंदूक पर लगा सकते हैं यानी जितनी ताकतवर दूरबीन उतना घातक हमला।
5- इस राइफल को एके-200 सीरीज में रखा जाता है। वर्ष 2013 में इसे एके-203 में कुछ बदलवा करके इसे एके-103.3 नाम दिया गया। वर्ष 2019 में एके-300 और एके-100 एम राइफल्‍स का नाम दिया गया। वर्ष 2019 में इसको एके-203 नाम दिया गया।
भारतीय सेना को असाल्ट राइफल की जरूरत
यह एक एके सीरीज की सबसे अत्‍याधुनिक और घातक राइफल है। यह राइफल भारतीय सेना द्वारा कई दशकों से उपयोग में लाई जा रही इंसास राइफल्‍स की जगह लेगी। इस राइफल को भारत और रूस मिलकर बनाएंगे। भारतीय सेना को 7.50 लाख एके-203 असाल्ट राइफल की जरूरत है। भारत और रूस में इस रायफल को लेकर जो सौदा हुआ है, इसके तहत 70 हजार से एक लाख राइफल रूस से मंगाई जाएगी, बाकी की 6.50 लाख राइफल्‍स अमेठी में बनाई जाएंगी। इससे फायदा यह होगा कि भविष्‍य में इसी फैक्‍ट्री में यह राइफल बनाई जा सकेगी। इस राइफल का पहला प्रोटोटाइप साल 2007 में एके-200 के नाम से आया था। इस राइफल को एके-200 सीरीज में रखा जाता है।


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