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जर्मनी में आम चुनाव के बाद उठने लगे की सत्‍ता की चाबी किसके पास होगी? क्‍या है उनका भारत से लिंक

Rounak Dey
28 Sep 2021 9:00 AM GMT
जर्मनी में आम चुनाव के बाद उठने लगे की सत्‍ता की चाबी किसके पास होगी? क्‍या है उनका भारत से लिंक
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इसलिए वह कोयला उद्योग का बचाव करते रहे हैं। वह यूरोपीय यूनियन के समर्थक हैं।

जर्मनी में आम चुनाव के बाद अब यह सवाल उठने लगे हैं कि सत्‍ता की चाबी किसके पास होगी। एंजेला मर्केल के बाद क्‍या कोई महिला इस पद पर आसीन होगी या यह कुर्सी किसी और को मिलेगी। फ‍िलहाल चांसलर की दौड़ में तीन प्रमुख उम्‍मीदवार हैं। इसमें ग्रींस पार्टी ने चांसलर पद के लिए एक महिला उम्‍मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है। हालांकि, सभी उम्‍मीदवारों के समक्ष एक जैसी चुनौती और मुश्किलें हैं। हम आपको चांसलर पद के लिए तीन प्रमुख प्रत्‍याशियों के बारे में बताएंगे । इसके साथ चीन, रूस और भारत के प्रति उनके रुझानों के बारे में भी प्रकाश डालेंगे।

1- आर्मिन लाशेट (क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी, सीडीयू)
चांसलर की रेस में लाशेट: चांसलर पद की दौड़ में आर्मिन लाशेट का नाम शामिल है। 60 वर्षीय लाशेट एक समय में अपने प्रतिद्वंद्वियों से आगे चल रहे थे, लेकिन कुछ गलतियों से उनकी लोकप्रियता का ग्राफ गिरा है। हालांकि वह अभी चांसलर की रेस में बने हुए हैं। वह एंजेला मर्केल की राजनीतिक पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी (सीडीयू) के नेता हैं। पार्टी प्रमुख के पद पर लाशेट एंजेला मैर्केल के दूसरे उत्तराधिकारी हैं। वह चांसलर पद के लिए पार्टी का स्वाभाविक उम्मीदवार हैं। अगर क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स संसदीय चुनावों में बहुमत हासिल करती है तो वह चांसलर पद के प्रबल दोवदार हैं।
चांसलर के लिए पार्टी के बने उम्‍मीवार : वह जर्मनी के नार्थ राइन वेस्‍टफालिया के प्रीमियर है। यह जर्मनी का सबसे अधिक आबादी वाला प्रांत है। पार्टी में चांसलर की उम्‍मीदवारी के लिए उन्‍होंने अपनी ही पार्टी के मार्कस सोडर को बेहद कम अंतर से पीछे छोड़ा है। इस रेस को जीतने के बाद सीडीयू ने लाशेट का समर्थन किया है। पार्टी अध्यक्ष पद के लिए तीन दावेदारों में से लाशेट अकेले थे जो पहले पार्टी के लिए प्रांतीय स्तर पर नेता के रूप में चुनाव जीत चुके हैं और उन्हें सरकार चलाने का अनुभव भी है।
कोरोना से जनसमर्थन में कमी: हालांकि, देश में कोरोना महामारी के कारण सीडीयू की सहयोगी पार्टी सीएसयू के प्रति जनसमर्थन थोड़ा सीमित हुआ है। लाशेट पर भी कोरोना महामरी के खराब प्रबंधन के आरोप लगे हैं। एक अन्‍य घटना ने भी लाशेट की लोकप्रियता में कमी लाई है। जुलाई में देश में आई बाढ़ के दौरान राष्‍ट्रपति के भाषण के समय लाशेट की हंसते हुई एक फोटो कैमरे में कैद हो गई थी। इस घटना के बाद उनकी लोकप्रियता में कमी आई। इसके बाद ओपिनियन पोल में संघर्ष कर रहे हैं।
ओपिनियनम पोल में पिछड़ गए लाशेट: ओपिनियन पोल के मुताबिक सीडीएस-सीएसयू गठबंधन को 23 फीसद मत मिले हैं और अपनी प्रतिद्वंदी पार्टी मध्यमार्गी-वामपंथी एसपीडी से दो अंक पीछे है। लाशेट की अपनी रेटिंग भी बहुत अच्छी नहीं है। महज 20 फीसद लोग ही उन्हें चांसलर के रूप में देखना चाहते हैं।
आशा के अनुरूप नहीं रहे परिणाम: चुनाव के शुरू में सीडीयू/सीएसयू को उम्मीद थी कि वह मध्य जर्मनी में मैदान मार लेगी। यह उम्‍मीद की जा रही थी कि 30 फीसद तक मत आसानी से हासिल करेगी, लेकिन परिणाम आशा के अनुरूप नहीं आए। जर्मनी के चुनाव में आमतौर पर मध्‍य मार्ग का प्रभाव होता है, लेकिन लाशेट ने अचानक दक्षिणपंथी रवैया अपना लिया। उनके लिए यह जोखिम भरा रहा है।
विवादों में रहे लाशेट : लाशेट ने वर्ष 2005 में अपने गृह क्षेत्र में एकीकरण मंत्री बनें थे। यह जर्मनी में अपनी तरह का पहला मंत्रालय था। उन्होंने नस्लीय तुर्की समुदाय से मजबूत रिश्ते बनाए। वर्ष 2015 में जब करीब 10 लाख प्रवासी जर्मनी पहुंचे तो चांसलर मर्केल ने उनका स्वागत किया। उस वक्‍त मर्केल की इस नीति का लाशेट ने समर्थन किया था। लाशेट पर कैथोलिक चर्च का प्रभाव रहा है। वह चर्च में संचालित स्कूल में पढ़े हैं। उनके माता-पिता धार्मिक रहे हैं। वे विवाहित हैं। उनके तीन जवान बच्चे हैं।
भारत से यथावत रहेंगे संबंध: भारत से उनका लिंक नहीं है। इसलिए उम्‍मीद की जा रही है कि भारत के साथ उनकी विदेश नीति यथावत रहेगी। वह यूरोपीय यूनियन में सांसद भी रहे हैं। वह फ्रांस की सीमा से लगे आखेन शहर से आते हैं इसके चलते फ्रांस से मजजबूत रिश्‍ते हैं। लाशेट पेशे से वकील हैं। उनके पिता एक कोयला खदान में काम करते थे। इसलिए वह कोयला उद्योग का बचाव करते रहे हैं। वह यूरोपीय यूनियन के समर्थक हैं।


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