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म्यांमार के रखाइन प्रांत में कई मुठभेड़ों के बाद दूसरे इलाकों में भी अशांति की संभावना

Deepa Sahu
25 Nov 2021 3:52 PM GMT
म्यांमार के रखाइन प्रांत में कई मुठभेड़ों के बाद दूसरे इलाकों में भी अशांति की संभावना
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म्यांमार के रखाइन प्रांत में हाल में बागियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ की बढ़ी घटनाओं ने देश के अन्य हिस्सों में भी सशस्त्र बगावत के फैलने की आशंका पैदा कर दी.

म्यांमार के रखाइन प्रांत में हाल में बागियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ की बढ़ी घटनाओं ने देश के अन्य हिस्सों में भी सशस्त्र बगावत के फैलने की आशंका पैदा कर दी है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस साल एक फरवरी को देश में हुए सैनिक तख्ता पलट के बाद हथियारबंद बागियों की तरफ से वैसे हमले नहीं हुए, जैसे हाल में रखाइन प्रांत में देखने को मिले हैं। खबरों के मुताबिक नवंबर के दूसरे हफ्ते में अराकान आर्मी नाम के बागी गुट ने कई हमले किए। उसके बाद भी रखाइन प्रांत से अशांति की खबरें मिली हैं।

अराकान आरमी के प्रवक्ता खाइंग थु खा ने एक बयान में एक बड़ी मुठभेड़ की बात मानी थी। लेकिन सेना ने अपने बयान में कहा कि उसकी मुठभेड़ अराकान आर्मी के साथ नहीं, बल्कि अराकान रोहिंग्या सैलवेशन आर्मी (एआरएसए) के साथ हुई। एआरएसए रोहिंग्या मुसलमानों का संगठन है। 2017 में एक पुलिस चौकी पर उसके ही हमले के बाद सेना ने जोरदार जवाबी कार्रवाई शुरू की थी, जिसकी वजह से सात लाख से ज्यादा आम रोहिंग्या शरणार्थी बनने पर मजबूर हो गए थे।
अराकान आर्मी की सेना से मुठभेड़
पर्यवेक्षकों का कहना है कि अराकान आर्मी एआरएसए की तुलना में कहीं अधिक मजबूत गुट है। ये अलगाववादी गुट 2020 के पहले तक म्यांमार की सेना के साथ 'युद्ध' में जुटा हुआ था। लेकिन युद्धविराम समझौते के बाद एक साल की शांति अब टूट गई है। युद्धविराम के बाद इस महीने पहली बार उसकी सेना से मुठभेड़ होने की खबर आई है। थिंक टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के वरिष्ठ सलाहकार रिचर्ड हॉर्सी ने कहा है कि भले एक साल से ज्यादा समय तक दोनों पक्षों ने युद्धविराम का पालन किया, लेकिन उनके मकसद आज भी एक दूसरे के खिलाफ हैं।
हॉर्सी ने टीवी चैनल अल-जजीरा से कहा- 'अराकान आर्मी ने युद्धविराम की अवधि का इस्तेमाल अपने बलों की तैनाती को नया रूप देने और अपने प्रभाव वाले इलाकों में अपना प्रशासन मजबूत करने के लिए किया। ऐसे में किसी ना किसी समय सेना को वहां दखल देना ही था।' रखाइन स्थित मानव अधिकार संगठन वॉन लार्क फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक खाइंग कुआंग सान ने अल-जजीरा से कहा- 'अगर 2018-20 जैसी लड़ाई फिर छिड़ गई, तो इस बार ज्यादा विनाश होगा और अधिक संख्या में लोग विस्थापित होंगे।'
दूसरे विश्लेषकों का भी कहना है कि अब अराकान आर्मी रखाइन प्रांत के 'आत्म-निर्णय' की मांग फिर से उठा रही है। सैनिक शासक इस मांग को मानने के बिल्कुल मूड में नहीं हैं। ऐसे में दोनों पक्षों के बीच लड़ाई बढ़ने की आशंका गहराती जा रही है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि म्यांमार में दूसरे अलगाववादी गुट भी हाल के वर्षों में ज्यादा सक्रिय नहीं थे। लेकिन सैनिक शासन के खिलाफ मजबूत होती जा रही जन भावना के कारण उनकी गतिविधियां बढ़ने के संकेत हाल में मिले हैं। इस बीच रखाइन प्रांत में सशस्त्र टकराव शुरू हो गया है। इससे दूसरे गुट भी हमले शुरू करने पर विचार कर सकते हैं। आशंका है कि कई क्षेत्रों में एक साथ टकराव बढ़ा, तो उससे सेना की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। पर्यवेक्षकों का कहना है कि बागी गुट ऐसे ही मौके की तलाश में रहे हैँ।
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