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अमेरिका जापान के बाद चीन को भी बनाने वाला था अपने परमाणु हथियारों का निशाना, ऐसे खुले कई राज

Gulabi
23 May 2021 11:59 AM GMT
अमेरिका जापान के बाद चीन को भी बनाने वाला था अपने परमाणु हथियारों का निशाना, ऐसे खुले कई राज
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चीन को भी बनाने वाला था अपने परमाणु हथियारों का निशाना

अमेरिका (America) और चीन (China) के बीच संबंध बीते कुछ सालों में तनावपूर्ण हुए हैं लेकिन एक खुफिया दस्तावेज (Secret Document) से खुलासा हुआ है कि ये संबंध 1958 में इस कदर खराब हो गए थे कि अमेरिका चीन पर परमाणु हमले (Nuclear Attack) का मन बना चुका था और इसकी वजह थी ताइवान (Taiwan). अमेरिका ताइवान को चीन के कम्युनिस्ट शासन से बचाने के लिए परमाणु हमला करना चाहता था. हालांकि उसे पता था कि अगर वो ऐसा कोई कदम उठाएगा तो रूस चीन का साथ देगा लेकिन ताइवान को बचाने के लिए अमेरिका कुछ भी करने को तैयार था.


यह खुलासा किया है अमेरिका के पूर्व सैन्य विशेषज्ञ डेनियल एल्सबर्ग (90) ने. उन्होंने एक खुफिया दस्तावेज के कुछ हिस्से ऑनलाइन पोस्ट किए. दस्तावेजों से पता चलता है कि अमेरिका मुख्य चीन को निशाना बनाने जा रहा था. सीक्रेट डॉक्यूमेंट में कहा गया है, 'अगर चीन इसी तरह ताइवान पर हमले करता रहा तो उसे भी हमलों का सामना करना होगा.'

हवाई अड्डों पर था निशाना
न्यूयॉर्क टाइम्स से बात करते हुए डेनियल ने कहा कि उनके द्वारा जारी किए गए दस्तावेज 1970 के दशक की शुरुआत में कॉपी किए गए थे. ये दस्तावेज ताइवान कांफलिक्‍ट डॉक्‍यूमेंट्स का हिस्सा थे. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में एक बार फिर ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं इसीलिए ये सीक्रेट डॉक्यूमेंट जारी किए गए हैं.

डेनियल का नाम 1971 में वियतनाम युद्ध पर बने टॉप सीक्रेट पेंटागन पेपर्स के लीक के लिए भी मशहूर हो चुका है. जारी किए गए खुफिया दस्तावेज में लिखा है कि तत्कालीन ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ्स के प्रमुख जनरल नाथन ट्विनिंग ने कहा था कि चीन को रोकने के लिए अमेरिका उसके हवाईअड्डों पर परमाणु हमला करेगा. अगर लड़ाई हुई तो अमेरिका के पास इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा.

एक बार फिर बढ़ रहा तनाव
दस्तावेजों को मुताबिक अमेरिका के निशाने पर चीन का शंघाई शहर भी था. हालांकि तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर ने चीन के खिलाफ पारंपरिक हथियारों के इस्तेमाल पर ही जोर दिया था. बाद में फिर जब चीन ने ताइवन पर बमबारी को रोक दिया था तो इस तनाव का भी अंत हो गया.

मौजूदा हालात हमें 1958 की ही याद दिला रहे हैं. चीन लगातार ताइवान को धमकी दे रहा है कि अगर वो चीन की अधीनता को स्वीकार नहीं करेगा तो उसे हमलों का सामना करना पड़ेगा. इस मुद्दे पर अमेरिका ताइवान के साथ खड़ा है. इसका असर अमेरिका और चीन के संबंधों पर भी पड़ रहा है जो कि पहले से ही तनावपूर्ण हैं और बीते ट्रंप प्रशासन के दौरान ये संबंध दशकों में अपने निचले स्तर पर पहुंच गए थे.


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