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इसके बाद 12 अगस्त, 1953 को कजाखिस्तान के सेमीप्लाटिंस्क टेस्ट साइट पर हाइड्रोजन बम का टेस्ट किया। इस तरह इसने अमेरिका को हर क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती दी।
चीन के हाइपरसोनिक मिसाइल परीक्षण के बाद रूस के सबसे विध्वंसक हथियार की चर्चा भी जोरों पर है। यह चर्चा इसलिए भी हो रही है कि रूस ने इस परमाणु हथियार का परीक्षण करके अमेरिका को हैरत में डाल दिया था। यह परमाणु हथियार हिरोशिमा में गिरे अमेरिकी बम से कहीं ज्यादा खतरनाक था। 30 अक्टूबर, 1961 को रूस ने इस परमाणु हथियार का परीक्षण किया था। इसके बाद अमेरिका और रूस के बीच सबसे बड़े परमाणु हथियार को तैयार करने को लेकर रेस शुरू हुई थी। चीन के हाइपरसोनिक मिसाइल के बाद एक बार फिर हथियारों के होड़ का खतरा उत्पन्न हो गया है। आखिर क्या था रूस का यह परमाणु हथियार ? इस हथियार से क्यों सहमा था अमेरिका ? क्या थी इसकी खूबियां ?
जार बाम्बा के बाद दुनिया में शुरू हुई थी शस्त्रों की होड़
दरअसल, विश्व में सबसे विध्वंसक हथियारों में परमाणु बमों का नाम सबसे ऊपर आता है। इसके पीछे की वजह भी साफ है, क्योंकि इस हथियार की ताकत दुनिया ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर हुए परमाणु हमलों में देखी थी। शीत युद्ध के समय दुनिया में परमाणु हथियारों की एक रेस शुरू हुई, लेकिन 1945 में जापान पर हुए परमाणु हमले के बाद साल 1961 इस रेस का सबसे महत्वपूर्ण बिंदु रहा। दरअसल, रूस ने 30 अक्टूबर 1961 को जार बाम्बा (Tsar Bomba) के जरिए सबसे बड़ा परमाणु परीक्षण किया था। यह दुनिया का सबसे शक्तिशाली और ताकतवर परमाणु हथियार था।
हिरोशिमा के बाद पूर्व सोवियत संघ ने किया परमाणु हथियारों का निर्माण
जापान पर परमाणु हमले के बाद हथियारों की होड़ में अमेरिका सबसे आगे खड़ा नजर आ रहा था। हालांकि जल्द ही पूर्व सोवियत यूनियन ने उसे टक्कर देना शुरू कर दिया था। हिरोशिमा के पहले पूर्व सोवियत संघ ने परमाणु हथियारों के निर्माण पर रोक लगाई हुई थी। हालांकि, 1945 में सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन ने निर्माण को तेज करने का आदेश दिया था। पूर्व सोवियत संघ ने 29 अगस्त, 1949 को अपने पहले परमाणु हथियार का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। इसके बाद 12 अगस्त, 1953 को कजाखिस्तान के सेमीप्लाटिंस्क टेस्ट साइट पर हाइड्रोजन बम का टेस्ट किया। इस तरह इसने अमेरिका को हर क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती दी।
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