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ब्रेग्जिट के बाद यूरोपियन यूनियन के सामने खड़ी हुई 'पोलेग्जिट' की चुनौती

Kunti Dhruw
9 Oct 2021 3:13 PM GMT
ब्रेग्जिट के बाद यूरोपियन यूनियन के सामने खड़ी हुई पोलेग्जिट की चुनौती
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ब्रेग्जिट (ईयू से ब्रिटेन के अलग होने) के बाद यूरोपियन यूनियन (ईयू) के सामने अब ‘पोलेग्जिट’ (पोलैंड के ईयू से अलग होने) का गंभीर खतरा खड़ा हो गया है।

ब्रेग्जिट (ईयू से ब्रिटेन के अलग होने) के बाद यूरोपियन यूनियन (ईयू) के सामने अब 'पोलेग्जिट' (पोलैंड के ईयू से अलग होने) का गंभीर खतरा खड़ा हो गया है। पोलैंड के साथ ईयू के संबंधों में पहले से ही तनाव था। इस गुरुवार को पोलैंड की संवैधानिक अदालत के आए एक फैसले ने इस मामले को चरमसीमा पर पहुंचा दिया है। पोलैंड की संवैधानिक अदालत ने फैसला दिया कि देश के जिन कानूनों का ईयू के नियमों से टकराव होगा, उसमें पोलैंड की संसद से पारित कानून को तरजीह मिलेगी।

इस फैसले का तीन महीनों से इंतजार था। संवैधानिक अदालत ने कहा कि ईयू संधि के कुछ हिस्से और ईयू अदालत के कुछ फैसले पोलैंड के सर्वोच्च कानून के खिलाफ गए हैं। उन मामलों में पोलैंड के कानून ही देश में लागू होंगे। ये फैसला आने के बाद बर्लिन स्थित संस्था डेमोक्रेसी रिपोर्टिंग के रिसर्च को-ऑर्डिनेटर जाकुब जाराकजेव्स्की ने टीवी चैनल यूरो न्यूज से कहा- 'पोलैंड में कानून के शासन को लेकर ईयू से उसके तनाव में अब बहुत इजाफा हो गया है।'
जाराकजेव्स्की ने कहा- 'यह अभूतपूर्व है। अब असल में ईयू का एक सदस्य देश यह कह रहा है कि यूरोपियन यूनियन की साझा वैधानिक व्यवस्था पोलैंड में लागू नहीं है। ऐसा इसके पहले कभी नहीं हुआ।' ब्रिटेन की मिडलसेक्स यूनिवर्सिटी में यूरोपीय कानून के प्रोफेसर लॉरेंट पेक ने इसी चैनल से बातचीत में इस फैसले को ईयू की कानूनी व्यवस्था पर 'परमाणु हमला' बताया। उन्होंने कहा- 'अब पोलैंड में जजों को ईयू कानून और अपने संविधान में से एक चुनना होगा। ईयू संधि के तहत वे ईयू के कानून के अनुरूप फैसला देने के लिए बाध्य हैँ। लेकिन ऐसा करने पर उन्हें पोलैंड के संविधान का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया जाएगा, जिसको लेकर उन पर आपराधिक मुकदमा भी चलाया जा सकता है।'
ये फैसला आने के बाद यूरोपीय आयोग और यूरोपीय संसद के सदस्यों ने पोलैंड की कड़ी निंदा की है। यूरोपीय आयोग ने कहा कि इससे गंभीर चिंता खड़ी हुई है। आयोग के बयान मे कहा गया- 'संधियों की रक्षा और ईयू के कानून पर इस पूरे क्षेत्र में समान अमल को सुनिश्चित करने के लिए अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने में आयोग नहीं हिचकेगा।'
पोलैंड में दक्षिणपंथी लॉ एंड जस्टिस पार्टी 2015 में सत्ता आई थी। तब से उसकी सरकार पर न्यायपालिका पर नियंत्रण कायम के आरोप लगते रहे हैं। साथ ही उसने देश में कंजरवेटिव नीतियां लागू की हैं। सरकार ने अदालतों में जजों की नियुक्ति के नए नियम लागू किए। यूरोपीय न्यायालय ने उस बारे में इस साल मार्च में अपना फैसला दिया। उसमें नए नियमों को ईयू के नियमों के विरुद्ध बताया गया। ईयू अदालत ने कहा कि पूरे ईयू क्षेत्र में वरीयता ईयू के नियमों को मिली हुई है।
इसी फैसले को पोलैंड के प्रधानमंत्री मातेउस्ज मोराविकी ने बीते जुलाई में संवैधानिक अदालत में चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा कि 2004 में जब पोलैंड ईयू का सदस्य बना, तब उसने अपनी सर्वोच्च प्राधिकार यूरोपीय कोर्ट को नहीं सौंपा था।
विश्लेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले के साथ ही पोलैंड के ईयू से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। लॉरेंट पेक ने कहा- 'पोलैग्जिट तो जुलाई में ही शुरू हो गया था, जब पोलैंड सरकार ने यूरोपीय अदालत के फैसले को ना मानते हुए मामले को संवैधानिक अदालत में ले गई। पोलैंड का ये रुख अस्वीकार्य है और इस पर ईयू का कोई दूसरा सदस्य समझौता नहीं करेगा।'
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