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आखिर क्यों Russia ने Arctic पर तैयार किया अपना आर्मी बेस?

Gulabi
24 May 2021 5:16 PM GMT
आखिर क्यों Russia ने Arctic पर तैयार किया अपना आर्मी बेस?
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Russia ने Arctic पर तैयार किया अपना आर्मी बेस

अमेरिका के साथ लगातार बढ़ते तनाव के बीच रूस (America and Russia tension) ने अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने को नया ही कदम उठाया. उसने आर्कटिक जैसे बर्फीले इलाके में अपना मिलिट्री बेस बना लिया है. ये बेस न केवल क्षेत्रफल और ताकत में काफी विशाल है, बल्कि कई सारी खूबियों से युक्त है. खुद रूसी रक्षा मंत्रालय ने अप्रैल की शुरुआत में वीडियो जारी कर ये जानकारी दी थी. बर्फ से ढंके इस इलाके में रूसी सेना के पास घातक हथियार और विमान भी शामिल हैं.


सालों से हो रही थी तैयारी

उत्तरी ध्रुव से लगभग 960 किलोमीटर दूर रूस का सैन्य बेस बना हुआ है. वहीं नाटो की नॉर्वेयिअन सीमा से इसकी दूरी महज 257 किलोमीटर है. इस बेस को आर्कटिक ट्रेफॉइल (Arctic Trefoil) नाम से जाना जाता है. रूस ने वैसे इसकी तैयारी काफी पहले से ही शुरू कर दी थी, जो साल 2017 में बनकर तैयार हो गया. हालांकि इसी चर्चा अब कई देशों के बीच तनाव बढ़ने से हुई, जिन्हें लेकर अमेरिका और रूस अलग-अलग मत रखते हैं.

कितने किलोमीटर में है फैला

आर्कटिक सागर में एक पूरा द्वीप-समूह ही रूसी सेना के पास है. इसे फ्रांस जोसेफ लैंड (Franz Josef Land) के नाम से जाना जाता है. द्वीप-समूह में कुल 192 छोटे-बड़े द्वीप हैं. इनका कुल क्षेत्रफल लगभग 16,134 स्क्वायर किलोमीटर है. द्वीप में केवल आर्मी के लोग और उनकी सहायता के लिए तैनात कर्मचारी रहते हैं यानी यहां आम लोगों का आना मना है.

रूस अपनी रक्षा के लिए कर रहा तैयारी

आर्कटिक जैसे बर्फीले तूफानों और बेहद खराब सुविधा वाले क्षेत्र में रूस का आर्मी बेस जाहिर तौर पर अमेरिका को डरा रहा है. वो बार-बार इसपर एतराज जताते हुए कह रहा है कि ऐसे इलाके में सैन्य बेस बनाने के पीछे कोई सही इरादा नहीं है. हालांकि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के मुताबिक बर्फीले इलाके आर्कटिक में रूसी सेना और हथियारों की तैनाती के पीछे रूस का भविष्य सुरक्षित करना है.

बीबीसी की एक रिपोर्ट में इस क्षेत्र के कमांडर एडमायरल एलेक्जेंडर मॉइसेयव का बयान भी है. वे कहते हैं कि बर्फीले इलाके में रूसी सैन्य बेस तैयार करने के पीछे अमेरिका और नाटो का उकसाना जाना शामिल है.
प्राकृतिक तेल निकालने की योजना भी हो सकती है

रूसी सैन्य अधिकारी दूसरी ओर ये भी कहते हैं कि यहां सैन्य बेस नहीं, बल्कि वे केवल वापसी कर रहे हैं. बता दें कि दूसरे विश्नयुद्ध के बाद से यहां कोई गतिविधि नहीं रही. खासकर सोवियत संघ के टूटने के बाद से रूस ने अपने सैनिक यहां से पूरी तरह से हटा लिए थे. अब दोबारा पूरा जमघट लगना साफ करता है कि रूस की आर्कटिक को लेकर कोई बहुत खास योजना है. एक अनुमान ये भी है कि जब बर्फ पिघलेगी तो रूस यहां से तेल और गैस निकालने की सोच रहा है.
क्यों रूस का दावा सबसे मजबूत हो सकता है?
तेल और गैस के जरिए अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के अलावा रूस दुर्गम इलाकों में अपनी सेना को रखे हुए है, ताकि आर्कटिक पर अपना दावा कर सके. वैसे कुछ हद तक रूस का ये दावा गलत भी नहीं होगा क्योंकि आर्कटिक सागर का 53% हिस्सा रूस से सटा हुआ है. ऐसे में अमेरिका और नाटो मिलकर भी रूस को आसानी से वहां से खदेड़ नहीं सकेंगे, खासतौर पर जब वहां पर रूसी सेना मजबूत दिख रही है.
यहां से नाटो की गतिविधि पर नजर रखना आसान
अमेरिका और नाटो से तनाव के बीच रूस लगातार इस कोशिश में है कि वो इनपर भारी पड़ सके और उस स्थिति में पहुंच जाए, जो सोवियत संघ के दौरान थी. इस बात का सीएनएन की एक रिपोर्ट में जिक्र है. यहां पर रडार स्टेशन है, जो चौबीसों घंटे नाटो की गतिविधियों पर नजर रखता है. साथ ही अमेरिकी आर्मी की निगरानी भी इस सेना का इरादा है.
पूरी की तैयारी
जिस ध्रुवीय जगह पर पोलर बियर जैसे जानवर और इक्का-दुक्का ही वनस्पतियां होती हैं, वहां भला रूस कैसे मजबूत बेस बना सका, ये सोचने की बात है. रूस ने इस बेस को ऐसे विकसित किया है कि यहां पर किसी भी तरह का विमान उतर सके. इससे न केवल सेना और हथियार, बल्कि रसद भी आसानी से सालभर पहुंच सकती है.
सर्दियों में न्यूनतम तापमान पर भी काम आराम से चलता है
द्वीप-समूह में सालभर मौसम काफी खराब रहता है. सर्दियों में तो यहां का तापमान -50 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला जाता है. ऐसे में रूस ने सैनिकों को सुरक्षित रखने के लिए भी तमाम इंतजाम किए हुए हैं. सीएनएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां बर्फ पर एक से दूसरे कैंप तक जाने के लिए गाड़ियों में खास तरह के ईंधन का उपयोग होता है जो कम से कम तापमान पर भी जमे नहीं और गाड़ियां सामान्य रफ्तार से चलें.
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