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सबसे ‘नाखुश’ देश बना अफगानिस्तान
दुनिया के खुशहाल और नाखुश देशों की सूची जारी (World Happiness Index) हो गई है. इस सूची में पता चला है कि अफगानिस्तान (Afghanistan) दुनिया का सबसे नाखुश देश है. यहां गौर करने वाली बात ये है कि ये स्थिति पिछले साल अगस्त में तालिबान (Taliban) के कब्जे के पहले थी. मतलब अफगानिस्तान के लोग पूर्ववर्ती सरकार से भी नाखुश थे. यह दावा विश्व हैप्पीनेस इंडेक्स रिपोर्ट (World Happiness Index Report) में किया गया है, जिसे संयुक्त राष्ट्र (United Nations) द्वारा घोषित व रविवार को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय हैप्पीनेस दिवस (International Happiness Day) से पहले जारी किया गया है.
इस वार्षिक रिपोर्ट में 149 देशों पर किए सर्वेक्षण में अफगानिस्तान को आखिरी पायदान पर रखा गया है, जिसे केवल 2.5 अंक दिया गया है.वहीं लेबनान दूसरा सबसे मायूस देश है. हैप्पीनेस रैंकिंग में नीचे से पांच अन्य देशों में बोत्सवाना, रवांडा और जिम्बाब्वे शामिल हैं. रिपोर्ट के मुताबिक लगातार चौथे साल फिनलैंड (Finland) 7.8 अंक के साथ दुनिया का सबसे खुशहाल देश रहा. इसके बाद क्रमश: डेनमार्क, स्विट्जरलैंड और नीदरलैंड का स्थान आता है. हैप्पीनेस इंडेक्स में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले अधिकतर देशों में यूरोपीय देशों का नाम शामिल है. इन देशों में जीवन का स्तर काफी बेहतर है.
किन पैमानों पर तैयार की गई रैंकिंग
रिसर्चर्स ने देशों की रैंकिंग तीन साल के आंकड़ों का विश्लेषण करने के आधार पर तैयार की है. उन्होंने विभिन्न श्रेणियों के मानकों पर संज्ञान लिया जिनमें प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, सामाजिक सुरक्षा प्रणाली, जीवन प्रत्यशा, जीवन की आजादी, आबादी की उदारता और आतंरिक व बाहरी भ्रष्टाचार के प्रति धारणा शामिल है. अफगानिस्तान (Afghanistan Happiness ranking) इन सभी छह श्रेणियों में पिछडता दिखाई दिया और यह अचंभित करने वाले नतीजे हैं क्योंकि सर्वेक्षण तालिबान के सत्ता में आने से पहले किया गया था. अफगानिस्तान में अमेरिका व अंतरराष्ट्रीय निवेशक करीब 20 साल से निवेश कर रहे थे.
अफगानिस्तान के नाखुश होने की वजह क्या है?
अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में नियुक्त विशेष महानिरीक्षक के मुताबिक उनके देश ने अकेले वर्ष 2002 से अबतक 145 अरब डॉलर विकास कार्यों पर खर्च किया है, इसके बावजूद निराशा बढ़ने के संकेत मिले. गैलप ने वर्ष 2018 में सर्वेक्षण किया था और पाया था कि सर्वेक्षण में शामिल कुछ अफगानों ने कहा था कि वे भविष्य को लेकर आशांवित हैं, जबकि अधिकतर ने कहा कि भविष्य को लेकर उन्हें कोई उम्मीद नहीं है. विश्लेषक नुसरतुल्लाह हकपाल ने कहा कि सालों से भ्रष्टाचार, गरीबी में बढ़तोरी, रोजगार की कमी से तेजी से लोग गरीबी रेखा से नीचे गए और अनिश्चित विकास ने इस निराशा के भाव को बढ़ाया.
उन्होंने कहा, 'वर्ष 2001 में तालिबान को सत्ता से बेदखल करने और अमेरिका नीत गठबंधन की जीत घोषित होने के बाद अधिकतर अफगानों को उम्मीद थी ''लेकिन दुर्भाग्य से सिपहसालारों और भ्रष्ट नेताओं का ध्यान केवल युद्ध पर था.' हकपाल ने तालिबान के काबुल पर कब्जे का संदर्भ देते हुए कहा, 'लोग गरीब से और गरीब होते गए, वे और अधिक हाताश और अप्रसन्न होते गए और इसलिए अफगानिस्तान में जो 20 साल में निवेश किया गया वह महज 11 दिनों में ध्वस्त हो गया.'
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