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विपक्ष को बिना साथ लिए संविधान संशोधन पर अड़े, राजपक्षे का नहीं बदला अंदाज,

Kajal Dubey
22 Jun 2022 1:10 PM GMT
विपक्ष को बिना साथ लिए संविधान संशोधन पर अड़े, राजपक्षे का नहीं बदला अंदाज,
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देश में लगातार गंभीर रूप लेते आर्थिक संकट और बढ़ रही राजनीतिक अस्थिरता के बीच भी श्रीलंका सरकार बिना विपक्ष से सहमति बनाए संविधान संशोधन के अपने इरादे को आगे बढ़ा रही है। वह 21वां संविधान संशोधन विधेयक को संसद की मंजूरी दिलाने पर आमादा है, जबकि विपक्ष सरकारी विधेयक का जोरदार विरोध कर रहा है।
प्रमुख विपक्षी दल ने 21वें संविधान संशोधन विधेयक का अपना ड्राफ्ट पेश किया था। तब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि विपक्षी ड्राफ्ट को संसद पारित नहीं कर सकती। बल्कि इसमें शामिल किए गए प्रावधानों पर जनमत संग्रह कराना होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को गोटाबया राजपक्षे सरकार की जीत के रूप में देखा गया है।
21वां संशोधन जरूरी
सरकार ने मंगलवार को संसद में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक प्रमुख विपक्षी दल समगई जना बालावेगया (एसजेबी) के ड्राफ्ट में शामिल एक भी प्रावधान को बिना जनमत संग्रह कराए संसद पारित नहीं कर सकती। राष्ट्रपति राजपक्षे ने कहा है- 'देश के सभी लोग- चाहे वे किसी दल के हों- यह मानते हैं कि 21वां संशोधन जरूरी है।'
एसजेबी ने अपने ड्राफ्ट में श्रीलंका की शासन प्रणाली में बदलाव का प्रस्ताव रखा था। उसके मुताबिक राष्ट्रपति की ताकत घटा कर संसदीय ढंग की पुरानी व्यवस्था बहाल हो जाती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा बदलाव तभी हो सकता है, जब इस प्रस्ताव को संसद दो तिहाई बहुमत से पास करे और फिर वह जनमत संग्रह में भी पारित हो। इस निर्णय के बाद राजपक्षे सरकार ने अपने ड्राफ्ट को पारित कराने का एलान कर दिया है।
लेकिन आलोचकों के मुताबिक सरकार ने 21वें संशोधन के अपने ड्राफ्ट को अभी तक सार्वजनिक नहीं किया है। इसलिए उसमें क्या प्रावधान शामिल हैं, यह बात अभी संसद या आम लोगों को मालूम नहीं है। इस बारे में मंत्रियों ने जो बयान दिए हैं, अभी तक उतनी ही जानकारी सार्वजनिक दायरे में है। एक मंत्री ने मीडियाकर्मियों को बताया है कि 21वां संशोधन मोटे तौर पर 20वें संशोधन को निष्प्रभावी कर देगा। इस तरह उसके जरिए राष्ट्रपति को जो अतिरिक्त अधिकार दिए गए थे, वे राष्ट्रपति के पास नहीं रह जाएंगे।
सरकार कर रही मनमानी
विश्लेषकों के मुताबिक 20वां संशोधन शुरुआत से ही विवादास्पद था। विपक्षी दल कभी उस पर राजी नहीं हुए थे। आलोचकों का कहना है कि अब फिर सरकार इस मामले में मनमानी कर रही है। वह बिना विपक्ष की सहमति हासिल किए संशोधन पास कराने के रास्ते पर आगे बढ़ रही है। इसका नतीजा यह होगा कि शासन प्रणाली को लेकर विवाद और मतभेद कायम रहेंगे।
मंत्री ने मीडियाकर्मियों से कहा- 'विपक्ष का ड्राफ्ट चूंकि संसद से पारित नहीं हो सकता, इसलिए अब विपक्ष को सरकारी ड्राफ्ट को स्वीकार करना ही होगा। हमने अपने ड्राफ्ट में वो तमाम प्रावधान शामिल किए हैं, जिन्हें बिना जनमत संग्रह कराए पास कराया जा सकता है।'
राष्ट्रपति राजपक्षे ने विपक्ष के रुख की आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि उन्होंने एसजेबी को प्रधानमंत्री पद देने की पेशकश की थी, जिसे उसने ठुकरा दिया। तब उन्होंने रानिल विक्रमसिंघे से प्रधानमंत्री बनने का अनुरोध किया। इसलिए विपक्ष को अब सरकार के संविधान संशोधन बिल का विरोध कर अड़ंगेबाजी नहीं करनी चाहिए।
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