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इस्राइल में फिलिस्तीनी निवासियों के अधिकारों की आवाज उठाने वाले मानव अधिकार संगठनों पर स्कूलों में जाकर छात्रों से बातचीत करने पर रोक लगा दी गई है।
इस्राइल में फिलिस्तीनी निवासियों के अधिकारों की आवाज उठाने वाले मानव अधिकार संगठनों पर स्कूलों में जाकर छात्रों से बातचीत करने पर रोक लगा दी गई है। ये एलान इस्राइल के शिक्षा मंत्री ने किया।
पिछले हफ्ते मानव अधिकार संगठन बी'टीसेलेम ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा था कि फिलिस्तीन के इलाकों पर कब्जा करके इस्राइल नस्लभेदी व्यवस्था चला रहा है। इस्राइली मीडिया के मुताबिक इस रिपोर्ट से नेतन्याहू सरकार बेहद नाराज हुई है। अब शिक्षा मंत्री योआव गलांत ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि जो संगठन इस्राइल को नस्लभेदी व्यवस्था कहते हैं या इस्राइली फौजियों का अपमान करते हैं, उनके स्कूलों में प्रवेश पर रोक लगा दी जाए।
अपनी रिपोर्ट में बी'टीसेलेम ने कहा था कि इस्राइल ने जिन इलाकों पर गैर-कानूनी ढंग से कब्जा किया है, वहां फिलिस्तीनी अलग- अलग रूपों में रह रहे हैं। ये कब्जा इस्राइल ने पश्चिमी किनारे, गाजा और पूर्वी यरुशलम में किया है। इन इलाकों में रहने वाले फिलिस्तीनियों को इस्राइलियों की तुलना में कम अधिकार मिले हुए हैं। बी'टीसेलेम पर स्कूलों में जाने पर प्रतिबंध रविवार को लगाया गया। लेकिन सोमवार को इस ग्रुप ने कहा कि सरकार के ऐसे कदमों से उसे डिगाया नहीं जा सकता। उसने कहा कि उसके कार्यकर्ताओं ने प्रतिबंध लगने के बाद हाइफा के स्कूल के छात्रों को वर्चुअल माध्यम से संबंधित किया है।
बी'टीसेलेम ने कहा- हम हकीकत को जुटाकर उनके दस्तावेज बनाने, उसका विश्लेषण करने और अपने निष्कर्षों को इस्राइली जनता और सारी दुनिया को बताने के लिए संकल्पबद्ध हैं। इस संगठन ने कहा, शिक्षा मंत्री ने स्कूलों को बी'टीसेलेम पर प्रतिबंध का आदेश देते समय कहा कि वे झूठ के खिलाफ हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि वे एक यहूदी और लोकतांत्रिक इस्राइल के समर्थक हैं। लेकिन असल बात यह है कि शिक्षा मंत्री झूठ बोल रहे हैं। इस्राइल को लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यहां एक समूह के ऊपर दूसरे समूह यानी फिलिस्तीनियों के ऊपर यहूदियों के वर्चस्व को जारी रखने के उपाय अपनाए जाते हैं।
इस्राइल में मौजूद अरब मूल के बाशिन्दों से संबंधित एक वैधानिक अधिकार संगठन अदालाह ने देश के अटार्नी जनरल से अपील की है कि वे शिक्षा मंत्री के आदेश को रद्द कर दें। इस संगठन का आरोप है कि शिक्षा मंत्री ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर वैध आवाजों को दबाने के लिए ये आदेश जारी किया है।
इस्राइल में 2018 में एक कानून पारित किया गया था, जिसके तहत इस्राइली फौजियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग करने वाले संगठनों के स्कूलों में जाकर भाषण देने पर रोक लगाने का प्रावधान है। अभी ये साफ नहीं है कि क्या इस्राइली शिक्षा मंत्री ने ताजा आदेश इसी कानून के तहत जारी किया है। इस्राइल का यह दावा रहा है कि वह एक लोकतंत्र है, जहां फिलिस्तीनियों को भी समान अधिकार मिले हुए हैं। इस्राइल में फिलिस्तीनी आबादी देश की कुल आबादी का 20 फीसदी है।
लेकिन इस्राइली दावे के उलट विश्लेषकों का मानना है कि इस्राइल में फिलिस्तीनियों के साथ तीसरे दर्जे के नागरिक जैसा व्यवहार किया जाता है। देश में लगभग 60 ऐसे कानून हैं, जिनके जरिए आवास, शिक्षा और हेल्थकेयर सेक्टरों में फिलिस्तीनियों के साथ-साथ भेदभाव होता है। बी'टीसेलेम की रिपोर्ट में इन तथ्यों का उल्लेख किया गया है और इस्राइल पर नस्लभेदी राज होने का आरोप लगाया गया है।
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