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काबुल में रहने वाली महिला ने सुनाई दास्तां, छिपकर रहने को मजबूर

Subhi
29 Jan 2022 1:17 AM GMT
काबुल में रहने वाली महिला ने सुनाई दास्तां, छिपकर रहने को मजबूर
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तालिबानी राज में अफगानी महिलाओं (Afghan Women) की जिंदगी पूरी तरह बदल गई है. उन पर कई तरह की पाबंदियां लगाईं गईं हैं, यहां तक कि उन्हें अकेले घर से निकलने तक की इजाजत नहीं है.

तालिबानी राज में अफगानी महिलाओं (Afghan Women) की जिंदगी पूरी तरह बदल गई है. उन पर कई तरह की पाबंदियां लगाईं गईं हैं, यहां तक कि उन्हें अकेले घर से निकलने तक की इजाजत नहीं है. यदि महिलाओं का बाहर जाना जरूरी है, तो किसी पुरुष का होने साथ होना अनिवार्य है. ऐसे में उन महिलाओं के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है, जो तलाकशुदा हैं या अकेले रहती हैं. ये महिलाएं अब पुरुषों की तरह तैयार होकर घर से निकलती हैं, ताकि कोई उन्हें पहचान न ले.

'पहचान लिया, तो मौत निश्चित है'

UAE की वेबसाइट 'द नेशनल' ने एक तलाकशुदा महिला की कहानी बताई है, जो पुरुषों की तरह रहने को मजबूर हैं. इस महिला ने तालिबान (Taliban) के डर से अपना असली नाम नहीं बताया, बल्कि मशहूर लेखिका राबिया बाल्कि (Rabia Balkhi) के नाम से अपनी मजबूरी बयां की. राबिया ने बताया कि किसी न किसी काम से घर से बाहर निकलना ही पड़ता है, लेकिन अगर तालिबानी लड़ाकों ने एक महिला को अकेले देख लिया तो फिर मौत निश्चित है. इसलिए मैं पुरुषों के गेटअप में घर से बाहर निकलती हूं.

राबिया ने आगे कहा, 'मैं घर से बाहर निकलने से पहले ढीली शर्ट, पेंट, पारंपरिक पगड़ी पहनती हूं. सड़क पर चलते समय मेरी निगाहें नीचे रहती हैं, ताकि कोई किसी भी तरह से मुझे पहचान न ले. तालिबान का फरमान है कि कोई महिला अकेले बाहर न निकले. ऐसे में यदि वो मुझे पहचान लेता है, तो मौत निश्चित है'. अपना दुख बयां करते हुए वो कहती हैं कि अफगानिस्तान (Afghanistan) में महिला होना ही गुनाह है, खासतौर से तालिबान के आने के बाद स्थिति बदतर हो गई है. अगर आप सिंगल मदर या तलाकशुदा है तो फिर हर सांस की कीमत देनी होती है. मैं 29 साल की तलाकशुदा और एक बेटी की मां हूं. फिलहाल, हम काबुल में छिपकर रह रहे हैं.

दूसरी शादी का बना रहे थे दबाव

राबिया ने बताया कि तालिबानी के कब्जे के बाद उनके पूर्व पति ने मेरी बच्ची को तालिबान को सौंपने को कहा था. मुझ पर दूसरी शादी का भी दबाव बनाया गया, लेकिन मैंने दोनों में से कोई बात नहीं मानी. तालिबानी कब्जे के पहले मैं एक एनजीओ के ऑफिस में काम करती थी. तालिबान के डर से मैं काबुल आ गई. उन्होंने कहा कि दिसंबर में मुश्किल तब बढ़ गई जब तालिबान ने फरमान जारी किया कि कोई भी महिला अकेले घर से नहीं निकल सकती. उसके साथ मेहरम (कोई मेल यानी पुरुष गार्डियन) होना जरूरी है. ऑटो और टैक्सी भी चेक की जाने लगीं. इसके बाद मुझे खुद को पुरुष की तरह ढालना पड़ा.

तालिबान का किया था विरोध

राबिया ने बताया कि उन्होंने तालिबान के इस फैसले का विरोध भी किया. उन्होंने अफगानी पुरुषों की तरह कपड़े पहने और एक सहेली से फोटो खिंचाए, जिन्हें उन्होंने सोशल मीडिया पर डाल दिया. कैप्शन दिया- मैं महिला हूं और मेरा कोई मेल गार्डियन नहीं. इसके बाद कुछ महिलाओं ने काबुल की सड़कों पर तालिबानी फरमान के खिलाफ प्रदर्शन किया. मैं भी उनमें शामिल हो गई. कुछ महिलाओं ने हमें ऑनलाइन सपोर्ट दिया. इनमें एक नाम लिली हामिदी का भी था. हम तालिबान को ये बताना चाहते थे कि वो हमारी आवाज को ज्यादा देर तक दबा नहीं सकते.


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