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शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक खुराक वाली इंट्रानेजल थेरेपी का विकास किया, टीआइपी दिया नाम

Rounak Dey
10 Sep 2022 11:00 AM GMT
शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक खुराक वाली इंट्रानेजल थेरेपी का विकास किया, टीआइपी दिया नाम
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जिन्हें वह निशाना बनाती है, इसलिए वह वायरस के विकास को भी रोकने में सक्षम होती है।

भारतवंशी विज्ञानी सोनाली चतुर्वेदी समेत अमेरिकी शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक खुराक वाली इंट्रानेजल थेरेपी का विकास किया है, जो न सिर्फ कोविड के विभिन्न वैरिएंट के लक्षणों को कम करती है, बल्कि वायरस से बचाती भी है। अध्ययन निष्कर्ष प्रोसी¨डग्स आफ द नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है। सैन फ्रांसिस्को स्थित ग्लैडस्टोन इंस्टीट्यूट्स की टीम ने नाक के जरिये दी जाने वाली इस एंटीवायरल को थेराप्युटिक इंटरफे¨रग पार्टिकल (टीआइपी) नाम दिया है।


विज्ञानियों ने बताया कि टीआइपी न सिर्फ संक्रमित जीवों से निकलने वाले वायरस की मात्रा को कम कर सकती है, बल्कि उसके प्रसार को भी सीमित कर सकती है। अध्ययन की प्रथम लेखिका सोनाली कहती हैं, 'हमारी जानकारी के अनुसार यह एक मात्र ¨सगल डोज एंटीवायरल है, जो न सिर्फ कोविड-19 के लक्षणों व गंभीरता को कम करती है, बल्कि वायरस के प्रसार को भी रोकती है।'

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सार्स सीओवी-2 समेत अन्य रेस्पिरेटरी वायरस के प्रसार को सीमित करना किसी भी एंटीवायरल व वैक्सीन के लिए सबसे कड़ी चुनौती रही है। ग्लैडस्टोन के वरिष्ठ शोधकर्ता लियोर वेनबर्गर के अनुसार, 'यह अध्ययन बताता है कि टीआइपी की एक खुराक प्रसारित होने वाले वायरस की मात्रा को सीमित कर देती है और संक्रमित जीवों के संपर्क में आने वाले अन्य जीवों का बचाव करती है।'

चतुर्वेदी ने कहा, 'पिछले कुछ वर्षों में, महामारी की कई चुनौतियां नए रूपों के उद्भव से संबंधित हैं।'

टीआइपी की क्षमता संक्रिमत कोशिकाओं में मौजूद वायरस को दबाने से कहीं ज्यादा है। चूंकि टीआइपी उन कोशिकाओं के भीतर मौजूद रहती है, जिन्हें वह निशाना बनाती है, इसलिए वह वायरस के विकास को भी रोकने में सक्षम होती है।

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