श्रीलंका में महीनों से सुलग रहे गुस्से का लावा शनिवार को अचानक फूट पड़ा तो लगा पूरा देश कोलंबो में सड़कों पर उमड़ पड़ा। इसके साथ ही सत्ता से चिपके बैठे राष्ट्रपति गोतबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति भवन छोड़कर भागना पड़ा। सुरक्षा में तैनात हजारों सैन्य और पुलिस जवान भी वहां से भाग निकले। राजधानी कोलंबो में जमा लाखों प्रदर्शनकारियों ने कहा, बदलाव के जिस वक्त का हम इंतजार कर रहे थे, वो आ गया है। गोतबाया के भागने से जनता में खुशी है और गुस्सा कुछ कम हुआ है।
प्रदर्शनकारियों ने कहा, भुखमरी के हालात ने उन्हें सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया है। अब हम इस सरकार को उखाड़ फेंकने के संकल्प के साथ आए थे। प्रदर्शनकारियों ने कहा, हमारे पास तेल नहीं होने से गाड़ियां नहीं चला पा रहे हैं। इसलिए सारे लोग पैदल ही प्रदर्शनस्थल तक तक पहुंच रहे हैं।
उदास देश में जश्न का दिन
एक प्रदर्शनकारी बुजुर्ग ने कहा, गंभीर आर्थिक संकट ने उन्हें और उनके परिवार को बुरी तरह तोड़ डाला है। मैं दवाओं पर निर्भर हूं, लेकिन वे भी मिलना बंद हो चुकी हैं। मेरे बच्चे और पत्नी भी प्रदर्शन में शामिल हैं। राष्ट्रपति गोतबाया भाग गए हैं। उदास श्रीलंका में आज जश्न का दिन है। हर कोई खुश है।
आजादी के बाद सबसे बड़ा आर्थिक संकट
श्रीलंका में लोगों को रोजमर्रा से जुड़ी चीजें भी कई गुना महंगी मिल रही हैं। विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो चुका है, जिससे जरूरी चीजों का आयात नहीं हो रहा। पेट्रोल-डीजल के लिए कई किलोमीटर लंबी लाइनें हैं।
राजपक्षे परिवार ने सभी पदों पर कब्जा किया, 45 हजार करोड़ विदेश भेजे
राजपक्षे कुनबे ने सभी प्रमुख पदों पर कब्जा किया। महिंदा प्रधानमंत्री बने तो भाइयों गोतबाया को राष्ट्रपति, बासिल राजपक्षे को वित्त मंत्री, चामल राजपक्षे को सिंचाई व कृषि मंत्री व बेटे नामल राजपक्षे को खेल मंत्री बना दिया। देश का 70% बजट इन पांचों के नियंत्रण में आ गया। करीब 45 हजार करोड़ रुपये विदेश भेज दिए। यह रकम 2021 में देश से निर्यात हुए उत्पादों के मूल्य की एक-तिहाई है।
राजपक्षे सरकार के गलत फैसलों से डूब गया देश
राजपक्षे कुनबे ने श्रीलंका को नुकसान पहुंचाने वाले कई निर्णय लिए। महिंदा राजपक्षे ने 700 करोड़ डॉलर की गैर-जरूरी परियोजनाओं के लिए चीन से लोन लिया। इस कर्ज से बने एयरपोर्ट पर उड़ानें तक नहीं थीं। नतीजे में हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल के लिए चीन को देना पड़ा। महिंदा व गोतबाया ने तमिलों को क्रूरता से कुचला, जिससे यह समुदाय आर्थिक विकास से कट गया। खेती को 'ऑर्गेनिक' बनाने के लिए रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध लगाए गए, जिससे उत्पादन तेजी से गिरा। चामल और नामल ने पैसा विदेश पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई। महिंदा के भाई व वित्त मंत्री बासिल 'मिस्टर 10 परसेंट' कहलाते थे।