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जो ग्लोबल वार्मिंग के विनाशकारी प्रभाव को प्रदर्शित करता है।
स्काटलैंड के ग्लासगो शहर में शुरू हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के मद्देनजर इस शहर के सम्मान में सुदूर अंटार्कटिका में एक ग्लेशियर का नाम 'ग्लासगो ग्लेशियर' रखा गया है। तेजी से पिघल रहे 100 किलोमीटर लंबे हिमशैल का लीड्स विश्र्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने काप-26 शिखर सम्मेलन के अवसर पर औपचारिक नामकरण किया है। यह इस बात की याद दिलाता है कि जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में तत्काल कार्रवाई कितनी जरूरी है।
ग्लासगो के अलावा आठ नए ग्लेशियरों का नाम जिनेवा, रियो, बर्लिन, क्योटो, बाली, स्टाकहोम, पेरिस और इंचियन रखा गया है। सभी उन शहरों के नाम पर हैं जहां संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण जलवायु शिखर वार्ताओं के आयोजन हुए हैं। लीड्स स्कूल आफ अर्थ एंड एनवायरमेंट की पीएचडी शोधार्थी हीथर सेली ने पश्चिम अंटार्कटिका के गेज बेसिन में 14 ग्लेशियरों की पहचान की है जो जलवायु परिवर्तन के कारण 1994 से 2018 के बीच 25 प्रतिशत के औसत से पिघल रहे हैं।
फरवरी 2021 में प्रकाशित सेली के एक अध्ययन के अनुसार पिछले 25 साल में क्षेत्र से 315 गीगाटन बर्फ पिघल चुकी है। यह ओलंपिक आकार के 12.6 करोड़ स्वीमिंग पूल के अंदर आने वाले पानी के बराबर हो सकती है। सेली और डा अन्ना हाग ने अनुरोध किया था कि अध्ययन में नौ अज्ञात ग्लेशियरों का नाम प्रमुख जलवायु संधियों, रिपोर्टों और सम्मेलनों के स्थानों के नाम पर रखा जाना चाहिए। उनका प्रस्ताव ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया था और यूके अंटार्कटिक प्लेस-नेम कमेटी ने इसका समर्थित किया था।
नक्शे, चार्ट और भविष्य के प्रकाशनों में इस्तेमाल के लिए नाम अब अंटार्कटिका के लिए इंटरनेशनल कंपोजिट गजेटियर में जोड़े जाएंगे। अंटार्कटिका में पिखलते बर्फ की छवियां जलवायु परिवर्तन का पर्याय बन गई हैं। पिछले 40 वर्षों में उपग्रहों की मदद से ग्लेशियरों के प्रवाह में परिवर्तन और बर्फ की चादर को तेजी से पतला होते देखा गया है, जो ग्लोबल वार्मिंग के विनाशकारी प्रभाव को प्रदर्शित करता है।
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