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अमेरिका की नस्लभेदी स्वास्थ्य प्रणाली का ही नतीजा है कि 4% वाली वैश्विक आबादी वाले अमेरिका में विश्व के 25% वैश्विक कोरोना के मामले थे.
पूरी दुनिया को मानवाधिकार का पाठ पढ़ाने वाले, मानवाधिकार के हनन के नाम पर दुनिया के कई देशों पर प्रतिबंध और हमला तक करने वाले अमेरिका को आईना दिखाया गया है. मानवधिकारों के लिए काम करने वाली भारतीय संस्था Centre for Democracy, Pluralism and Human Rights (CDPHR) ने अमेरिका में मानवाधिकार हनन पर एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट ने अमेरिका के उन तमाम दावों की पोल खोल दी है जिनकी बुनियाद पर वह खुद को दुनिया का सबसे ताकतवर देश बताता है.
आज भी दास प्रथा का कानून
CDPHR ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि अमेरिका का संविधान किस तरह आज भी दास-प्रथा (Slavery) के समर्थन में खड़ा हुआ है और दास-प्रथा के समर्थन में बने संविधान के भागों को ना ही आज तक हटाया गया और ना ही परिवर्तन किया गया. CDPHR की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी संविधान के चौथे आर्टिकल का तीसरा क्लॉज़ (Clause) गुलाम बनाने वाले व्यक्ति को गुलाम को साथ रखने के लिए अधिकृत करता है और गुलाम के भागने पर कड़ी सजा तक का प्रावधान है.
CDPHR की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया और न्यूयॉर्क प्रान्त के संविधान में ऐसे प्रावधान हैं जो अमेरिका के मूल निवासी यानी रेड इंडियंस को रहने के लिए घर तक मुहैया नहीं करवाते हैं. अमेरिका खुद को विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र होने का दावा करता है लेकिन CDPHR की रिपोर्ट के के मुताबिक अमेरिकी कानून और वहां की अदालतें जिन पर इंसाफ देने की जिम्मेदारी है वो खुद नस्लभेद का गढ़ हैं.
नस्लभेद का अड्डा है अमेरिका
CDPHR के मुताबिक अमेरिका में वर्ष 1994 में एक ऐसा कानून बनाया गया था जिसकी वजह से अमेरिका में एक ही तरह का अपराध करने पर अश्वेतों को श्वेतों के मुकाबले ज्यादा कड़ी सज़ा होती है. वहीं अमेरिका की अदालतें तो नस्लभेद का इतना बड़ा अड्डा हैं कि वहां ज्यादातर बड़ी पोजीशन पर श्वेत ही बैठे हैं और अश्वेत को क्लर्क तक की नौकरी ढूंढने में मुश्किल आती है.
रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका पूरी दुनिया को भेदभाव ना करने की सलाह देता है लेकिन वहां के मीडिया संस्थानों से लेकर शिक्षण संस्थानों में पढ़े लिखे होने के बावजूद अश्वेतों की भागीदारी ना के बराबर है और इन जगहों पर सिर्फ उन्हीं अश्वेतों को नौकरी मिलती है जो श्वेतों के एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं. ऐसा ही हाल अमेरिका की चर्चों का भी है वहां भी अगर चर्च का पादरी अश्वेत होगा तो भी चर्च को चलाने वाला श्वेत ही होगा.
अश्वेतों के खिलाफ अभियान
अमेरिका में किस कदर अश्वेतों की जनसंख्या कम करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है, इस बात को भी CDPHR ने अपनी रिपोर्ट में मेंशन किया है. रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में प्लांड पैरेंटहुड नाम का एनजीओ जिसे श्वेत कंट्रोल करते हैं वो अश्वेतों की आबादी को कम करने के उद्देश्य से वहां अश्वेतों को बहला फुसला कर उनका एबॉर्शन तक करवाता है ताकि अमेरिका में अश्वेत जनसंख्या और कम हो सके.
CDPHR के मुताबिक दुनिया को धार्मिक स्वतंत्रता का ज्ञान देने वाला अमेरिका खुद धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करता है और वहां के जोनिंग कानून हिन्दुओं, बौधों को धार्मिक स्थान बनाने से रोकते हैं. जिसके उलट अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया में 7वीं और 8वीं क्लास के बच्चों को बाइबिल के चमत्कार इतिहास का हिस्सा बता कर पढ़ाए जाते हैं.
रेप और यौन शोषण के मामले
CDPHR के मुताबिक अमेरिका में वहां के मूल निवासी रेड इंडियंस को इस तरह प्रताड़ित और गरीबी में रखा जाता जा की 68% रेड इंडियंस की सालाना आय अमेरिका की औसत आय से कम है और 20% रेड इंडियंस की सालाना आय तो महज 5 हज़ार डॉलर ही है. अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियंस पर अत्याचार के अध्याय में रेड इंडियंस औरतों के बलात्कार की दर अमेरिका के औसत बलात्कार की दर से ढाई गुना ज्यादा है और बच्चों का शोषण दो गुना.
अमेरिका में महिला सुरक्षा पर भी CDPHR ने अपनी रिपोर्ट में सवाल उठाये हैं और CDPHR के मुताबिक 5 से 1 अमेरिकी महिला से बलात्कार या बलात्कार का प्रयास हुआ है. जबकि बच्चों के यौन शोषण की बात करें तो वर्ष 2014 तक अमरीका में 4 करोड़ से ज्यादा बच्चों थे जिनका यौन उत्पीड़न हुआ था. CDPHR ने अमेरिका में रेप के मामलों पर सवाल उठाते हुए अपनी रिपोर्ट में बताया कि अमेरिका में जिन महिलाओं का रेप हुआ था उसमें आधी महिलाओं का बलात्कार उनके साथी या जानने वाले ने किया था.
वोटिंग प्रक्रिया में धांधली
अमेरिका के लोकतंत्र और चुनावी प्रणाली पर सवाल उठाते हुए CDPHR ने कहा कि अमेरिका में आज भी कई अश्वेतों के वोटर आईडी कार्ड नहीं बने हैं. कई मौकों पर तो अश्वेतों के वोट तक की गिनती नहीं की गई ताकि श्वेत जनता जिसे जिताना चाहती है वो जीत जाए. वर्ष 2000 में अमेरिका में वोटिंग फ्रॉड के 1300 मामले सामने आए थे जिसमें अश्वेत बाहुल्य पोलिंग स्टेशन के वोटों वाले बैलट बॉक्स को गायब कर दिया गया था. CDPHR के मुताबिक अमेरिका का लोकतंत्र तो ऐसा है कि वहां सिर्फ दो पार्टी डेमोक्रेट और रिपब्लिकन मौजूद हैं. तीसरी विचारधारा वाले को तो चरमपंथी करार दिया जाता है.
अमेरिका की स्वास्थ्य सेवाओं में भी उसकी नस्लभेदी नीति की झलक दिखती है. CDPHR के मुताबिक अमेरिका में हिस्पैनिक आबादी कुल आबादी का 18% लेकिन कोरोना से होने वाली मौतों में 24% थी. इसी तरह अश्वेत कुल आबादी में 13% है लेकिन कोरोना की मौतों में 14% थी. CDPHR के मुताबिक अमेरिका की नस्लभेदी स्वास्थ्य प्रणाली का ही नतीजा है कि 4% वाली वैश्विक आबादी वाले अमेरिका में विश्व के 25% वैश्विक कोरोना के मामले थे.
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