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9/11 Attack: अमेरिका में हमले के 20 बरस बाद भी नहीं बदली आतंक की तस्वीर, ये 5 बातें खोलती हैं अमेरिका की पोल

Renuka Sahu
11 Sep 2021 5:27 AM GMT
9/11 Attack: अमेरिका में हमले के 20 बरस बाद भी नहीं बदली आतंक की तस्वीर, ये 5 बातें खोलती हैं अमेरिका की पोल
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फाइल फोटो 

20 फरवरी 2020 को न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में अफगानिस्तान के गृह मंत्री और प्रतिबंधित हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानीने ‘एक नए, समावेशी राजनीति का झूठा वादा किया.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। 20 फरवरी 2020 को न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख में अफगानिस्तान के गृह मंत्री और प्रतिबंधित हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्कानी (Sirajuddin Haqqani) ने 'एक नए, समावेशी राजनीति का झूठा वादा किया. एक ऐसी व्यवस्था जिसमें हर अफगानी की आवाज शामिल करने का वादा था. जिससे कि कोई भी अफगानी खुद को अलग महसूस न करे. लोगों को कुछ ऐसी ही उम्मीदें 9/11 के आतंकी हमलों (9/11 Attack) के बाद भी थी. लेकिन दो दशक बाद भी तस्वीर नहीं बदली है. जिस सिराजुद्दीन हक्कानी को दुनिया ने आतंकी कहा और अमेरिका ने उस पर 5 मिलियन डॉलर का इनाम रखा वो आज तालिबान सरकार का गृहमंत्री मंत्री है.

अमेरिका ने पिछले 20 सालों में अफगानिस्तान में तालिबान को खदेड़ने के लिए 825 अरब डॉलर से अधिक खर्च किया. इसके अलावा पुनर्निर्माण पर 130 अरब डॉलर लगाया गया. तालिबान और अल कायदा के खिलाफ 2001 से युद्ध में कम से कम 2300 अमेरिकी सैनिकों की मौत हुई. लेकिन आज अमेरिका आतंक के मोर्चे पर 20 साल पीछे चला गया है. जिस आतंकी के खिलाफ उसने लड़ाई लड़ी थी, उन्हें ही आज उसने सत्ता सौंप दी.
9/11 के बाद अमेरिकी सेना द्वारा अफगानिस्तान पर 20 साल के सैन्य कब्जे ने कई मिथकों को तोड़ दिया है, जिससे अमेरिका की भविष्य की क्षमता और दुनिया पर प्रभाव डालने की क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. 9/11 को न्यूयॉर्क में ट्विन-टॉवर हमलों के जवाब में 7 अक्टूबर 2001 को अमेरिका ने ऑपरेशन शुरू किया था. लेकिन ये हैं वो 5 बडे़ कारण जो अमेरिका की ताकतवर छवी को तोड़ती है.
1.अमेरिकी सेना की हार
अफगानिस्तान में युद्ध वियतनाम के बाद अमेरिकी इतिहास का सबसे लंबा युद्ध है. वियतनाम में भी अमेरिका की हार हुई थी और 1975 उनके सैनिक वहां से निकल गए थे. जिस तरह वर्षों से अमेरिकी सेना के लिए अफगान जनता का समर्थन कम हो गया, उसी तरह अमेरिकी सेना ने भी दुश्मन से लड़ने की प्रेरणा खो दी. भारत ने श्रीलंका में तीन साल (1987-1990) से भी कम समय में इसे सीखा, जिसमें लगभग 90,000 सैनिक तैनात थे. सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में 10 वर्षों में वही सबक सीखा, हमेशा के लिए युद्ध अस्थिर होते हैं, और अमेरिकियों को तालिबान और उसके सहयोगियों के खिलाफ एक निर्णायक नॉक-आउट पंच के लिए जाना चाहिए था न कि एक जानबूझकर लंबी-लंबी लड़ाई.
2 तालिबान की जीत और ISI की पकड़
कहा जा रहा है कि तालिबान ने इस लड़ाई को पाकिस्तान की मदद से जीता. आईएसआई, ने वहां सुन्नी समुदाय के लड़ाकों को भेजा. ISI ने इस्लामी कैडर, हथियार, गोला-बारूद, खुफिया, रणनीति और चिकित्सा सहायता की. पाकिस्तान समस्या और समाधान दोनों था और जब तक आईएसआई का मुख्यालय रावलपिंडी युद्ध में नतमस्तक नहीं हुआ, तब तक अमेरिका कभी नहीं जीत सकता था. लगभग एक दशक पहले, अक्टूबर 2011 में, तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने पाकिस्तानी नेतृत्व से स्पष्ट रूप से कहा था कि वो अपने पड़ोसियों पर हमला करने के लिए अपने यहां 'सांप' नहीं पाल सकता.
3 अल कायदा और तालिबान के रिश्ते
भले ही अमेरिकी सैनिक वापस लौट गए हों, लेकिन 17 अगस्त को जारी ऑपरेशन फ्रीडम की एक रिपोट् में कहा गया है कि तालिबान और अल कायदा के रिश्ते अब बी मजबूत हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जून की एक रिपोर्ट में कहा था कि अल कायदा नेतृत्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अफगानिस्तान में और पाकिस्तान में सीमा के पार रहता है. सात ही ये कहा गया कि इन्हें हक्कानी नेटवर्क भी मदद कर रहा है.
4 इराक और अफगानिस्तान से अमेरिका का ध्यान भटका, चीन को फायदा
2018 में एक अमेरिकी राष्ट्रीय रक्षा रणनीति रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरराज्यीय प्रतिस्पर्धा अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा में प्राथमिक चिंता थी. कहा जा रहा है कि इराक और अफगानिस्तान की तरफ अमेरिका का ध्यान जाने से चीन को फायदा हुआ. चीन को एक आर्थिक और सैन्य शक्ति बनने में मदद मिली. चीन अब दुनिया को ये बताने की कोशिश कर रहा है कि अफगानिस्तान में अमेरिका की हार हुई.
5. पुराने रुख से नहीं बदला है तालिबान
तालिबान कैबिनेट में 33 में से 17 मंत्रियों को संयुक्त राष्ट्र या अमेरिका या दोनों द्वारा वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित किया गया है. सरकार में किसी महिला या अल्पसंख्यक का प्रतिनिधित्व नहीं है. दो दशकों की लड़ाई के बाद, तालिबान अधिक कट्टरपंथी हो गए हैं क्योंकि उनका मानना ​​है कि उन्होंने शक्तिशाली अमेरिकी सेना को हरा दिया.


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