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अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने की एक कठिन चुनौती होगी.
श्रीलंका में आर्थिक संकट गहराता जा रहा है. बुनियादी जरूरतों के लिए भी लोग बेबस हैं. प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे हुए हैं. इस बीच पुलिस ने 31 साल के संदिग्ध को गिरफ्तार किया है, जिस पर प्रदर्शन के दौरान पुलिस के 50 आंसू गैस के कनस्तर चुराने का आरोप है. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस शख्स ने 13 जुलाई को उस वक्त कनस्तर चुरा लिए, जब पुलिस और आर्मी संसद की ओर बढ़ रहे प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने में जुटे थे.
पुलिस वाहन पर किया था हमला
प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के तीन पहियों वाले वाहन पर हमला किया जो आंसू गैस के कनस्तर पोल्डुवा जंक्शन विरोध स्थल पर ले जा रहा था. घटना के बाद इस मामले की जांच की गई. रविवार को पुलिस ने बताया कि उन्होंने आरोपी ओबेसेकरपुरा को गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के बाद बोरेल्ला के उसके आवास से 50 आंसू गैस के कनस्तर बरामद कर लिए.
श्रीलंका में इमरजेंसी घोषित
श्रीलंका के कार्यकारी राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी है, जो आज से लागू हो गई. डेली मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति ने एक गजट नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसमें कहा गया कि श्रीलंका में सार्वजनिक सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था की सुरक्षा और समुदाय के जीवन के लिए जरूरी आपूर्ति और सेवाओं के रखरखाव के हित में आपातकाल घोषित किया गया है.
1948 के बाद सबसे मुश्किल आर्थिक संकट
श्रीलंका 1948 में ब्रिटिश शासन से आजादी मिलने के बाद सबसे गंभीर आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है. देश में विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी के चलते खाद्य उत्पादों, ईंधन और दवाओं जैसी जरूरी चीजों के आयात पर बुरा असर पड़ा है. विदेशी लोन 50 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया है. इस साल श्रीलंका को 7 अरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज चुकाना है. श्रीलंका में संकट मार्च में शुरू हुआ, जब चंद लोग एक छोटे से समूह में एकत्र हुए और मिल्क पाउडर, नियमित बिजली आपूर्ति जैसी बुनियादी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन करने लगे.
रसोई गैस-ईंधन के लिए लगने लगीं लाइनें
कुछ ही दिन में इस आर्थिक संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया और लोगों को ईंधन व रसोई गैस हासिल करने के लिए कई मील लंबी कतारों में इंतजार करने को मजबूर होना पड़ा. साथ ही कई घंटे तक बिजली गुल रहने लगी. चिलचिलाती धूप में लंबी-लंबी कतारों में लगे रहने के चलते करीब 20 लोगों की मौत हो गई. लोगों की मुश्किलें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं और वे सरकार की प्रतिक्रिया, सकारात्मक प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे थे. लेकिन राजपक्षे सरकार ने कोई समाधान पेश नहीं किया और लोगों की परेशानियां बढ़ती गईं.
अप्रैल में दिवालिया हो गया था श्रीलंका
सरकार ने अप्रैल के मध्य में देश को दिवालिया घोषित करते हुए अंतरराष्ट्रीय कर्ज उतारने से इनकार कर दिया. इन हालात में कालाबाजारी बढ़ने लगी और लोगों को कतार में लगने के लिए पैसे देने पड़े. साथ ही ईंधन कानूनी खुदरा मूल्य से चार गुणा अधिक दाम पर बेचा जाने लगा.
सड़कों पर उतरे लोग
जब कोई उपाय नहीं बचा तब पूरे श्रीलंका में लोग सड़कों पर उतर आए और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे, उनके बड़े भाई प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे की मांग करने लगे. लगभग दो दशक तक श्रीलंका में शासन करने वाले शक्तिशाली राजपक्षे परिवार को देश की आर्थिक बर्बादी का जिम्मेदार ठहराया जाने लगा. मई में, प्रधानमंत्री महिंदा के समर्थकों ने सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला किया, तो उन्होंने भी पद से इस्तीफा दे दिया. इसके साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में राजपक्षे परिवार के विश्वासपात्र लोगों के खिलाफ हिंसा शुरू हो गई.
आवास छोड़कर भागे गोटबाया
जुलाई में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होने के कारण राष्ट्रपति गोटबाया को अपने आधिकारिक आवास से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. हालांकि इससे पहले उन्होंने नव-नियुक्त प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे के साथ कुछ हफ्तों तक संकट से निपटने की कोशिश की.राष्ट्रपति गोटबाया 13 जुलाई को मालदीव भाग गए और फिर वहां से सिंगापुर चले गए, जहां से उन्होंने अपना इस्तीफा भेज दिया.
श्रीलंका की संसद ने नए राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने के लिए शनिवार को एक विशेष सत्र आयोजित किया, जो अगली सरकार का नेतृत्व करेगा. नए राष्ट्रपति के सामने देश की दिवालिया हो चुकी अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने की एक कठिन चुनौती होगी.
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