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पिछली साल इतनी गर्मी पड़ी जैसे हर सेकेंड 30 परमाणु बम गिराए जा रहे हो
पिछली साल इतनी गर्मी पड़ी जैसे हर सेकेंड 30 परमाणु बम गिराए जा रहे हो. यह हम नहीं कह रहे...दुनियाभर के 14 बड़े प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थानों के 23 शोधकर्ताओं का दावा है. इस गर्मी को अगर अंकों में लिखेंगे तो आपके लिए गिनती करना मुश्किल हो जाएगा. क्योंकि साल 2021 लगातार छठा सबसे गर्म साल था. इस साल दुनियाभर के समुद्रों ने 14 सेक्सिटिलियन जूल्स गर्मी सोखी. यानी 14,000,000,000,000,000,000,000 जूल्स. यह संख्या डराती है. क्योंकि इससे समुद्र का जलस्तर बढ़ता है. वजह आर्कटिक, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक की बर्फ का पिघलना है.
वैज्ञानिकों ने अपनी स्टडी में बताया कि साल 2020 की तुलना में 2021 में दुनियाभर के समुद्र 70 फीसदी ज्यादा गर्म हुए. यानी समुद्र की ऊपरी परत जो 2 किलोमीटर गहरी होती है. वहां पर 14,000,000,000,000,000,000,000 जूल्स गर्मी सोखी गई. जूल्स (Joules) गर्मी को मापने का पैमाना है. करोड़ों साल पहले डायनासोरों को खत्म करने वाले एस्टेरॉयड की टक्कर से बने मेक्सिको के चिक्सुलूब क्रेटर से जितनी गर्मी निकली थी, यह उसका मात्र एक फीसदी है.
दुनिया भर से जुटे इन 23 वैज्ञानिकों ने इतनी भयावह रिपोर्ट दी है, जो भविष्य के संभावित खतरों के बारे में बताती है. दुनिया के सारे समुद्र लगातार गर्म होते जा रहे हैं. बर्फ पिघलती जा रही है. साल 2020 और 2021 में ला नीना का प्रभाव काफी ज्यादा रहा इसके बावजूद समुद्र इतने ज्यादा गर्म हो गए. और होते ही जा रहे हैं. यह स्टडी हाल ही में एडवांसेस इन एटमॉस्फियरिक साइंसेस में प्रकाशित हुई है.
इस स्टडी के डेटा चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के इंस्टीट्यूट ऑफ एटमॉस्फियरिक फिजिक्स और NOAA के नेशनल सेंटर्स फॉर एनवायरमेंटल इन्फॉर्मेशन से जुटाए गए हैं. और यह डेटा एक बेहद डराने वाली तस्वीर दिखाती है. अगर पारंपरिक गणनाओं को भी देखें तो हमारे सागरों और समुद्रों ने 1981 से 2010 की तुलना में सिर्फ पिछले साल कुल 227 सेक्सिटिलियन जूल्स गर्मी सोखी है. यानी ऊपरी परत की सोखी हुई गर्मी मिलाकर.
कोलोराडो स्थित नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक रिसर्च के साइंटिस्ट और इस स्टडी में शामिल डॉ. केविन ट्रेनबर्थ ने कहा कि समुद्री गर्मी बढ़ रही है. यानी हमारे समुद्र लगातार गर्म होते जा रहे हैं. इसकी वजह इंसानों द्वारा पैदा किए जा रहे क्लाइमेट चेंज की वजह से है. डॉ. केविन ने कहा कि हमने साल 2021 की गणना के लिए पिछले कई सालों के डेटा का दोबारा एनालिसिस किया. फिर उनसे पिछले साल की तुलनात्मक स्टडी की. हर बार नतीजे डराने वाले ही थे.
डॉ. केविन ट्रेनबर्थ ने कहा कि जो एक्स्ट्रा गर्मी समुद्र सोख रहे हैं, वो जलवायु परिवर्तन की वजह से है. यह जलवायु संकट का नतीजा है. हमारी स्टडी यह बताती है कि साल 1950 के बाद से दुनिया भर के समुद्रों का तापमान लगातार तेजी से बढ़ता जा रहा है. लेकिन पिछले चार सालों में इंसानी गतिविधियों की वजह से यह गर्मी ज्यादा बढ़ गई है. समुद्र ज्यादा तेजी से गर्म हो रहे हैं.
इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट एंड एनवायरमेंट साइंसेस के एसोसिएट प्रोफेसर और इस स्टडी में शामिल लिजिंग चेंग ने कहा कि गर्मी सोखने के अलावा समुद्र इंसानों द्वारा पैदा किए जा रहे कार्बन डाईऑक्साइड का 20 से 30 फीसदी हिस्सा सोखते हैं. जिससे समुद्री की अम्लीयता यानी एसिडिफिकेशन बढ़ रहा है. हालांकि अगर समुद्र ज्यादा गर्म होते चले गए तो पानी में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड निकलकर हवा में मिलने लगेगा. भविष्य में समुद्र से निकलने वाले CO2 और बढ़ती गर्मी का साथ में अध्ययन करना होगा, इससे जलवायु परिवर्तन के असर को समझना आसान होगा.
अगर समुद्र की गर्मी लगातार बढ़ती रही तो ज्यादा समुद्री हीटवेव (Marine Heatwave) पैदा होगी. इससे समुद्री जीव-जंतुओं के लिए खतरा पैदा हो जाएगा. इसकी वजह से आर्कटिक और अंटार्कटिक की बर्फ पिघलेगी. जिससे समुद्र का जलस्तर तेजी से बढ़ेगा. साथ ही एक्सट्रीम वेदर यानी चक्रवाती तूफान, हरिकेन आदि का सामना करना पड़ेगा. ज्यादा ताकतवर तूफानों से तटों के किनारे रहने वाले लोगों को दिक्कत होगी. जान-माल का नुकसान भी हो सकता है.
पेंसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकर मान ने कहा कि इंसानों द्वारा किए जा रहे कार्बन उत्सर्जन की वजह से समुद्र ज्यादा गर्म हो रहे हैं. वो ज्यादा गर्मी सोख रहे हैं. जब तक हम नेट जीरो उत्सर्जन तक नहीं पहुंचते तब तक समुद्रों का गर्म होना बना रहेगा. इससे समुद्र की गर्मी का रिकॉर्ड हर साल टूटेगा. जैसा पिछली साल हुआ. इसके लिए जरूरी है कि लोगों का जागरूक किया जाए. उत्सर्जन कम किया जाए.
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