विश्व

दक्षिण अफ्रीका में सोने और यूरेनियम की खदान में 1.2 बिलियन वर्ष पुराने पानी की खोज की

Neha Dani
11 July 2022 11:20 AM GMT
दक्षिण अफ्रीका में सोने और यूरेनियम की खदान में 1.2 बिलियन वर्ष पुराने पानी की खोज की
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उससे आगे के ग्रहों व चंद्रमा पर रेडियोजेनिक संचालित शक्ति से कौन सी ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।

जल ही जीवन है। पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत भी जल से ही संभव हो सकी है। धरती का 71 प्रतिशत हिस्सा जल से ढका है। इसमें सिर्फ 1.6 प्रतिशत पानी ही भूजल है। विज्ञानियों के लिए पानी हमेशा से उत्सुकता का केंद्र रहा है। अब विज्ञानियों के अंतरराष्ट्रीय दल ने दक्षिण अफ्रीका में सोने और यूरेनियम की खदान में 1.2 बिलियन वर्ष पुराने पानी की खोज की है। इससे हमारी समझ विकसित हो सकी है कि पृथ्वी के सतह के नीचे किस तरह जीवन की शुरुआत हुई।


पानी की उपलब्धता से कैसे जीवन संभव हुआ, यह इसका प्रमाण है। इस शोध के निष्कर्ष को नेचर कम्यूनिकेशन जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस भूजल में जीवन के लिए ऊर्जा के स्रोत उपलब्ध हैं। लाखों-करोड़ों वर्ष से यह भूजल पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत का साक्षी रहा है।

हम इसे हीलियम और हाइड्रोजन उत्पादक शक्ति के एकत्रित ढेर के रूप में देखें तो पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर इसका लाभ समस्त जीवमंडल को मिल सकता है। टोरंटो विश्वविद्यालय के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर बारबरा शेरवुड लोलर ने बताया कि करीब दस वर्ष पूर्व कनाडाई शील्ड के नीचे हमने अरबों वर्ष पुराने भूजल की तलाश की थी। तब यह इस शोध की शुरुआत थी। अब मोआब खोत्सोंग में पृथ्वी के सतह से करीब 2.9 किलोमीटर नीचे हमने पाया कि दुनिया के जलचक्र की चरम सीमाएं पहले से कहीं अधिक व्यापक हैं। यूरेनियम और अन्य रेडियोधर्मी तत्व प्राकृतिक रूप से आसपास के चट्टान में पाए जाते हैं, जिसमें खनिज और अयस्क जमा होते हैं। इस तत्वों से कई प्रकार की नई जानकारियां मिलीं। पहले से तलाशे गए सूक्ष्म जीवों के लिए भूजल एक तरह से पावर जेनरेटर की तरह काम करता था।

विज्ञानियों ने बताया कि जब यूरेनियम, थोरियम और पोटेशियम जैसे तत्व उपसतह पर क्षय हो जाते हैं तो परिणामस्वरूप अल्फा, बीटा और गामा का तरंग प्रभाव उत्पन्न करता है। जिससे आसपास की चट्टानों और तरल पदार्थों में रेडियोजेनिक प्रतिक्रियाएं होती हैं। मोआब खोत्सोंग में विज्ञानियों ने बड़ी मात्रा में रेडियोजेनिक हीलियम, नियोन, आर्गन और क्सीनन पाया। विकिरण भी पानी के अणुओं को रेडियोलिसिस प्रक्रिया में तोड़ देता है। इससे हाइड्रोजन की बड़ी सांद्रता पैदा होती है जो पृथ्वी की गहराई में ऊर्जा का आवश्यक स्रोत है। अपने अत्यंत छोटे द्रव्यमान के कारण हीलियम और नियोन परिवहन क्षमता की पहचान और परिमाणीकरण के लिए विशिष्ट रूप से मूल्यवान हैं। क्रिस्टलीय चट्टानों की अत्यंत कम सांद्रता के कारण यह कहना संभव है कि ये भूजल काफी हद तक अलग-थलग रहे और शायद ही कभी मिश्रित हुए। इस अध्ययन के माध्यम से हीलियम की उपलब्धता की जानकारी भी मिली।

वार ने बताया कि पृथ्वी की गहराई में उपलब्ध ऊर्जा संसाधनों पर सिर्फ इंसान ही निर्भर नहीं हैं। यहां पर रेडियोजेनिक प्रतिक्रियाओं के कारण हीलियम और हाइड्रोजन दोनों का उत्पादन होता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से हाइड्रोजन ऊर्जा प्रवाह की गणना भी कर सकते हैं। विज्ञानियों ने बताया कि इस गणना के माध्यम से यह समझना जरूरी है कि पृथ्वी पर जीवन कैसे कायम है और सौरमंडल और उससे आगे के ग्रहों व चंद्रमा पर रेडियोजेनिक संचालित शक्ति से कौन सी ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।

Edited By: Sanjay Pokhriyal जल ही जीवन है। पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत भी जल से ही संभव हो सकी है। धरती का 71 प्रतिशत हिस्सा जल से ढका है। इसमें सिर्फ 1.6 प्रतिशत पानी ही भूजल है। विज्ञानियों के लिए पानी हमेशा से उत्सुकता का केंद्र रहा है। अब विज्ञानियों के अंतरराष्ट्रीय दल ने दक्षिण अफ्रीका में सोने और यूरेनियम की खदान में 1.2 बिलियन वर्ष पुराने पानी की खोज की है। इससे हमारी समझ विकसित हो सकी है कि पृथ्वी के सतह के नीचे किस तरह जीवन की शुरुआत हुई।

पानी की उपलब्धता से कैसे जीवन संभव हुआ, यह इसका प्रमाण है। इस शोध के निष्कर्ष को नेचर कम्यूनिकेशन जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस भूजल में जीवन के लिए ऊर्जा के स्रोत उपलब्ध हैं। लाखों-करोड़ों वर्ष से यह भूजल पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत का साक्षी रहा है।

हम इसे हीलियम और हाइड्रोजन उत्पादक शक्ति के एकत्रित ढेर के रूप में देखें तो पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर इसका लाभ समस्त जीवमंडल को मिल सकता है। टोरंटो विश्वविद्यालय के पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रोफेसर बारबरा शेरवुड लोलर ने बताया कि करीब दस वर्ष पूर्व कनाडाई शील्ड के नीचे हमने अरबों वर्ष पुराने भूजल की तलाश की थी। तब यह इस शोध की शुरुआत थी। अब मोआब खोत्सोंग में पृथ्वी के सतह से करीब 2.9 किलोमीटर नीचे हमने पाया कि दुनिया के जलचक्र की चरम सीमाएं पहले से कहीं अधिक व्यापक हैं। यूरेनियम और अन्य रेडियोधर्मी तत्व प्राकृतिक रूप से आसपास के चट्टान में पाए जाते हैं, जिसमें खनिज और अयस्क जमा होते हैं। इस तत्वों से कई प्रकार की नई जानकारियां मिलीं। पहले से तलाशे गए सूक्ष्म जीवों के लिए भूजल एक तरह से पावर जेनरेटर की तरह काम करता था।

विज्ञानियों ने बताया कि जब यूरेनियम, थोरियम और पोटेशियम जैसे तत्व उपसतह पर क्षय हो जाते हैं तो परिणामस्वरूप अल्फा, बीटा और गामा का तरंग प्रभाव उत्पन्न करता है। जिससे आसपास की चट्टानों और तरल पदार्थों में रेडियोजेनिक प्रतिक्रियाएं होती हैं। मोआब खोत्सोंग में विज्ञानियों ने बड़ी मात्रा में रेडियोजेनिक हीलियम, नियोन, आर्गन और क्सीनन पाया। विकिरण भी पानी के अणुओं को रेडियोलिसिस प्रक्रिया में तोड़ देता है। इससे हाइड्रोजन की बड़ी सांद्रता पैदा होती है जो पृथ्वी की गहराई में ऊर्जा का आवश्यक स्रोत है। अपने अत्यंत छोटे द्रव्यमान के कारण हीलियम और नियोन परिवहन क्षमता की पहचान और परिमाणीकरण के लिए विशिष्ट रूप से मूल्यवान हैं। क्रिस्टलीय चट्टानों की अत्यंत कम सांद्रता के कारण यह कहना संभव है कि ये भूजल काफी हद तक अलग-थलग रहे और शायद ही कभी मिश्रित हुए। इस अध्ययन के माध्यम से हीलियम की उपलब्धता की जानकारी भी मिली।

वार ने बताया कि पृथ्वी की गहराई में उपलब्ध ऊर्जा संसाधनों पर सिर्फ इंसान ही निर्भर नहीं हैं। यहां पर रेडियोजेनिक प्रतिक्रियाओं के कारण हीलियम और हाइड्रोजन दोनों का उत्पादन होता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से हाइड्रोजन ऊर्जा प्रवाह की गणना भी कर सकते हैं। विज्ञानियों ने बताया कि इस गणना के माध्यम से यह समझना जरूरी है कि पृथ्वी पर जीवन कैसे कायम है और सौरमंडल और उससे आगे के ग्रहों व चंद्रमा पर रेडियोजेनिक संचालित शक्ति से कौन सी ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।

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