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उसकी रेडिएशन के चलते मौत हो गई. इस तरह परमाणु आपादा में हुई ये इकलौती मौत थी.
जापान (Japan) दुनिया में एक ऐसे क्षेत्र में स्थित है, जहां लगभग हर दिन भूकंप (Earthquake) के झटके महसूस किए जाते हैं. लेकिन 10 साल पहले आज के दिन आए भूकंप ने जापान में जिस तरह तबाही मचाई. उसका दर्ज आज तक जापान (Japan) के लोगों के बीच है. जापान में 9 की तीव्रता के भूकंप के चलते भारी तबाही हुई. इसी दौरान फुकुशिमा परमाणु आपदा (Fukushima nuclear disaster) भी आ गई. इससे जापान को दोहरी मार का सामना करना पड़ा.
11 मार्च 2011 को जापान में 9 की तीव्रता वाला भूकंप रिकॉर्ड किया गया. इसने जापान में भयंकर तबाही मचाई. भूकंप के चलते आई सुनामी (Tsunami) ने उत्तरपूर्वी होंशू (Honshu) के तोहोकू क्षेत्र (Tōhoku region) को पूरी तरह बर्बाद कर दिया. पहले से ही भयानक विनाश और लोगों के मारे जाने से परेशान जापान पर परमाणु आपाद का पहाड़ टूट पड़ा. बता दें कि फुकुशिमा आपदा को इतिहास में दूसरी सबसे खराब परमाणु आपदा माना जाता है, जिसमें 1,00,000 से अधिक लोगों का विस्थापित होना पड़ा.
परमाणु आपदा के दौरान फुकुशिमा प्लांट के तीन न्यूक्लिर रिएक्टर तो सफतलापूर्वक बंद हो गए, लेकिन बैकअप पावर और कूलिंग सिस्टम फेल हो गया. इसके चलते गर्मी के कारण तीनों रिएक्टर में ईंधन की छड़ें आशिंक रूप से पिघल गईं. वहीं, 12 और 14 मार्च को रिएक्टर 1 और 3 में धमाका हो गया. इसके बाद आनन-फानन में जापान सरकार को 20 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले सभी लोगों को वहां से हटाना पड़ा. रेडिएशन तेजी से फैल रहा था, इससे लोगों के इसकी चपेट में आने का खतरा भी बढ़ रहा था.
15 मार्च को रिएक्टर 2 में एक बिल्डिंग हाउस में धमाका हुआ, जिसके चलते अधिक तेजी से रेडिएशन फैलने लगा. इसके बाद हजारों की संख्या में लोग आस-पास के इलाकों को छोड़कर जाने लगे. न्यूक्लियर प्लांट के ऊपर हेलिकॉप्टर से पानी बरसाया गया, ताकि ये ठंडा हो सके. न्यूक्लियर प्लांट में हुई तबाही का नतीजा आने वाले कुछ महीनों में स्पष्ट हो गया. सरकार को 30 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले सभी लोगों को वहां से विस्थापित करना पड़ा.
हालांकि, परमाणु घटना में उस दौरान तो किसी की मौत तो नहीं हुई. लेकिन भूकंप और इसके बाद आई सुनामी में 18 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई. वहीं, एक लाख से अधिक लोगों के विस्थापित किए जाने को लेकर लोगों का कहना था कि ये जरूरी नहीं था. उन्होंने तर्क दिया कि आने वाले दिनों में रेडिएशन का स्तर गिर रहा था, इसलिए लोगों का बड़ी संख्या में विस्थापित होना गैर-जरूरी थी.
हालात सामान्य होने पर कुछ लोग अपने घर लौटने में कामयाब हुए, लेकिन सरकार ने 371 स्क्वायर किलोमीटर के इलाके को 'लौटने के लिए खतरनाक जोन' घोषित कर दिया. वर्तमान समय में भी ये इलाका खाली पड़ा हुआ है. 2018 में सरकार ने घोषणा की कि पूर्व प्लांट कार्यकर्ता जिसने यहां काम किया था. उसकी रेडिएशन के चलते मौत हो गई. इस तरह परमाणु आपादा में हुई ये इकलौती मौत थी.
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