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सांसद अनारकली कौर होनरयार का कहना है कि उन्होंने नहीं सोचा था कि एक दिन उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ेगा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व में सरकार बनने की राह जिस तरह से साफ नजर आ रही है उसे देखते हुए भारत के पास विकल्पहीनता की स्थिति पैदा हो गई है। ऐसे में भारतीय कूटनीति का तालिबान को लेकर नजरिया बदलने लगा है। भारत वैसे अफगानिस्तान को लेकर बहुत जल्दबाजी में फैसला करने नहीं जा रहा है लेकिन संकेत इस बात के हैं कि देश के दीर्घकालिक हितों को देखते हुए तालिबान के साथ वार्ता की शुरुआत भी हो सकती है। एक दिन पहले पीएम नरेन्द्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ हुई तकरीबन 45 मिनट लंबी वार्ता को भारत के इसी रुख से जोड़ कर देखा जा रहा है।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि देशहित में बहुत कुछ किया जाता है। अगर तालिबान की सरकार अफगानिस्तान में बन जाती है तो भारत बाद में उनसे बात भी कर सकता है। आगे बहुत कुछ देखना होगा। विदेश मंत्रालय के अधिकारी की यह बात सरकार के मिजाज में आ रहे बदलाव को बता रही है।
हालांकि इस आशय की खबरें पहले कई स्रोतों से आई हैं कि कतर की राजधानी दोहा में कुछ महीने पहले भारतीय दल की तालिबान के प्रतिनिधियों से बातचीत हुई थी। कतर के विदेश मंत्री के अफगानिस्तान शांति वार्ता मामलों में सलाहकार मुतलाक बिन माजेद अल-कहतानी ने ही यह जानकारी दी थी। अल-कहतानी छह अगस्त, 2021 को भी भारत के दौरे पर आए थे और यहां विदेश मंत्री एस जयशंकर व दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की थी। भारत आधिकारिक तौर पर इस तरह की मुलाकात से इन्कार करता रहा है।
सांसद अनारकली कौर होनरयार का कहना है कि उन्होंने नहीं सोचा था कि एक दिन उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ेगा।अफगानिस्तान की पहली गैर मुस्लिम महिला सांसद ने बयां किया दर्द, कहा- वतन की मुट्ठीभर मिट्टी लाने का भी वक्त नहीं मिला
भारत ने तालिबान को लेकर अपने रवैये में बदलाव का संकेत तब दिया है जब चीन तालिबान के साथ आधिकारिक वार्ता का दौर शुरू कर चुका है। बुधवार को चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन सरकार के राजनयिक और तालिबान के बीच बातचीत शुरू हो चुकी है। चीन के विदेश मंत्री वांग ई की भी इस महीने की शुरुआत में तालिबान के सभी प्रमुख नेताओं के साथ बैठक हुई थी।
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