नेपाल में आम चुनाव का शोर थम गया है। चूंकि लोकतंत्र में सीटों का ही महत्व होता है, इसलिए सभी दलों का जोर भी ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने पर है। वैसे तो चुनाव नतीजों के आने तक किसी की भी जीत पक्की नहीं मानी जाती, लेकिन नेपाल के इस चुनाव में लगता है राजनीतिक दलों के साथ ही नेताओं का जीत को लेकर विश्वास डिग गया है। इसीलिए सत्ताधारी नेपाली कांग्रेस से लेकर सीपीएन-यूएमएल तक गठबंधन के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिशों में जुटे हैं।
नेपाली कांग्रेस (एनसी) पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की पार्टी सीपीएन-माओइस्ट सेंटर (सीपीएन-एमसी) और अन्य कई छोटे दलों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में है। एनसी 275 सदस्यीय सदन में 63 सदस्यों के साथ दूसरी बड़ी पार्टी थी। कुछ यही हाल 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल का भी है। वह राष्ट्रीय प्रजातंत्र पर्टी (आरपीपी) नेपाल और जनता प्रगतिशील पार्टी (जेपीपी) समेत अन्य दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है।
गठबंधन को राष्ट्रहित से कुछ लेना-देना नहीं
ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने के इरादे से गठबंधन बनाने वाले दलों को पार्टी की नीतियों, आर्थिक बेहतरी, विदेश नीति या देश हित से कुछ लेना नहीं हैं। एक-एक सीट पर जीत-हार की रणनीति से गठबंधन तोड़े और जोड़े जा रहे हैं और प्रत्याशियों को बदला जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर नेपाल पहुंचे सीईसी राजीव कुमार
नेपाल में रविवार को होने वाले आम चुनाव में अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) राजीव कुमार शुक्रवार को काठमांडो पहुंच गए। वह चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ आए हैं, जिनमें दो चुनाव आयोग के अधिकारी हैं। नेपाल में संघीय संसद की 275 और सात प्रांतीय विधानसभाओं की 550 सीटों के लिए 20 नवंबर को मतदान होना है।
एनसी और सीपीएन यूएमएल में प्रतिद्वंद्विता
एनसी और सीपीएन-यूएमएल के बीच कड़ी टक्कर चल रही है। कोई भी दल दूसरे दल के प्रत्याशी की हार सुनिश्चित करने के लिए कोई भी कदम उठाने से नहीं चूक रहा। अगर एनसी का प्रत्याशी विद्रोह कर निर्दलीय चुनाव लड़ रहा है तो सीपीएन-यूएमएल उसके समर्थन में अपना प्रत्याशी तक हटा ले रही है। यह हाल सीपीएन-यूएमएल के खिलाफ एनसी का है।
पुराने वादों के साथ जंग जीतने का प्रयास
पुराने वादों के साथ राजनीतिक दल चुनाव जीतने की कोशिशों में जुटे हैं। उन्हें लगता है कि जनता पुराने वादे भूल गई होगी। 2017 के चुनाव में सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन-एससी साथ मिलकर चुनाव लड़े थे। तब दोनों ने मोनोरेल, हर महीने पांच हजार रुपये वृद्धा पेंशन का वादा किया था। सरकार बीच में ही गिर गई, कोई वादा पूरा नहीं किया और इसके लिए आपस में ही एक-दूसरे पर आरोप लगाने लगे।
पड़ोस में चुनाव : धीमी अर्थव्यवस्था, बढ़ती महंगाई और विकास के मुद्दे भी छाए
नेपाल चुनाव में एशियाई दिग्गजों चीन और भारत के बीच फंसी हिमालयी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था बढ़ती ऊर्जा और खाद्य कीमतों, मौद्रिक तंगी और वैश्विक मंदी की वजह से धीमी पड़ रही है। आर्थिक तौर पर सीमांत जिंदगी बिता रहे इन लोगों पर 8 फीसदी के आसपास मंडराती मुद्रास्फीति की दर भारी पड़ रही है जो चुनाव में मुद्दा है।
एशियाई दिग्गजों चीन और भारत के बीच फंसी हिमालयी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था बढ़ती ऊर्जा और खाद्य कीमतों, मौद्रिक तंगी और वैश्विक मंदी की वजह से धीमी पड़ रही है। नेपाल का लगभग पांचवां शख्स प्रतिदिन 2 डॉलर से कम पर जीवन यापन करता है। आर्थिक तौर पर सीमांत जिंदगी बिता रहे इन लोगों पर 8 फीसदी के आसपास मंडराती मुद्रास्फीति की दर भारी पड़ रही है।
देउबा और ओली के बीच प्रचंड भी हैं जोश में
नेपाली कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करने वाले प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने पूर्व माओवादी विद्रोहियों के मुख्य समूह माओवादी केंद्र पार्टी के साथ गठबंधन किया है। 76 वर्षीय देउबा छठी बार सत्ता में वापसी करना चाहते हैं। उनकी नेपाली कांग्रेस पार्टी भारत की काफी करीबी मानी जाती है। दूसरी तरफ 70 वर्षीय केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली यूएमएल का एक शाही समूह के साथ ढीला गठबंधन है।
अगर यह गठबंधन जीतता है तो अपने बीजिंग समर्थक रुख के लिए चर्चित ओली प्रधानमंत्री के लिए पसंदीदा उम्मीदवार हैं। वह पहले भी दो बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं। सुप्रीमो प्रचंड के नेतृत्व वाली माओवादी सेंटर पार्टी त्रिशंकु संसद की स्थिति में किंगमेकर के रूप में उभर सकती है। प्रचंड भी शीर्ष पद पर पहुंचने के इच्छुक हैं।
चुनावी वादों का हिसाब-किताब
राजनीतिक दलों ने अगले पांच वर्षों में ब्याज दरों को कम करने, मुफ्त चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने, परिवहन में सुधार करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का वादा किया है। नेपाली कांग्रेस पार्टी ने सत्ता में लौटने पर हर साल 2 लाख 50 हजार नौकरियां सृजित करने का वादा किया है। जबकि मुख्य विपक्षी कम्युनिस्ट यूनिफाइड मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट (यूएमएल) ने हर साल 5 लाख नौकरियां सृजित करने का वादा किया है।