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पानी के कारण हालात बिगड़े: दो देशों के बीच जंग की स्थिति, सेना को कर रहे तैयार, भारत से करीब 5 हजार किलोमीटर दूर

jantaserishta.com
16 July 2021 5:17 AM GMT
पानी के कारण हालात बिगड़े: दो देशों के बीच जंग की स्थिति, सेना को कर रहे तैयार, भारत से करीब 5 हजार किलोमीटर दूर
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देश के कई राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर आए दिन विवाद की खबर आती ही रहती है. पिछले दिनों दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने हरियाणा की बीजेपी सरकार को धमकी दी थी कि राजधानी को अगर उसके हिस्से का पानी नहीं दिया जाता है तो दिल्ली के बीजेपी अध्यक्ष के पानी का कनेक्शन काट दिया जाएगा. लेकिन बाद में हरियाणा ने पानी की सप्लाई कर बात इस नौबत तक नहीं आने दी, लेकिन भारत से दूर दो देशों के बीच पानी को लेकर जंग की स्थिति बनी हुई है और दोनों देश इसके लिए फौज तैयार करने में जुट गए हैं.

भारत से करीब 5 हजार किलोमीटर दूर देश मिस्र और इथियोपिया के बीच पानी को लेकर तनाव की स्थिति बनी हुई है. जल संकट को देखते हुए दोनों देश अपनी-अपनी फौज को तैयार करने में जुटे हुए हैं. जिस तरह के हालात बन रहे हैं उससे यही लगता है कि पानी के लिए पहली बार दो देशों के बीच जंग हो सकती है. मिस्र पहले भी हवाई हमले की धमकी दे चुका है.
पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति
दोनों देशों के बीच पानी को लेकर तनावपूर्ण स्थिति पहले से ही बनी हुई है, लेकिन पिछले दिनों इथियोपिया द्वारा ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां डैम (GERD) भरने का दूसरा चरण शुरू किए जाने से हालात और बिगड़ गए हैं और यह तनाव चरम पर पहुंच गया. माना जा रहा है कि ग्रैंड रीनेसन्स बांध भरने की वजह से मिस्र को पानी का संकट हो सकता है.हालांकि नील नदी की मुख्य सहायक नदी पर इथियोपिया की ओर से बनाए गए विशाल बांध के बाद बने क्षेत्रीय विवाद से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने 8 जुलाई को अहम बैठक बुलाई थी.
विकास के लिए जरुरी प्रोजेक्ट
द ग्रैंड इथियोपियन रीनेसन्स बांध इथियोपिया और डाउनस्ट्रीम देशों मिस्र और सूडान के बीच करीब एक दशक लंबे राजनयिक गतिरोध की बड़ी वजह है. इथियोपिया का कहना है कि यह प्रोजेक्ट उसके विकास के लिए अति आवश्यक है, लेकिन काहिरा (मिस्र) और खारतूम (सूडान) की सरकारों को डर है कि इससे उनके नागरिकों की पानी की पहुंच प्रतिबंधित हो सकती है.
तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने तीनों देशों से प्रोजेक्ट के संचालन पर आपसी बातचीत के लिए फिर से प्रतिबद्ध होने का आह्वान किया और उनसे किसी भी एकतरफा कार्रवाई से बचने की सलाह भी दी. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने न्यूयॉर्क में कहा कि पिछले उदाहरणों से सबक लेते हुए इस मुद्दे का हल निकाला जाना चाहिए.
मिस्र और सूडान डाल रहे दबाव
मिस्र और सूडान दोनों देश इथियोपिया पर बांध (डैम) के भरने और संचालन पर एक बाध्यकारी समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाल रहे हैं. ब्लू नील पर स्थित बांध अफ्रीका की सबसे बड़ी हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बनने के लिए तैयार है, जबकि इथियोपिया दिशा-निर्देशों के पालन पर जोर दे रहा है. इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद की सरकार ने कहा कि वह समझौते के अभाव में जलाशय भरने के साथ आगे बढ़ेगी. सरकार की ओर से कहा गया कि इथियोपिया का अन्य देशों को नुकसान पहुंचाने का इरादा नहीं है. हमारा इरादा अन्य देशों के साथ काम करना और हमारी स्थिति में सुधार करना है.
आम लोगों का योगदान
साथ ही इथियोपिया की ओर से कहा जा रहा है कि अरबों डॉलर की लागत से इस बांध को बनाने के पीछे का मकसद बड़ी संख्या में लोगों की बिजली मुहैया कराना है. सरकार का दावा है कि बड़ी संख्या में इथियोपियाई लोगों ने सरकारी बांड खरीदकर इस प्रोजेक्ट में लाखों डॉलर का योगदान दिया है.
पिछले हफ्ते मिस्र ने आरोप लगाते हुए कहा कि इथियोपिया ने जलाशय को भरने का दूसरा चरण शुरू कर दिया है और इस पूरी प्रक्रिया में 13.5 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी पर कब्जा करने की उम्मीद है. साथ ही मिस्र ने 'इस एकतरफा उपाय को दृढ़ता से अस्वीकृति' व्यक्त की. हालांकि इथियोपिया की ओर से कहा जा रहा है कि जलाशय में जुलाई और अगस्त की भारी बारिश के दौरान और पानी जोड़ना, निर्माण का एक स्वाभाविक हिस्सा है.
इथियोपिया की ओर से बांध बनाए जाने से सिर्फ मिस्र ही परेशान नहीं है बल्कि सूडान भी अपसेट है. सूडान ने बांध की सुरक्षा और खुद के अपने बांधों और जल स्टेशनों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की है.
क्या है ग्रेट इथियोपियन रेनेसां डैम
इथियोपिया ने अपने ग्रेट इथियोपियन रेनेसां डैम (जीईआरडी) प्रोजेक्ट को अप्रैल 2011 में शुरू किया था, लेकिन इसके लॉन्च के ठीक बाद ही मिस्र और इथियोपिया के बीच नील नदी के जल के बंटवारे को लेकर मतभेद शुरू हो गए और तनातनी बढ़ती चली गई.
इथियोपिया में एक ओर जहां जीईआरडी प्रोजेक्ट को जीवन रेखा तथा विकास की प्रमाणिकता के रूप में देखा जा रहा है तो मिस्र के लिए चिंता इस बात की है कि बांध बनने की वजह से इथियोपिया, मिस्र के जल प्रवाह को नियंत्रित कर लेगा. साथ ही उसकी चिंता इस बात की भी है कि जीईआरडी के तेजी से भरने की वजह से मिस्र न केवल अपने पारंपरिक पानी से हिस्से से वंचित हो जाएगा बल्कि नील नदी पर उसका ऐतिहासिक दावा भी खत्म हो सकता है.
11 करोड़ को मिलेगी बिजली
इथियोपिया चाहता है कि इस बांध से मिलने वाली ऊर्जा का इस्तेमाल वह अपने ऊर्जा निर्यात को बढ़ाने में करे. उसका दावा है कि इसके जरिए देश के 11 करोड़ नागरिकों तक बिजली पहुंचाई जा सकेगी और देश से गरीबी दूर हो सकेगी. देश की करीब 65 प्रतिशत आबादी बिना बिजली के रह रही है.
पूर्वी अफ्रीकी देश इथियोपिया में यह बांध करीब 5 अरब डॉलर की लागत से बनाया गया है जो 2016 में देश के कुल सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीडीपी) का 7% था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फंड नहीं मिलने के कारण इथियोपिया को अपने देश में लोगों से आर्थिक मदद लेनी पड़ी. यहां के अधिकारियों को आशा है कि पूरी तरह सरकारी धन से बन रहा बांध 2023 तक पूरी क्षमता से काम शुरू कर देगा और इससे भरपूर बिजली पैदा की जा सकेगी.
दुनिया की सबसे लंबी नदी
नील नदी दुनिया की सबसे लंबी नदी है और इसे अफ्रीकी नदियों का पिता (Father of African rivers) भी कहा जाता है. नदी की लंबाई 6,650 किलोमीटर (लगभग 4,132 मील) है. यह तंजानिया, युगांडा, रवांडा, बुरुंडी, कांगो, केन्या, इथियोपिया, इरीट्रिया, दक्षिण सूडान, सूडान और मिस्र से होते हुए करीब 1,293,000 वर्ग मील (3,349,000 वर्ग किलोमीटर) के अनुमानित क्षेत्र में बहती है.
नील नदी का निर्माण 3 प्राथमिक धाराओं अतबारा के अलावा ब्लू नील और व्हाइट नील द्वारा होता है. इथियोपिया मिस्र को नील नदी के पानी के वार्षिक प्रवाह का करीब 86% हिस्सा प्रदान करता है, जबकि 96% मिस्र के पेयजल की आपूर्ति नील द्वारा होती है.
जल संकट को लेकर इजराइल-जॉर्डन में समझौता
दो देशों के बीच पानी को लेकर तनातनी, फौज तैयार करने और लड़ाई की नौबत आ गई है तो इस बीच दो देशों ने पानी संकट से उबरने को लेकर शानदार उदाहरण पेश किया है. पिछले हफ्ते 8 जुलाई को इजराइल और जॉर्डन के बीच जल संकट को लेकर समझौता हुआ है.
इजराइल ने जॉर्डन को 5 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी बेचने का बड़ा समझौता किया है. दोनों पड़ोसी देशों के बीच 1994 में शांति समझौते के बाद पानी बेचने को लेकर बड़ा करार है.
जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय और इजरायल के नए प्रधानमंत्री नेफ्टाली बेनेट के बीच राजधानी अम्मान में एक गुप्त बैठक के कुछ दिनों बाद समझौते को अंतिम रूप दिया गया. जॉर्डन दुनिया के सबसे अधिक पानी की कमी वाले देशों में से एक है, जहां अधिकांश जलस्रोत तेजी से सूखते चले जा रहे हैं. जबकि इजराइल दुनिया के सबसे अधिक जल-कुशल राष्ट्रों में से है और डीसैलिनाइजेशन टेक्नोलॉजी में माहिर और अग्रणी देश है.
डीसैलिनाइजेशन टेक्नोलॉजी के जरिए समुद्र के जल को नमक रहित किया जाता है. रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) तकनीक से समुद्री पानी को शुद्ध करते हैं. इजराइल में समुद्री पानी को शुद्ध करके उसका इस्तेमाल पेयजल और कृषि जरूरतों को पूरा करने में किया जाता है.
अरब देशों के साथ मजबूत संबंध
यह समझौता इजरायल और अरब पड़ोसी देश के बीच बेहतर संबंधों की ओर इशारा करता है. यह मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (Middle East and North Africa) में जलवायु परिवर्तनशीलता और पानी की आपूर्ति को लेकर मध्य क्षेत्र के सुरक्षा चिंताओं पर असर डालेगा. इस क्षेत्र में दुनिया की 6% आबादी रहती है जबकि 2% से भी कम पीने योग्य पानी है. यहां दुनिया के सबसे अधिक पानी की कमी का सामना करने वाले 12 देश हैं.
इजरायल और खाड़ी के कुछ अन्य देशों के बीच पिछले साल के शांति समझौते की वजह से डीसैलिनाइजेशन संयंत्रों की स्थापना को लेकर सहयोग का रास्ता खुला है. हालांकि मिस्र और इथियोपिया के बीच लेकर लंबे समय से बना संकट खतरनाक मोड़ ले सकता है, दूसरी ओर, संयुक्त राष्ट्र आपसी बातचीत से समाधान निकालने पर जोर दे रहा है.


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