देवभूमि उत्तराखंड में बनेगा हिमालयन जोखिम न्यूनीकरण केंद्र
नैनीताल: उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल हादसे को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (एनआईडीएम) एक केस स्टडी के रूप में अध्ययन करेगा. इसके अनुभवों को आधार पर भविष्य के लिए सभी राज्यों के साथ सुझाव साझा किए जाएंगे. मीडिया कर्मियों से बातचीत में एनआईडीएम के कार्यकारी निदेशक राजेंद्र रत्नू ने कहा कि संस्थान विभिन्न सेक्टर में अध्ययन कर रहा है. टनल हादसा हालांकि एनआईडीएम के दायरे में नहीं है. लेकिन इसका अध्ययन किया जाएगा.
आपदाओं में महिला-बच्चों पर रखना होगा फोकस
अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने कहा कि आपदाओं के दौरान सर्वाधिक प्रभावित महिलाएं बच्चे और दिव्यांग ही होते हैं. जब भी आपदा आती है तो अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति को ही सबसे ज्यादा जूझना पड़ता है. आपदा का असर पूरे परिवार पड़ता है और महिलाओं पर इसका ज्यादा असर होता है. पर्वतीय क्षेत्रों में पूरी अर्थव्यवस्था का दारोमदार महिलाओं ने भी संभाला हुआ है. उन्होंने उम्मीद जाहिर की कि चार दिवसीय कांग्रेस में इस विषय को प्रमुखता से लिया जाएगा.
डिजास्टर फ्री डेवलेपमेंट की जरूरत जोशी
देहरादून. विकास जरूरी है, लेकिन जीवन और पर्यावरण की कीमत पर नहीं है. विश्व को अब डिजास्टरफ्री डेवलेपमेंट की जरूरत है. इसी के अनुसार आगे बढ़ने पर आपदाओं के खतरों का किया जा सकता है.
छठी विश्व आपदा प्रबंधन कांग्रेस के पहले दिन विशेषज्ञों ने दो टूक कहा कि अब डिजास्टर फ्री डेवलेपमेंटर की आवश्यकता है. पदमभूषण डॉ.अनिल जोशी ने कहा कि ताजा टनल हादसा इसका उदाहरण है. पीएम, सीएम और सभी विशेषज्ञों वहां काम कर रहे हैं.
हिमालयी राज्यों में आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण के लिए उत्तराखंड में हिमालयन आपदा जोखिम न्यूनीकरण केंद्र स्थापित किया जाएगा. प्रदेश सरकार जल्द ही इसके लिए भूमि चिह्नित करते हुए विधिवत प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेगी.
ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय में आयोजित चार दिवसीय विश्व आपदा प्रबंधन कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए सीएम पुष्कर सिंह धामी ने यह घोषणा की. आपदाओं के दौरान महिलाएं और दिव्यांगों सुरक्षा, हितों की रक्षा और पुनर्वास के लिए राज्य सरकार विशेष प्रावधान करेगी. स्कूल से लेकर कालेज तक आपदा प्रंबंधन को पाठ़यक्रम में शामिल किया जाएगा. यूएनडीपी के रेजीडेंड कोर्डिनेटर शांम्पी शा ने आपदा के बढ़ते दायरे पर चिंता जाहिर की. आपदाओं के असर को कम करने के लिए साझा प्रयास करने होंगे. अंडमान निकोबार के उपराज्यपाल एडमिरल डीके जोशी ने कहा कि आधुनिक तकनीकि, ड्रोन, एआई रियल टाइम मानिटरिंग आदि आपदाओं से निपटने के लिए भी गेम चेंजर साबित हो सकता है. कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देश में आपदा प्रबंधन सेक्टर में सुधार के प्रयासों पर प्रकाशित किताब का विमोचन भी किया गया. रेसिलिएंट इंडिया शीर्षक से प्रकाशित इस किताब में प्रधानमंत्री के प्रमुख फैसलों का जिक्र है. एक सर्वे में उत्तराखंड की चार ग्राम पंचायतों में प्राकृतिक आपदा से नुकसान की ज्यादा संभावना है. इनमें फिटारी, ओसला, हर्षिल और धराली ग्राम पंचायतें शामिल हैं. मौके पर पदम भूषण अनिल प्रकाश जोशी, मुख्य सचिव डॉ. एसएस संधु, एसीएस राधा रतूड़ी, सचिव आपदा प्रंबधन एवं पुनर्वास डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा, यूकॉस्ट के डीजी डॉ. दुर्गेश पंत,समर्थम ट्रस्ट से जी. मंहतेश, ग्राफिक ऐरा के अध्यक्ष कमल धनसाला, डब्लूसीडीएम के कन्वीनर आनंद बाबू ने भी विचार रखे.
विकास को आपदा का कारण बताने वालों पर बरसे संधु
विकास योजनाओं को प्राकृतिक आपदाओं से जोड़े जाने से प्रदेश के मुख्य सचिव डॉ. एसएस संधु सहमत नहीं है. आपदा प्रबंधन कांग्रेस में विकास और आपदाओं को एक पलड़े में रखे जाने पर उन्होंने अपनी असहमति खुलकर जाहिर भी की. मुख्य सचिव ने कहा कि यह गलत है कि विकास प्रोजेक्ट आपदाएं लाते हैं. प्रदेश में ऑल वेदर रोड का निर्माण शुरू होने पर काफी आलोचनाएं हुईं. निर्माण कार्य शुरू होने पर थोड़ा प्रभाव दिखाई देता है, लेकिन प्रोजेक्ट को ही आपदा का कारक कह देना सही नहीं है. कुम समय पहले मैंने हवाई सर्वेक्षण के दौरान देखा था कि अब आबादी वाले दूरस्त गांव जहां कोई विकास प्रोजेक्ट तक नहीं था, वहां भी भूस्खलन हो रहा था. एक दूसरा उदाहरण देते हुए कहा कि कुछ वर्ष पहले एक दूरस्थ गांव की गर्भवती महिला को अस्पताल लाने में लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. केवल इसलिए कि वहां सड़क बन पा रही थी.