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Uttar Pradesh: 'खस' की खेती से किसानों के घर में आ रही खुशहाली, जानिए पूरा अपडेट
उत्तर प्रदेश : प्रगतिशील खेती का केंद्र बन रहे मिर्जा के कई किसानों के जीवन में 'खस' की खेती खुशहाली की भावना लेकर आती है। रामगंगा और गंगा नदी की कटरी में लाहा रही सोंधी महक वाली 'खस' की खेती यहां के किसानों को कुछ इस तरह की रास आ रही है कि वे अब …
उत्तर प्रदेश : प्रगतिशील खेती का केंद्र बन रहे मिर्जा के कई किसानों के जीवन में 'खस' की खेती खुशहाली की भावना लेकर आती है।
रामगंगा और गंगा नदी की कटरी में लाहा रही सोंधी महक वाली 'खस' की खेती यहां के किसानों को कुछ इस तरह की रास आ रही है कि वे अब पारंपरिक कृषि सुधारे इसी संस्थान से जड़ी-बूटी की ही खेती करने लगे हैं।
वकीलों के अनुसार, इस औषधीय उपचार के व्यवसाय में एक सुखद भविष्य दिखता है।
अजरबैजान जिले के जनजाति क्षेत्र में स्थित जादुई चिकटिया गांव के निवासी एक प्रगतिशील किसान अग्निहोत्री ने बताया कि उन्होंने अपने धुन में कुछ नया करने के लिए पहले औषधीय पेड़ 'अकरकरा' की खेती की थी, लेकिन ज्यादा लाभ नहीं मिला और उन्होंने अकरकरा की खेती का विचार छोड़ दिया। दिया। बाद में जब उन्होंने खस की खेती शुरू की और बेहतर लाभ पाया तो उन्होंने इसे अपना लिया।
अग्निहोत्री ने बताया कि वह चार साल से 25 साल की उम्र में नॉकलैंड में खास की खेती कर रहे हैं। एक नाव में लगी फ़सल से 10 से 15 नाव तक तेल की नाव है। इस तेल की कीमत प्रति यात्री 30 हजार रुपये से लेकर 60 हजार रुपये तक होती है। इसके अलावा जड़ावत के ऊपरी उपचारों से कलम का निर्माण किया जाता है। उसका भी अपना बाज़ार है।
उन्होंने बताया कि खस के तेल से मंहगे तेल, सौंदर्य प्रसाधन और सहायक उपकरण बनाए जाते हैं। इसके अलावा इसके वृक्षों के अलावा समरलैन्स में नागालैन्स की घास के तौर पर और छाया के लिए शेड बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है।
अग्निहोत्री ने बताया कि खास बिजनेस की व्यापक स्वामित्व को देखते हुए उन्होंने इस कंपनी का ऑयल प्लांट का प्लांट लगाया है। कुल 25 एकड़ क्षेत्र में लगी फसल से लगभग 250 किलोमीटर तेल निकाला गया है।
अग्निहोत्री ने इस बारे में पूछा कि इस तेल को कहीं नहीं जाना चाहिए। दिल्ली, राजस्थान और कैनेडियन के सामान के व्यापारी आपके फोन मार्केट में हैं और उनकी यहां से ही खरीद कर ले जाते हैं।
बांदा जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान अरविंद जैन भी लंबे समय से औषधीय खेती कर रहे हैं और अब खास की फसल के प्रति उनकी कुशल शैली में बढ़ोतरी हुई है।
जैन करीब पांच मोहल्ले में खास की खेती करते हैं। उनका मानना है कि यह छोटे बालों के कारोबार में गोल-गोल घूमे हुए हैं।
उन्होंने कहा कि इस खेती की सबसे खामी यह है कि सैकड़ों की गहराई में घूमने वाले छुट्टा जानवर भी इसे नहीं खाते हैं और इसमें किसी भी खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
जैन ने कहा कि अच्छी फसल पाने के लिए जरूरतमंदों के कहे अनुसार काम करना पड़ता है। बोआई के 18 से 24 महीने बाद खास की ब्रेड की खुदाई की जाती है। ठंड के मौसम में खुदाई करने से अच्छी गुणवत्ता का तेल मिला हुआ है।
सरकार भी इस औषधीय औषधीय जड़ी-बूटी की खेती को ज्यादा से ज्यादा काश्तकारों (किसानों) को लाइसेंस दे रही है।
अपर ऑर्थोमिनिस्ट्रेशन (प्रशासन) संजय कुमार पैंडे ने कहा कि सरकार को खास की खेती के लिए छह लाख रुपये की लागत पर तीन लाख रुपये की छूट मिलती है।
उन्होंने कहा कि इस समसामयिक सब्जी की खेती के प्रति किसानों को सरकारी स्तर पर सलाह लेने के लिए कई प्रयास किये जा रहे हैं।
पेंडेस ने बताया कि जिले में "हर्बल गार्डन" की एक योजना है जिसमें डिग्री कॉलेज और बड़े पैमाने पर करीब खस सहित औषधीय खेती की जा सकती है।
जिला उद्यान पदाधिकारी राघवेंद्र सिंह ने बताया कि किसकी खेती के लिए कितना मुनाफा है। इसमें कम दर्शन के साथ-साथ दावा अधिक होता है और बाढ़ आने पर या सूखा पड़ने पर भी इसकी फसल को नुकसान नहीं होता है।