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लखनऊ। जन संस्कृति मंच (जसम) के 'लेखक के घर चलो' के तहत 17 सितंबर को लखनऊ के तीन रचनाकार इलाहाबाद के दो लेखकों-एक्टिविस्टों सीमा आजाद और विश्व विजय से मिलने तेलियरगंज (इलाहाबाद) स्थित उनके आवास पर पहुंचे। इसमें कवि और चिंतक भगवान स्वरूप कटियार, कथाकार फरजाना महदी और कवि और लेखक कौशल किशोर शामिल थे। …
लखनऊ। जन संस्कृति मंच (जसम) के 'लेखक के घर चलो' के तहत 17 सितंबर को लखनऊ के तीन रचनाकार इलाहाबाद के दो लेखकों-एक्टिविस्टों सीमा आजाद और विश्व विजय से मिलने तेलियरगंज (इलाहाबाद) स्थित उनके आवास पर पहुंचे। इसमें कवि और चिंतक भगवान स्वरूप कटियार, कथाकार फरजाना महदी और कवि और लेखक कौशल किशोर शामिल थे। ज्ञात हो कि पिछले दिनों सीमा आजाद की स्कूटी को एक कार ने टक्कर मार दी थी जिससे रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आई। डॉक्टर ने उन्हें 3 माह के लिए बेड रेस्ट की सलाह दी है। वहीं, विश्व विजय इन दिनों चिकनगुनिया से ग्रस्त हैं।
इस मुलाकात में हाल-चाल लेने और वे जल्दी स्वस्थ हों, इसकी शुभकामना के बाद गोष्ठी का सिलसिला शुरू हुआ। इसमें वर्तमान समय, लोकतांत्रिक मूल्यों पर हो रहे आघात, लेखकों और बुद्धिजीवों की भूमिका आदि विषय थे जिन पर विचार विमर्श हुआ। यह बात आई कि लोकतांत्रिक विरोध-प्रतिरोध का स्पेस लगातार कम होता जा रहा है। संघर्ष से अर्जित मूल्य छीने जा रहे हैं। सामाजिक विभाजन बढ़ा है। ऐसे में हमारी एकता और कोशिशों का बड़ा महत्व है। बातचीत में हिंदी साहित्यकारों में आ रहे या आए विचलन पर भी बात हुई तथा उस छद्म वामपंथ पर भी चर्चा हुई जिसके निशाने पर फासीवादी सत्ता न होकर वामपंथी आंदोलन है।
इसके बाद एक दूसरे की कविता सुनने और सुनाने का सिलसिला शुरू हुआ। सीमा आजाद ने अपनी हाल की लिखी कविता 'गाजा के बच्चे' सुनाई जो युद्ध की नृशंसता और बर्बरता को सामने लाती है। ऐसी कविता लिखना और सुनाना दोनों कठिन होता है। इसका पाठ करते हुए सीमा आजाद का दर्द छलक आया। उनकी कविता की कुछ पंक्तियां गौरतलब हैं 'मांओं ने बच्चों को बताया था/कि अगली सुबह जब होगी/पिता निकल कर आ जाएंगे/ मलबों से ढेर सारे खिलौने के साथ/…. गाजा के बच्चे ख्वाब में थे/जब इजरायली बम गिरा/वह उस वक्त मारे गए/जब उनकी आंखें मौत के खौफ से नहीं/ जीवन के ख्वाब से भरी थीं'।
इस मौके पर विश्व विजय ने अपनी छोटी कविताएं सुनाईं। जहां एक कविता में प्रेमचंद की कहानी 'कफन' का पुनर्पाठ था, वहीं दूसरी कविता में महिला पहलवानों का संघर्ष भाव कुछ यूं व्यक्त होता है 'लड़कियां, अपनी लड़ाई को/ खेत-खलिहानों, जंगल-पहाड़ों, तीर-कमानों से जोड़ेंगीं/ लड़कियां, राजतंत्र के सामने/औंधे मुंह गिरे दंडवत तानाशाह राजा को/अपने बनाए अखाड़े में चित करेंगी'।
भगवान स्वरूप कटियार ने 'मैं आना चाहता हूं' शीर्षक कविता सुनाई। यह जीवन राग से भरपूर कविता है जिसमें पलायन नहीं वरन जद्दोजहद का भाव है। वह कहते हैं - 'मैं आना चाहता हूँ तुम्हारे पास/जैसे सुबह आती है/लाली लिए चिड़ियों के शोर के साथ/जैसे गुनगुनी धूप आती है/ठिठुरते माघ पूस के महीने में/जैसे धूल उड़ाते गोरू लौटते हैं/सांझ अपने ठिकानों पर/जैसे आनाज की खुशबू आती है/किसान के घर'। युवा कथाकार फ़रज़ाना महदी ने पाकिस्तानी कवि अमजद इस्लाम अमजद की नज़्म सुनाई जो क्लिंटन के दौर में लिखी गई थी लेकिन वह आज भी उतनी ही मौजू है। यह इस बात का उदाहरण है कि कविता कालजीवी होकर ही कालजयी बनती है। पंक्तियां कुछ इस तरह है
'हमें तो बिल क्लिंटन को फकत इतना बताना है, ज़माना इससे पहले भी कई हाथों से गुजरा है,/ज़माने को तुम्हारे हाथ से आगे भी जाना है।'
कौशल किशोर ने सीमा आजाद पर लिखी 'पुस्तक मेले से' कविता का पाठ किया। यह कविता उस प्रसंग को लेकर है जब सीमा आजाद और विश्व विजय को दिल्ली पुस्तक मेले से लौटते समय इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार किया गया था। कविता का समापन यूं होता है 'उसके विचारों की कोई सीमा नहीं थी/उसके सपने फूलों की खुशबू की तरह आजाद थे'। इस अवसर पर कौशल किशोर ने अपना संग्रह 'उम्मीद चिंगारी की तरह' सीमा आजाद -विश्व विजय को भेंट किया जिसे इलाहाबाद के ही रुद्रादित्य प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। गोष्ठी का समापन इसी संग्रह की कविता फिलिस्तीन के पाठ से हुआ जिसमें कौशल किशोर कहते हैं 'फिलिस्तीन किसी देश का नहीं/ आजादी का नाम है/ वह जाग रहा है पिछली शताब्दी से /उसकी आंखों में नींद नहीं /मेरी नींद भी उसी के पास चली गई है'। युवा कामरेड रामचन्द्र भी इस गोष्ठी में मौजूद रहे और अपने विचारों से गोष्ठी को समृद्ध किया।
