उत्तर प्रदेश

नचिकेता नहीं रहे

20 Dec 2023 3:51 AM GMT
नचिकेता नहीं रहे
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लखनऊ। जनवादी गीतकार, लेखक और समीक्षक नचिकेता नहीं रहे। उनके निधन पर जन संस्कृति मंच (जसम) ने गहरा शोक व्यक्त किया है। मंच की उत्तर प्रदेश इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष कवि कौशल किशोर ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि हमने अपना प्रिय साथी और जनवादी गीतकार खो दिया है। जसम के द्वारा …

लखनऊ। जनवादी गीतकार, लेखक और समीक्षक नचिकेता नहीं रहे। उनके निधन पर जन संस्कृति मंच (जसम) ने गहरा शोक व्यक्त किया है। मंच की उत्तर प्रदेश इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष कवि कौशल किशोर ने अपनी शोक संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि हमने अपना प्रिय साथी और जनवादी गीतकार खो दिया है।

जसम के द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि नचिकेता का निधन 19 दिसम्बर को बिहार की राजधानी पटना में हो गया। उनकी उम्र 78 के आसपास थी। उनका जन्म 23 अगस्त 1945 को जहानाबाद बिहार जिला के मथुरापुर केऊर गांव में हुआ। था। पेशे से यांत्रिक अभियंता रहे नचिकेता ने गीत लिखना उस वक्त शुरू किया जब हिंदी कविता की जमीन बदल रही थी। उसके केंद्र में व्यवस्था विरोध था। इनका गीत लेखन इसी धारा से जुड़ता है। नवगीत विधा का जनवादीकरण करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इनके गीतों में व्यवस्था की आलोचना, जनपक्षधरता तथा जनवाद के प्रति प्रतिबद्धता मिलती है। उनके भाव-विचार व सरोकार को इन चंद पंक्तियों से समझा जा सकता है - 'बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन/मिटके रहेगा अब शोषण/यह नकली आज़ादी भी/ख़ून हमारा पीती है/औ' सरमायेदारों की
/बस्ती में ही जीती है/हँसिये की है भौंह तनी/मिटके रहेगा क्रूर दमन/बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन/मिटके रहेगा अब शोषण'।

नचिकेता के करीब 15 गीतों के संग्रह है। 'लिखेंगे इतिहास', 'सोए पलाश दहकेंगे', 'बायोस्कोप का गीत', 'ताशा बज रहा है', 'पर्दा अभी उठेगा', 'रेत में कोई नदी', 'आदमकद खबरें' आदि हैं। शांति सुमन के साथ उनके गीतों के सह संग्रह भी प्रकाशित हुए । वे हैं 'सुलगते पसीने' और 'पसीने के रिश्ते'। नचिकेता ने गजल भी लिखे । 'आईना दरका हुआ' उनका गजल संग्रह है। उनके आलोचनात्मक लेखन के दो संग्रह है।

नचिकेता ने बीज, अंतराल जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया। ये नवगीत की पत्रिकाएं थीं। इसके द्वारा नवगीत के विमर्श को गति मिली। उन्होंने शांति सुमन के चुने हुए 101 गीतों का संपादन भी किया। उनका जन सांस्कृतिक आंदोलन से भी जुड़ाव रहा है। बिहार में लेखकों को संगठित करने की जो प्रक्रिया अस्सी के दशक में शुरू हुई, उससे भी वे जुड़े । वे नवजनवादी सांस्कृतिक मोर्चा के कोषाध्यक्ष थे। पिछले साल पटना में 'कथांतर' द्वारा आयोजित शहीद भगत सिंह जयंती समारोह में अपनी अस्वस्थ के बावजूद वे आए थे। इसमें उन्होंने कई गीत प्रस्तुत किये। जीवन के अंतिम समय तक वे सृजनात्मक रहे।

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