उत्तर प्रदेश

शिवमूर्ति के उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ पर चर्चा

26 Dec 2023 3:07 AM GMT
शिवमूर्ति के उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ पर चर्चा
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लखनऊ। जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से मासिक गोष्ठी का आयोजन युवा कथाकार फरजना महदी के सरफराजगंज आवास पर किया गया जिसकी अध्यक्षता कवि व लेखक अशोक चंद्र ने की। संचालन किया मंच के सचिव फरजाना महदी ने। इस अवसर पर मशहूर कथाकार शिवमूर्ति के चर्चित उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ पर कवयित्री विमल किशोर …

लखनऊ। जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से मासिक गोष्ठी का आयोजन युवा कथाकार फरजना महदी के सरफराजगंज आवास पर किया गया जिसकी अध्यक्षता कवि व लेखक अशोक चंद्र ने की। संचालन किया मंच के सचिव फरजाना महदी ने। इस अवसर पर मशहूर कथाकार शिवमूर्ति के चर्चित उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ पर कवयित्री विमल किशोर ने समीक्षात्मक आलेख का पाठ किया। ज्ञात हो कि यह उपन्यास हाल में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है।

विमल किशोर का कहना था कि उपन्यास ‘अगम बहै दरियाव’ आपातकाल से लेकर करीब 4 दशकों में फैली एक ऐसी दस्तावेजी और करुण महागाथा है जिसमें किसान-जीवन की संपूर्णता हमारे सामने आती है। किसानों के जीवन में संघर्ष पूरी जिंदगी बना रहता है। उन्हें कभी भी सुकून या चैन की जिंदगी नहीं मिलती। अपनी समस्याओं को सुलझाते-सुलझाते वे बूढ़े हो जाते हैं और कभी-कभी आत्महत्या तक करने को भी विवश हो जाते है। कहानी में स्याह पक्ष ज्यादा है और अभिव्यक्ति बहुत ही मार्मिक व संवेदित कर देने वाली बन पड़ी है।

विमल किशोर ने कहा कि शिवमूर्ति जी के कथा सृजन की विशेषता है कि वहां दब्बू, भीरू की जगह निर्भीक और अन्याय का प्रतिकार करने वाली स्त्रियां आती हैं। ऐसे अनेक प्रसंग है जहा ंस्त्रियां मुखर रूप से मौजूद हैं। सरकारी अधिकारी हो या समाज के दबंग वे उनका डटकर मुकाबला करती हैं और उन्हें परास्त भी करती हैं।

विमल किशोर का आगे कहना था कि शिवमूर्ति जी इस उपन्यास के माध्यम से लाते हैं कि किसान का जीवन दुष्चक्र में फंसा है। उनके अनुसार किसान का जीवन एक नदी की तरह है। वह बहती रहे तो लोगों को उससे जीवन मिलता रहेगा। लेकिन आज वह नदी संकटग्रस्त है। किसान भी संकट में है। यह उपन्यास उसक दुख, पीड़ा, हर्ष-विषाद, संघर्ष , आशा-आकांक्षा को सजीव ढंग से प्रस्तुत करने में सफल है। जैसे नदी बाधाओं के बाद भी रास्ता बना लेती है, वैसा ही किसान का जीवन है। उपन्यास उसकी ताकत से पाठक को परिचित कराता है।

विमल किशोर का यह भी कहना था कि उपन्यास में लोकजीवन के गीतों के काफी उद्धरण है। इससें पाठक में रोचकता पैदा होती है। देखने में यह 586 पृष्ठ का भारी भरकम उपन्यास है। लेकिन शुरू कीजिए तो इससे बाहर निकलना संभव नहीं है। ऐसे ही बांधता है और जिज्ञासा पैदा करता है। ऐसी कृति के लिए शिवमूर्ति जी को बधाई दी जानी चाहिए।

गोष्ठी में भगवान स्वरूप कटियार, असगर मेंहदी, सायरा सईद, नगीना निशा, सिम्मी अब्बास, अशोक श्रीवास्तव, सत्यप्रकाश चौधरी, धर्मेंद्र कुमार, फरजाना महदी, कलीम खान, अरविंद शर्मा, राकेश कुमार सैनी, शांतम और कौशल किशोर उपस्थित थे। जसम लखनऊ ने आगामी तीन माह के कार्यक्रम भी तय किए। मंच की ओर से 25 फरवरी को सालाना जलसा का आयोजन किया जाएगा जिसमें अनिल सिन्हा स्मृति व्याख्यान होगा। इसके साथ 29 जनवरी को गोरख पाण्डेय स्मृति दिवस तथा 23 मार्च को शहीद भगत सिंह व उनके साथियों के शहादत दिवस पर विविध कार्यक्रम आयोजित होंगे।

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