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दिविक रमेश के संग्रह पर चर्चा 'अभी मरा नहीं है पानी'

लखनऊ। 'आखर' पत्रिका और 'फटकन' यूट्यूब के संयुक्त तत्वावधान में वरिष्ठ कवि व साहित्यकार दिविक रमेश के नवीनतम काव्य संग्रह 'समकाल की आवाज - चयनित कविताएं' पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस मौके पर सभी का स्वागत 'आखर' की संपादक डॉ प्रतिभा मुदलियार ने किया। कार्यक्रम का संचालन भी उन्होंने ही किया। दिविक रमेश …
लखनऊ। 'आखर' पत्रिका और 'फटकन' यूट्यूब के संयुक्त तत्वावधान में वरिष्ठ कवि व साहित्यकार दिविक रमेश के नवीनतम काव्य संग्रह 'समकाल की आवाज - चयनित कविताएं' पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस मौके पर सभी का स्वागत 'आखर' की संपादक डॉ प्रतिभा मुदलियार ने किया। कार्यक्रम का संचालन भी उन्होंने ही किया।
दिविक रमेश का परिचय देते हुए डॉ प्रतिभा मुदलियार ने कहा है कि इनकी ख्याति कवि, लेखक, साहित्य चिंतक, बाल साहित्यकार, अनुवादक आदि के रूप में है। इनके तेरह कविता संग्रह है । तीन चयनित कविताओं का संग्रह है। इनका पहला कविता संग्रह 'रास्ते के बीच' 1977 में आया जिसकी भूमिका शमशेर बहादुर सिंह ने लिखी। हाल में 'समकाल की आवाज - चयनित कविताएं' संग्रह आया है। समकाल की आवाज उन्हीं आवाजों को कहा जा सकता है जो अपने समय-समाज को प्रतिबिंबित करे। उसे आगे ले जाए। दिविक जी की कविताएं इसका प्रतिनिधित्व करती हैं।
इस मौके पर दिविक रमेश की कविता पर बोलते हुए कौशल किशोर ने कहा कि इनकी कविता में जीवन के प्रति गहरी आस्था है। इनकी जड़े लोकजीवन में हैं। इनकी नजर सामाजिक विडम्बनाओं-विसंगतियों पर है। यह ऐसा दौर है जब मूल्यों का क्षरण हो रहा है। लोकतंत्र खतरे में है। तानाशाही बढ़ रही है। सत्ताएं सांस्कृतिक पर्यावरण को अनुकूलित करने में लगी हैं। यह है हमारा आज का यथार्थ। दिविक जी के पास इसे देखने की सृजनात्मक दृष्टि है वहीं संवेदनात्मक समझ है।
कौशल किशोर का आगे कहना था कि दिविक जी मानव प्रेम की बेहद आत्मीय व स्नेहिल दुनिया रचते हैं। इसमें मां, पिता, बच्चे, स्त्रियां, घर-परिवार, समय-समाज है।
‘मां’ कविता के केन्द्र में है। इसे लेकर उन्होंने कई कविताएं लिखी हैं। सबसे अच्छी बात है कि यहां निराशा नहीं है।। ये गहन अंधकार के बीच चिनगारी की बात करते हैं ताकि रोशनी हो सके। दिविक जी का दृढ़ मत है कि बहुत कुछ नष्ट होने पर भी सबकुछ नष्ट नहीं होता है। जो बचता है, वही जीवन के लिए आवेजक बन जाता है। यही है इनका काव्य वैशिष्ट्य। इसे ‘समकाल की आवाज - चयनित कविताओं’ के माध्यम से देखा जा सकता है।
कवि राकेश रेणुका कहना था की दिविक रमेश अपनी कविता में मानवता को लेकर आते हैं। उनमें वैश्विक सरोकार है। कविताएं बहु आयामी हैं। उनके व्यक्तित्व में जो सरलता सहजता है, वह उनकी काव्य भाषा में मिलती है। बिना बनाव और श्रृंगार के इनकी कविताएं अपनी बात कहती हैं। इसीलिए आत्मीय लगती हैं। जिस सहज तरीके से अपनी बात कहते हैं, वह अचंभित भी करती है। यह इनका खास गुण है।
राकेशरेणु ने यह भी कहा कि ये अपनी कविता में ग्रामीण शब्दों को लेकर आते हैं। कई कविताओं में राजनीतिक स्वर है। फिर भी यह सीधे राजनीतिक ना होते हुए भी उसमें संवेदना का विस्तार मिलता है। उद्दात्त व्यक्तित्व की झलक है। मां इनका प्रिय विषय है जो इनके कई संग्रहों में मिलता है। इन पर शमशेर, नागार्जुन, त्रिलोचन, केदार जैसे कवियों का प्रभाव है जिसे वह अपने तरीके से विस्तार देते हैं।
परिचर्चा के बाद दिविक रमेश को अपनी बात कहनी थी और कविताएं सुनानी थीं। इस अवसर पर उन्होंने अपनी लंबी साहित्य यात्रा के कुछ रोचक प्रसंग साझा किए। उन्होंने अपनी रचना प्रक्रिया के खट्टे-मीठे अनुभव के साथ वे रमेश शर्मा से कैसे दिवक रमेश हुए, इसके बारे में भी बताया। उनका कहना था की रचनाकार की उपलब्धि है कि वह हमेशा रचनाशील बना रहे।
संचालन के दौरान डॉ प्रतिभा मुदलियार ने दिविक जी की कविता 'जीवित हूं मैं' का पाठ भी किया जिसमें वह कहते हैं 'जीवित हूं मैं /बच्चों की नम यादों में /अपनों की थमे हुए शब्दों में /दोस्तों के संभलते आघात में/ दुश्मनों की बदलती/ कुछ झुकी भावनाओं में/ पुरखों के बुजुर्ग, अदृश्य आशीर्वादों में '। धन्यवाद ज्ञापित किया 'फटकन' की डा रेणु यादव ने। उन्होंने अपनी संक्षिप्त टिप्पणी के साथ दिविक रमेश की कविताओं के संदर्भ में कहा कि यह समय सापेक्ष के साथ भूत और भविष्य को अपने साथ समेटती है। शालीनता के साथ जो राजनीतिक प्रखरता है, वह हिम्मत की बात है। कार्यक्रम का समापन उन्होंने उनकी कविता की चंद पंक्तियों से किया कि 'अभी मरा नहीं है पानी/ हिल जाता है जो भीतर तक /सुनते ही आग'। कार्यक्रम में 'आखर' की कार्यकारी संपादक डॉ शोभना भी मौजूद रहीं।
आन लाइन हुए इस आयोजन में डा डी एम मिश्र (सुल्तानपुर), प्रशांत जैन (मुम्बई), उमेश पंकज (नोएडा), अशोक श्रीवास्तव व महेंद्र भीष्म (लखनऊ) आदि ने लाइव अपनी प्रतिक्रिया दी।
