सम्पादकीय

भारत में आनलाइन चुनाव की राह अभी आसान नहीं है अनेक बाधाएं हैं इस राह में

Subhi
21 Jan 2022 5:30 AM GMT
भारत में आनलाइन चुनाव की राह अभी आसान नहीं है अनेक बाधाएं हैं इस राह में
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कोरोना काल ने मानव सभ्यता के बदलाव की तस्वीर को एक झटके में बदल दिया। बहुत से पुराने रोजगार हमेशा के लिए अतीत हो गए, वहीं कई नए क्षेत्रों में रोजगार का सृजन हो रहा है

कोरोना काल ने मानव सभ्यता के बदलाव की तस्वीर को एक झटके में बदल दिया। बहुत से पुराने रोजगार हमेशा के लिए अतीत हो गए, वहीं कई नए क्षेत्रों में रोजगार का सृजन हो रहा है जिसमें केवल कंप्यूटर और इंटरनेट का ही राज होगा। इस बदलाव से देश की राजनीतिक प्रक्रिया भी अछूती नहीं रही। देश के इतिहास में पहली बार कोरोना संक्रमण के कारण उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव आयोग ने 22 जनवरी तक सभी प्रकार की राजनीतिक रैली पर रोक लगा रखी है। आयोग ने राजनीतिक दलों को इंडोर मीटिंग के लिए 300 लोग अधिकतम या मीटिंग हाल की 50 प्रतिशत क्षमता तक छूट दी है। कोरोना काल से पहले शायद ही किसी ने कल्पना की हो कि पांच प्रदेशों में चुनाव की रणभेरी बज चुकी हो पर कोई भी चुनावी रैली भौतिक रूप से नहीं हो रही हो।

महामारी के प्रसार को देखते हुए डिजिटल चुनाव की चर्चा भी हो रही है। वैसे ई-वोटिंग कोई नई अवधारणा नहीं है। कई कंपनियां किसी मुद्दे पर जनता की सीधी राय जानने के लिए स्पार्टफोन एप का सहारा लेती हैं। ऐसे में बिना कतार में लगे या फिर अपना समय खर्च किए बिना आसानी से देश में वोटिंग क्यों नहीं की जा सकती है? जब वर्चुअल रैलियां हो रही हैं तो आनलाइन वोटिंग क्यों नहीं हो सकती? दरअसल इंटरनेट के जमाने से पूर्व ही देश में पोस्टल वोटिंग का प्रविधान रहा है। जो लोग सेना में हैं या वोटिंग प्रक्रिया का हिस्सा बनते हैं, वे इस अधिकार का उपयोग करते हैं। पोस्टल वोटिंग और ई-वोटिंग में अंतर केवल इतना है कि पोस्टल वोटिंग में चुनाव तिथि के सात दिन पहले तक वोट भेजने की अनुमति होती है, जबकि ई-वोटिंग में उसी दिन, उसी समय वोटिंग संभव हो जाती है।

वैसे सैद्धांतिक रूप से देखा जाए तो आनलाइन वोटिंग की अवधारणा बहुत लुभावनी लगती है पर भारत जैसे बड़े और विविधता वाले देश में इसकी राह में कई बाधाएं हैं। कुछ तकनीकी और कुछ सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक। चुनावों की सार्थकता तभी है जब वे पूरी तरह निष्पक्ष हों और इस प्रक्रिया में शामिल सभी दलों का इस पर भरोसा हो, पर आनलाइन वोटिंग में इस बात की गारंटी कोई नहीं ले सकता। आनलाइन वोटिंग के लिए कंप्यूटर सिस्टम और एप्लिकेशन की जरूरत होगी जिसमें बग और त्रुटियां हो सकती हंै और जैसे ही यह पूरा सिस्टम इंटरनेट पर आएगा, पूरी दुनिया के भारत विरोधी हैकर सक्रिय हो जाएंगे। इसके अतिरिक्त चुनाव की सुरक्षा के लिहाज से यह भी एक जटिल मुद्दा है कि कोई कंप्यूटर या सिस्टम ऐसा नहीं है जिसे हैक नहीं किया जा सकता।

वोटिंग एक निजी और गुप्त प्रक्रिया मानी जाती है, परंतु आनलाइन वोटिंग में इस पूरी प्रक्रिया को गोपनीय बनाए रखना बड़ी चुनौती है। एक ऐसा देश जहां चुनाव प्रक्रिया में धन और बाहुबल की प्रधानता रहती है, वहां आनलाइन वोटिंग में इसके माध्यम से इसे प्रभावित किया जा सकता है। दूसरी बात यह है कि यदि किन्हीं कारणों से कोई हैकर सिस्टम को हैक कर लेता है तो यह बात सार्वजनिक हो जाने का खतरा बना रहेगा कि किस व्यक्ति ने किस उम्मीदवार या किस पार्टी को वोट दिए हैं तो इससे मतदाता का नाम और उसकी पहचान सार्वजनिक हो जाएगी और इससे उसकी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। इस तथ्य को समझने के लिए अक्सर लोगों के क्रेडिट कार्ड धारक होने और फोन नंबर सार्वजनिक हो जाने की खबरों के माध्यम से समझा जा सकता है। आनलाइन वोटिंग में इस बात की गारंटी नहीं ली जा सकती कि मतदाताओं की पहचान गुप्त रखी जाएगी।

तीसरी और मुख्य बात यह कि इंटरनेट का विस्तार भले ही लगभग पूरे देश में हो गया है, लेकिन इसकी अच्छी स्पीड और भरोसेमंद सेवा हर जगह उपलब्ध नहीं है। आबादी के एक बड़े तबके के पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है। बच्चों की आनलाइन कक्षाओं के दौरान यह समस्या देश भर में देखी गई। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा शिक्षा पर किए गए शोध से प्राप्त आंकड़ों के हिसाब से देश में केवल 27 प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं जिनमें किसी एक सदस्य के पास इंटरनेट की सुविधा है। किसी व्यक्ति के पास मोबाइल फोन का होना 'डिजिटल होने का प्रमाण नहीं है। यहां तक कि यदि कोई व्यक्ति स्मार्टफोन का उपयोगकर्ता है, तो भी वह स्वयं को 'डिजिटल सेवी नहीं कह सकता है, जब तक कि उसके पास इंटरनेट कनेक्टिविटी न हो और वह इंटरनेट पर सामयिक और प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करना न जानता हो।


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