प्रौद्योगिकी

2000 रुपये के नोट वापसी का न जीडीपी पर असर होगा, न आम जनता पर

HARRY
21 May 2023 2:57 PM GMT
2000 रुपये के नोट वापसी का न जीडीपी पर असर होगा, न आम जनता पर
x
कुल प्रचलित मुद्रा पर कोई खास असर नहीं आएगा।
2000 के नोट वापसी का न तो जीडीपी पर असर पड़ेगा और न ही आम लोगों पर। पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने शनिवार को कहा कि पिछले पांच-छह वर्षों में डिजिटल भुगतान बढ़ने की वजह 2000 का नोट वापस लेने से कुल प्रचलित मुद्रा पर कोई खास असर नहीं आएगा। इसलिए इसका मौद्रिक नीति पर भी कोई प्रभाव नहीं होगा। उन्होंने कहा, न तो यह भारत की आर्थिक और वित्तीय प्रणाली पर कोई असर डालेगा और न ही सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि या जनकल्याण पर कोई प्रभाव पड़ने वाला है।
नोटबंदी के बाद जब फिर से मुद्रा की छपाई हो रही थी, उस समय गर्ग आर्थिक मामलों के सचिव थे और सिक्का और मुद्रा प्रभाग के प्रभारी थे। उनका कहना है कि सरकार ने संभवत: तात्कालिक जरूरतों को देखते हुए ही 2000 रुपये के नोट छापने का फैसला किया था। बाद में चरणबद्ध तरीके से इसे घटाने का फैसला कर लिया गया था। जुलाई-अगस्त 2017 में 2000 के प्रचलन में रहने नोटों का कुल मूल्य 7 लाख करोड़ था।
छोटी मुद्रा से हो जाएगी भरपाई...
अर्थव्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि जितने नोट वापस आएंगे, उनके एवज में छोटे नोट बाजार में आ जाएंगे या फिर इतनी रकम बैंक खातों में जमा हो जाएगी। यह कदम उठाने की सबसे बड़ी वजह अवैध लेन-देन पर शिकंजा कसना है। -अरविंद पनगढ़िया, पूर्व उपाध्यक्ष, नीति आयोग
आम लोग नहीं करते इन नोटों का ज्यादा इस्तेमाल
लंदन। पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा कि 2000 के नोट आम लोगों के सामान्य लेन-देन में बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं होते थे। इन नोटों का कुल मूल्य प्रचलित मुद्रा का 10 फीसदी ही था। इसलिए इसका आम लोगों पर असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर कुल मुद्रा के संदर्भ में बात करें तो अगले तीन सालों में कुल लेन-देन में डिजिटल लेन-देन की हिस्सेदारी बढ़कर 65 फीसदी तक पहुंच जाएगी।
आम आदमी का सवाल...किस पर क्या पड़ेगा प्रभाव
आर्थिक विकास पर क्या असर होगा
एलएंडटी फाइनेंस होल्डिंग्स समूह में मुख्य अर्थशास्त्री रूपा रेगे नित्सुरे के मुताबिक, ताजा कदम से आर्थिक विकास पर व्यवधान उत्पन्न नहीं होगा, क्योंकि छोटे नोट पर्याप्त मात्रा में हैं। 6-7 सालों में डिजिटल लेन-देन बढ़ने की वजह से किसी तरह की मुश्किल होने की गुंजाइश नहीं है।
क्वांट इको रिसर्च की अर्थशास्त्री युविका सिंघल का मानना है, कृषि और निर्माण जैसे छोटे व्यवसायों और उन क्षेत्रों में असुविधा हो सकती है, जिनमें ज्यादातर नकदी का इस्तेमाल किया जाता है। बैंक के बजाए अपने पास ही ज्यादा मुद्रा रखने वाले लोग जरूर सोने या ऐसी अन्य चीजें खरीदकर रखने को तरजीह दे सकते हैं।
Next Story