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चिकित्सा पद्धतियों के बीच सामंजस्य जरूरी

HARRY
19 Jun 2023 6:09 PM GMT
चिकित्सा पद्धतियों के बीच सामंजस्य जरूरी
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | देहरादून में अमर उजाला संवाद कार्यक्रम में पतंजलि आयुर्वेदा लिमिटेड के चेयरमैन आचार्य बालकृष्ण भी शामिल हुए। इस दौरान उन्होंने आयुर्वेद और एलोपैथी जैसी चिकित्सा पद्धतियों पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि चिकित्सा पद्धतियों के बीच सामंजस्य होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि हम सभी को इतना आयुर्वेद जरूर जानना चाहिए कि छोटी बीमारियां होने पर हम अपने लिए कुछ सरल उपाय और समाधान खोज सकें। ये हैं आचार्य बालकृष्ण की बातचीत के प्रमुख अंश-

आचार्य बालकृष्ण: मेरी मां जड़ी-बूटी की ज्ञाता रही। बचपन में कोई कष्ट परेशानी होती थी, तब माताजी की बहुत सारी कसैली दवाओं का हमने स्वाद लिया। आयुर्वेद हमारे ऋषियों की परंपरा है। हमारी परंपरा में कमोबेश हम सब आयुर्वेद से जुड़े हैं। इसलिए हमारे देश में दादी-नानी के नुस्खों की बात की जाती है। हर व्यक्ति आयुर्वेद के बारे में कुछ न कुछ जानता है। यह ऐसा समुद्र है जिसमें छोटे से छोटे बच्चा भी उसके किनारे पर खेल सकता है। सर्दी-जुकाम में हम काढ़ा पीने की बात करते हैं। शरीर में दर्द हो तो हल्दी में दूध की बात की जाती है। यह सब हम जीवन में करते तो रहते हैं, उसका बोध नहीं होता तो प्रवृत्ति कम बनती है। इतना तो आयुर्वेद जरूर जानना चाहिए कि छोटी बीमारियां होने पर अपने लिए कुछ सरल उपाय और समाधान खोज सकें।

आचार्य बालकृष्ण: हमारी अज्ञानता हो सकती है। लेकिन आयुर्वेद में भी इलाज है। कोरोना के समय जब सारी दुनिया के अंदर हाहाकार मचा, तब आयुर्वेद लोगों के लिए आशा की किरण बनकर सामने आया और कोरोनिल जैसी औषधि बनी। दुनिया के तमाम देशों में इस औषधि ने तहलका मचाया और कवर पेज पर स्थान पाया। रिसर्च पेपर में भी स्थान पाया। आयुर्वेद की शक्ति को दुनिया तक पहुंचाने की जरूरत है। आयुर्वेद पर भरोसा दिलाने वाले कामों में तमाम सरकारी संस्थाओं का योगदान 30 फीसदी है, पतंजलि का काम 70 फीसदी है। हमने विघ्नों में भी काम किया है। हम यही चाहते हैं कि हम अच्छा काम करें तो विघ्न न डालें। जड़ी-बूटियों की बात करें तो उत्तराखंड में 16 लाख टन हर्बल उत्पादन होता है। इससे ज्यादा की खरीद अकेले पतंजलि करता है।

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