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अंतरिक्ष जल्द ही हादसों की जगह बन सकता है, लेने होंगे कड़े फैसले
आज धरती पर हालात सामान्य जरूर हैं लेकिन अंतरिक्ष में अमेरिका और चीन समेत कई देशों के टकराने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसा लग रहा है कि अंतरिक्ष हादसों का हॉटस्पॉट या युद्ध की जगह बन सकता है। यह कोई कल्पना नहीं है बल्कि हकीकत में पिछले एक दो महीनों में ऐसी परिस्थितियां बन रही हैं, जब अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन, चीनी स्पेस स्टेशन और सैटेलाइट आमने-सामने आ गए। आपात उपाय कर स्पेस स्टेशनों की लोकेशन बदलकर इन्हें बचाया गया, वरना कुछ भी हो सकता था। जैसा कि इस साल सितंबर में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन मलबे से टकराने से बचा था। मलबे के टकराव से बचाव के लिए अंतरिक्ष स्टेशन की कक्षा को रूसी और अमेरिकी उड़ान नियंत्रकों ने ढाई मिनट के ऑपरेशन के दौरान दूसरी जगह आगे बढ़ाकर समायोजित किया था। तब जाकर हादसे से बचा जा सका। नासा ने बताया कि मलबा अंतरिक्ष स्टेशन से 1.4 किलोमीटर यानी करीब एक मील की दूरी से गुजरा। जिस मलबे से अंतरिक्ष स्टेशन को खतरा था, वह जापानी रॉकेट का एक टुकड़ा था, जो 2018 में अंतरिक्ष में भेजा गया था। जापानी रॉकेट पिछले साल 77 अलग-अलग हिस्सों में टूट गया था।
लेकिन सबसे ताजा मामला चीनी स्पेस स्टेशन और अमेरिकी सैटेलाइट के टकराने से बाल-बाल बचने का सामने आया है। यह सैटेलाइट अमेरिकी उद्योगपति और टेस्ला के मालिक एलन मस्क का है। चीन ने संयुक्त राष्ट्र में दिसंबर के शुरुआत में दर्ज कराई शिकायत में कहा कि मस्क के स्टारलिंक प्रोग्राम का सैटेलाइट चीनी स्पेस स्टेशन से टकराने वाला था। स्पेस स्टेशन और सैटेलाइट की यह भिड़ंत एक बार 1 जुलाई को और दूसरी बार 21 अक्टूबर को टली। चीन ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि वो एलन मस्क को आउटर स्पेस ट्रीटी के बारे में बताएं और इसका पालन करने के लिए मजबूर करें। उल्लेखनीय है कि यह संधि पृथ्वी के वायुमंडल में दुनिया का पहला सेटेलाइट लॉन्च होने के पूरे 10 साल बाद साल 1967 में हुई थी। संयुक्त राष्ट्र ने कुछ देशों के साथ मिलकर यह संधि बनाई, ताकि कोई भी देश अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों से दुनिया को नुकसान न पहुंचाए। लेकिन हकीकत यही है कि आज 54 साल के बाद भी इस संधि को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा। जिस समय संधि अमल में लाई गई थी, तब पृथ्वी के वायुमंडल में पचास से भी कम सेटेलाइट्स मौजूद थे। लेकिन आज अंतरिक्ष में एक्टिव सेटेलाइट्स की संख्या तीस हजार के पार हो चुकी है। इसके अलावा तीन हजार सेटेलाइट्स ऐसे हैं, जिन्होंने काम करना बन्द कर दिया है। इन सेटेलाइट्स के टुकड़े और दूसरा कचरा अंतरिक्ष में तैर रहा है। एक अनुमान के मुताबिक अब भी पृथ्वी के वायुमंडल में 12 करोड़ 80 लाख टुकड़े नष्ट हो चुके सेटेलाइट्स के हैं, इनमें 34 हजार टुकड़े ऐसे हैं, जो चार इंच से बड़े हैं।
मौजूदा वक्त में एक अनुमान के मुताबिक दुनिया की चार बड़ी प्राइवेट स्पेस कंपनियां स्पेस-एक्स, जेफ बेजॉस की ब्ल्यू ऑरिजिन, वनवेब और स्टारनेट केवल इसी दशक में 65 हजार नए सेटेलाइट्स अंतरिक्ष में लॉन्च करेंगी। जबकि इसी दौरान पूरी दुनिया में कुल मिलाकर एक से दो लाख सेटेलाइट्स अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे। ऐसी स्थिति में दो या उससे ज्यादा सेटेलाइट्स के बीच टक्कर का खतरा बढ़ जाएगा। इस बीच आशंका इस बात को लेकर जताई जा रही है कि दुनिया कैसलर सिंड्रोम के चक्रव्यूह में फंस सकती है। कैसलर सिंड्रोम उस प्रक्रिया को दिया जाने वाला नाम है, जब दो सैटेलाइट्स के आपस में टकराव होता है तब इन सैटेलाइट्स के जो टुकड़े होंगे, वे दूसरी सेटेलाइट्स से टकरा कर उन्हें तबाह कर देंगे। फिर ये टुकड़े बाकी के सेटेलाइट्स को क्षतिग्रस्त कर देंगे और इस तरह अंतरिक्ष में एक दिन एक भी सेटेलाइट नहीं बचेगा। अगर ऐसा हुआ तो पृथ्वी के वायुमंडल में सेटेलाइट्स ना रहने से पूरी दुनिया का इंटरनेट बंद हो जाएगा।
संचार के लगभग सभी माध्यम ठप हो जाएंगे। इसके अलावा, अंतरिक्ष में बेतहाशा बढ़ते ट्रैफिक के चलते आने वाले समय में किसी भी देश के लिए नए सेटेलाइट को पृथ्वी से लॉन्च करना भी मुश्किल हो जाएगा। यह सही है कि इसका खामियाजा न केवल बड़े देश बल्कि पुरी दुनिया को भुगतना पड़ेगा। मौजूदा वक्त में स्पेस के कचरे को लेकर किसी एक देश को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। सरकारों से लेकर कमर्शल और सिविल कंपनियों ने इसमें भूमिका निभाई है। आज आवश्यकता इसकी है कि अंतरिक्ष में टक्कर के खतरे को कम करने के लिए गाइडलाइन्स का पालन करना होगा। स्पेस में स्थिति की समझ को बेहतर बनाना होगा साथ ही सैटलाइट कंपनियों के बीच डेटा शेयर करना होगा। जिससे कि अंतरिक्ष में टकराव की किसी भी प्रकार की अप्रत्याशित घटना से बचा जा सकें।
मौजूदा वक्त में एक अनुमान के मुताबिक दुनिया की चार बड़ी प्राइवेट स्पेस कंपनियां स्पेस-एक्स, जेफ बेजॉस की ब्ल्यू ऑरिजिन, वनवेब और स्टारनेट केवल इसी दशक में 65 हजार नए सेटेलाइट्स अंतरिक्ष में लॉन्च करेंगी। जबकि इसी दौरान पूरी दुनिया में कुल मिलाकर एक से दो लाख सेटेलाइट्स अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे। ऐसी स्थिति में दो या उससे ज्यादा सेटेलाइट्स के बीच टक्कर का खतरा बढ़ जाएगा। इस बीच आशंका इस बात को लेकर जताई जा रही है कि दुनिया कैसलर सिंड्रोम के चक्रव्यूह में फंस सकती है। कैसलर सिंड्रोम उस प्रक्रिया को दिया जाने वाला नाम है, जब दो सैटेलाइट्स के आपस में टकराव होता है तब इन सैटेलाइट्स के जो टुकड़े होंगे, वे दूसरी सेटेलाइट्स से टकरा कर उन्हें तबाह कर देंगे।