प्रौद्योगिकी

पपीते की खेती को कर सकता है बर्बाद करता है बरसात का पानी किसान ऐसे रखें ध्यान

Gulabi
21 July 2021 11:32 AM GMT
पपीते की खेती को कर सकता है बर्बाद करता है बरसात का पानी किसान ऐसे रखें ध्यान
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देश के कई हिस्से इन दिनों मॉनसून की बारिश की चपेट में हैं

देश के कई हिस्से इन दिनों मॉनसून की बारिश की चपेट में हैं. ऐसे में पपीता की खेती करने वाले किसान सावधान रहें. इस मौसम में लगने वाली बीमारियों के कारण न तो पौधे का सही विकास हो पाता है और न ही फल का. ऐसे में वैज्ञानिक विधि से पपीते की फसल का खयाल रखना जरूरी है ताकि आपकी कमाई में कमी न आए. सरकारी आंकडों के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर पपीता 138 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है, जिससे कुल 5989 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है. पपीता की राष्ट्रीय उत्पादकता 43.30 टन /हेक्टेयर है.


डॉक्टर एसके सिंह बताते हैं कि पपीता को विभिन्न बीमारियों से बचाव करने की जो तकनीक अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना एवं डॉ राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा ने विकसित की है, उसी के अनुसार पपीता की खड़ी फसल में इस मौसम में विभिन्न विषाणु एवं फफूंद जनित बीमारियों को रोकने का उपाय करना चाहिए. बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल सहित कई प्रदेश में इसकी खेती करने वाले किसानों को बारिश के मौसम में ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.
इन बातों का ध्यान रखना जरूरी
इस संबंध में डॉ एसके सिंह किसानों के लिए कुछ सुझाव दे रहे हैं। अगर इस तरीके को अपनाकर पपीते की फसल की देखरेख की गई तो किसान नुकसान से बच जाएंगे। आइए जानते हैं डॉ एसके सिंह के सुझावों के बारे में…

1. इस समय बरसात हो रही है. ऐसे में पपीता को पानी से बचाना अत्यावश्यक है. यदि पपीता के खेत में 24 घंटे पानी रुक गया तो पपीता के पौधे पर इसका सबसे बुरा असर होता है. जल जमाम में नुकसान से बचने के लिए इस समय पपीता के आसपास 4-5 इंच ऊंचा घेरा बना देना चाहिए.

2. पपीता को पपाया रिंग स्पॉट विषाणु रोग से बचाने के लिए आवश्यक है कि 2 प्रतिशत नीम के तेल, जिसमें 0.5 मिली /लीटर स्टीकर मिला कर एक-एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवें महीने तक करना चाहिए.

3. उच्च क्वालिटी के फल एवं पपीता के पौधों में रोगरोधी गुण पैदा करने के लिए आवश्यक है कि यूरिया 5 ग्राम, जिंक सल्फेट 04 ग्राम, बोरान 04 ग्राम /लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर छिड़काव आठवें महीने तक करना चाहिए.

4. इस मौसम में पपीता की सबसे घातक बीमारी जड़ गलन के प्रबंधन के लिए आवश्यक है कि क्साकोनाजोल 2 मिली दवा / लीटर पानी में घोलकर एक एक महीने के अंतर पर मिट्टी को खूब अच्छी तरह से भीगा दिया जाय. यह कार्य आठवें महीने तक करना चाहिए और मिट्टी को उपरोक्त घोल से भिंगोते रहना चाहिए. एक बड़े पौधे के लिए में 5-6 लीटर दवा की घोल की आवश्यकता होती है.

मॉनसून की बारिश में पपीता को बचाना बहुत जरूरी है. सही देखभाल से ही पूरे साल इसमें फल भी लगेगा और किसानों को फायदा होगा. इसके कारण देश के कुछ हिस्से में बहुत बेहतरीन फसल होती है जबकि बाढ़ और जल जमाव वाले हिस्से में इसकी खेती नहीं हो पाती है.
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