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बदलते वक्त के साथ खेती का स्वरूप बदल रहा है. इसे मुनाफे का का बिजनेस बनाने के लिए कई प्रयोग किये जा रहे हैं.
बदलते वक्त के साथ खेती का स्वरूप बदल रहा है. इसे मुनाफे का का बिजनेस बनाने के लिए कई प्रयोग किये जा रहे हैं. साथ ही यह भी कोशिश की जा रही है कि खेत से हमें केमिकल फ्री और पौष्टिक आहार मिले. इसके लिए ऑर्गेनिक खेती की ओर फिर से किसान जा रहे हैं. यह खेती करने की प्राकृतिक पद्धति है. इसमें खेती के लिए सिर्फ उन चीजों का इस्तेमाल होता है जो प्राकृतिक तौर पर उपलब्ध हैं. इसी का एक अंग है गौ आधारित खेती या अमृत जल कृषि पद्धित.
कैसे होती है गौ आधारित खेती
झारखंड में इस खते की सफल प्रयोग आरएन विश्वास ने किया था, जो पेशे से शिक्षक हैं. इसके बाद उनके बेटे डॉ सिद्धार्थ विश्वास ने इसमें और नये प्रयोग किये. डॉ सिद्धार्थ विश्वास सरायकेला में आईसीएमआर को नोडल ऑफिसर है. वो बताते हैं कि यहा पद्धति कोई नई नहीं है. यह हमारे देश की ही अपनी पुरानी पद्धति है. जिसे लोग भूल चुके हैं. बस अब फिर से हमें उस ओर लौटना है. इसमें आधुनिक रिसर्च और तकनीक को मिला कर हम अमृत जल कृषि को बेहतर बना सकते हैं. इसके अनेक फायदे होंगे. गौ आधारित खेती में सिर्फ गाय का गोबर, गोमूत्र और गुड़ का इस्तेमाल किया जाता है. इन तीनों के मिश्रण को पानी में मिलाया जाता है इसे अमृत जल कहते हैं.
अमृत जल कृषि के फायदे
इस खेती में भोजन की पौष्टिकता बनी रहती है. हम जो भी खाते हैं उसमे प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते हैं. क्योंकि अमृत जल कृषि में सबसे मिट्टी में सारे पोषक तत्व प्राकृतिक रुप से बनते हैं. साथ ही जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा बढ़ती है तो उपज भी अच्छी होती है. इस पद्धति में सिर्फ देसी बीज का ही इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि अगर हाइब्रिड बीज का इस्तेमाल किया जाए तो उसमें रोग और कीट आते हैं. पर देसी बीज में यह समस्या नहीं होती है.
इस तरह से पूरी होगी बढ़ती आबादी की मांग
डॉ सिद्धार्थ अमृत जल कृषि पूरी तरह से कृषि की देसी पद्धति है. जब किसान रासायनिक से इसमें आयेंगे और देसी बीज अपनायएंगे तो उत्पादन में शुरुआत में थोड़ी कमी आयेगी पर फिर उत्पादन सामान्य हो जाएगा. ऐसे में सभी का पेट भरने के लिए फूड हैबिट्स में बदलाव लाना होगा. उदाहरण के लिए लोग चावल के साथ दाल सब्जी और सलाद भी खाएंगे तो इस तरह से चावल की खपत कम हो जाएगी. इसी तरह से पूरी आबादी को पौष्टिक भोजन भी मिल जाएगा.
किसानों के लिए कितना फायदेमंद
यह किसानों के लिए काफी फायदेमंद है क्योंकि इस पद्धति नें किसानों की खेती की लागत बेहद कम हो जाएगी. क्योंकि गोबर गोमूत्र उन्हें घर से ही मिल जाएगा. बीज घर से ही मिल जाएगा. सिर्फ गुड़ बाहर से खरीदना पड़ेगा. डॉ सिद्धार्थ ने बताया कि इस पद्धति से खेती करने पर 50 डिसमिल जमीन में किसानों को छह महीने में 1200 रुपए खर्च आयेगा. जबकि मुनाफा इससे कई गुणा अधिक होगा. क्योंकि उनके उत्पाद अच्छे दाम में बिकेंगे. रासायन नहीं होने के कारण विदेशों में भई उनके उत्पाद की मांग होगी.
ऐसे तैयार करें खेत
अमृत जल कृषि में पेड़ों के पत्तों का इस्तेमाल खाद के लिए होता है. पत्तो का बेड बनाकर उनमें अमृत जल का छिड़काव किया जाता है, जिससे पत्ते जल्दी कंपोस्ट बन जाते हैं. इसके साथ ही उनमें ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा भी अधिक रहती है. इसके खेत की मिट्टी में मिलाकर खेती की जाती है. देसी बीज होने के कारण बीमारी की संभावना नहीं होती है. गोमूत्र का एक खास गुण होता है इसके छिड़काव से कीट भाग जाते हैं. फिलहाल बोकारो में 600 एकड़ में दिव्यार्थी संस्था द्वारा अमृत जल कृषि पद्धति से धान की खेती की गयी है. इसके अलावा बाकि जगहों पर भी सब्जियों को लेकर प्रयोग किये जा रहे हैं.
झारखंड में इसकी है बेहतर संभावनाएं
दिव्यार्थी संस्था के एके सिन्हा बताते हैं कि झारखंड में अमृत जल कृषि की असीम संभावनाएं हैं क्योंकि पंजाब हरियाणा की तरह यहा की मिट्टी में बेतहाशा रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं किया गया है. उन्होंने कहा कि अमृत जल कृषि मॉडल पर वो लगातार काम कर रहे हैं. कई जगहों पर डेमो प्रोजेक्ट के तौर पर काम हो रहा है. जिसके परिणाम सकारात्मक आ रहे हैं.
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