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इतना आसान नही है भारत में 5जी की राह, कई चुनौतियां है सामने
हाल ही में दूरसंचार विभाग (डीओटी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि इसी साल मई तक भारत में लंबे समय से प्रतीक्षित 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी हो सकती है. इसी के मद्देनजर यह कहा जा रहा है कि अगर दूरसंचार विभाग और टेलीकॉम कंपनियां 5जी स्पेक्ट्रम के नीलामी की प्रक्रिया को बगैर किसी विवाद के पूरी कर सकीं तो देश में 5जी तकनीक का इस्तेमाल इसी साल से कुछ क्षेत्रों और संस्थानों में शुरू कर दिया जाएगा. इसकी झलक सरकार द्वारा उठाए गए कुछ हालिया कदमों से भी मिलती है.
कोविड-19 महामारी के दौरान ही दुनिया के कई देशों में 5जी ने अपनी पहुँच बना ली है. अगर सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ तो जल्द ही हमारे यहाँ भी 5जी तकनीक एक हकीकत का रूप अख़्तियार कर सकती है. लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि भारत में 5जी की राह कई तरह की मुश्किलों से भरी हुई है, जिसमें आर्थिक, ढांचागत और व्यावहारिक चुनौतियों के अलावा 5जी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव को लेकर भी आम लोगों में संशय बरकरार है. ऐसे में 5जी को लेकर उपभोक्ताओं में भरोसा और जागरूकता पैदा करना भी एक बड़ी चुनौती है. 5जी का मतलब है फिफ्थ जनरेशन नेटवर्क. इससे पहले 4जी की एलटीई तकनीक ने 2009 में दस्तक दी थी. 4जी नेटवर्क की अधिकतम इंटरनेट डेटा स्पीड अब तक 1 जीबीपीएस (जीबी प्रति सेकंड) रिकॉर्ड की गई है जो '3डी वर्चुअल रियलिटी' को भी संभव बनाता है. 5जी में यह स्पीड 10 से 20 जीबी प्रति सेकेंड तक पहुंच जाएगी. मोटे तौर पर कहें तो 5जी के आने पर हमारे मोबाइल फोन में इंटरनेट 20 से 50 गुना अधिक तेजी से चलने लगेगा. 5जी इंटरनेट से आप एक हाई डेफिनेशन फिल्म को एक सेकेंड से भी कम समय में डाउनलोड कर सकेंगे. हाई बैंड फ्रिक्वेंसी वाले नेटवर्क की सबसे बड़ी खामी यह होती है कि यह स्पीड के मामले में चाहें जितना ही अच्छा हो लेकिन ज्यादा बड़े एरिया को कवर नहीं कर सकता है. इसका कारण यह है कि मिलीमीटर वेव्स दीवारों और शीशों को नहीं भेद सकतीं, जिससे उसकी कवरेज एरिया एकाध किलोमीटर के दायरे में ही सीमित हो जाती हैं. भारत जैसे विशाल देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट हाई बैंड फ्रिक्वेंसी वाले नेटवर्क के जरिए पहुंचाना नामुमकिन है. इसलिए दूरसंचार विभाग एक-दो किलोमीटर के दायरे में हाई बैंड फ्रिक्वेंसी को मुफीद मान रहा है. साथ ही 'लो बैंड' और 'मिड बैंड' के फ्रिक्वेंसी के व्यापक इस्तेमाल की भी वकालत कर रहा है ताकि दूरदराज के ग्रामीण इलाकों को भी सुपरफास्ट 5जी इंटरनेट की सुविधा आसानी से मिल सके.
लो बैंड 5जी 1 गीगाहर्ट्ज से कम फ्रीक्वेंसी पर अधिकतम 250 एमबीपीएस की स्पीड प्रदान करता है. मिड बैंड 5जी 1 से 6 गीगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी पर अधिकतम 900 एमबीपीएस की स्पीड प्रदान करता है. और हाई बैंड फ्रिक्वेंसी के कहने ही क्या! यह 24 से 40 गीगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी पर कम से कम 1 जीबीपीएस स्पीड देता है. 5जी टेक्नोलॉजी अल्ट्रा-लो लेटेंसी पर काम करेगी. लेटेंसी वह वक्त है जो एक डिवाइस से दूसरे डिवाइस में डेटा को भेजने में लगता है. फिलहाल 4जी की लेटेंसी 50 मिलीसेकेंड है, तकनीकी विशेषज्ञों की मानें तो 5जी इसे कम से कम एक मिलीसेकेंड से कम कर देगा. यह वर्चुअल रियलिटी, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, फैक्ट्री रोबोट, ड्राइवरलेस कार, स्मार्ट सिटीज, ऑनलाइन गेमिंग और बहुत तेज कनेक्टिविटी और रियल टाइम अपडेट जैसी गतिविधियों के लिए बेहद कारगर साबित होगा. विशेषज्ञ यह सवाल उठाते हैं कि क्या देश की टेलीकॉम कंपनियां 5जी के लिए तैयार हैं? यह सवाल इस लिहाज से लाजिमी है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में अभी भी 4जी के नेटवर्क और इंटरनेट स्पीड को लेकर उपभोक्ता शिकायत करते नजर आते हैं. देश के बहुत से इलाकों में अभी भी बहुत से लोग 4जी के नाम पर 2जी और 3जी जितनी स्पीड वाले इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. उनके लिए हाई-स्पीड इंटरनेट आज भी एक सपने के जैसा है. वैसे भी इंटरनेट स्पीड के मामले में 139 देशों में भारत 129वें स्थान पर है. भारत में हो सकता है कि 2023 तक 5जी के रोलआउट होने के बाद भी इंटरनेट स्पीड 5जी के नाम पर 4जी और 3जी जैसी ही मिल रही हो?
भारतीय उपमहाद्वीप की विशालता, व्यवस्था, कार्यशैली और समस्याओं के मद्देनजर देश में 5जी की डगर काफी चुनौतीपूर्ण दिखाई देती है. 5जी इंटरनेट चलाने के लिए उपयुक्त इंफ्रास्ट्रक्चर (ऑप्टिक फाइबर केबल, टावर वगैरह) और नए गैजेट्स विकसित करनी पड़ेंगी. फिलहाल बड़े स्तर पर इस्तेमाल किए जा रहे ज़्यादातर हैंडसेट्स 4जी के लिए ही हैं. ऐसे में हैंडसेट्स बनाने वाली कंपनियों को 5जी के अनुकूल हैंडसेट्स और एप्लिकेशंस विकसित करनी पड़ेंगी, जिस पर अभी काम की रफ्तार धीमी है. सवाल यह उठता है कि क्या भारत में महज 12-13 महीनों के भीतर 5जी को रोलआउट करने लायक इंफ्रास्ट्रक्चर और सर्विसेज उपलब्ध हो पाएंगी? गौरतलब है कि इस मामले में 4जी और 3जी को लेकर हमारा पिछला रिकार्ड बेहद खराब रहा है. टेलीकॉम मार्किट में रिलायंस जियो की एंट्री ने टेलीकॉम कंपनियों की सीरत और सूरत बदल कर रख दी है. महंगे स्पेक्ट्रम, अनलिमिटेड वॉयस कॉल और बेहद सस्ते डेटा टैरिफ ने कंपनियों की बैलेंस शीट बिगाड़ दी है. वर्तमान स्थिति में अगर 5जी स्पेक्ट्रम के लिए बोलियां मंगाई गईं तो इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां उसमें हिस्सा कैसे लेंगी? फिलहाल, जियो, एयरटेल जैसी कुछ चुनिंदा इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स पर 5जी का पूरा दारोमदार टिका है, पर इसको लेकर इनकी कितनी तैयारी है? बहरहाल, 5जी नेटवर्क की राह में तकनीकी और नीतिगत चुनौतियों का सामना इन्हीं चुनिंदा कंपनियों को ही करना है.
पिछली दूरसंचार तकनीकों की तुलना में 5जी को लेकर स्वास्थ्य से जुड़ी कई आशंकाएं और कॉन्सपिरेसी-थ्योरिज भी हैं. इसके सेहत पर पड़ने वाले असर, बीमारियों के फैलाव या हवाई यात्राओं पर इसके दुष्प्रभाव को लेकर विरोध, अविश्वास और विवाद की भी अप्रत्याशित चुनौतियां हैं. हालांकि इस बात का अभी तक कोई भी पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिला है जिससे कि यह कहा जा सके कि 5जी इंसानों के लिए नुकसानदेह या खतरनाक है. निश्चित रूप से 5जी के आने से न केवल लोगों को शानदार कनेक्टिविटी मिलेगी, बल्कि जनसंचार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग, कृषि, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, व्यापार, प्रशासन आदि कई क्षेत्र भी व्यापक रूप से लाभान्वित होंगे. मुमकिन है कि अगले एक-डेढ़ सालों में कुछ क्षेत्रों, कंपनियों और संस्थानों में 5जी का कमर्शियल इस्तेमाल प्रायोगिक स्तर पर शुरू हो जाए, लेकिन इसे आम लोगों तक पहुंचाना नामुमकिन तो नहीं लेकिन मुश्किल जरूर है