- Home
- /
- प्रौद्योगिकी
- /
- कितने खतरनाक हैं फेक...
x
केंद्र सरकार ने बंबई उच्च न्यायालय से कहा कि झूठी एवं भ्रामक सूचनाओं में अलगाववादी आंदोलनों को हवा देने और सामाजिक तथा राजनीतिक संघर्ष को तेज करने की क्षमता होती है. सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम में किये गए एक बदलाव के खिलाफ स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा द्वारा दायर की गई याचिका पर जवाब देते हुए यह बात कही.
केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि झूठी खबरें सच्चाई से छह गुना तेज रफ्तार से फैलती हैं, जिस कारण आईटी नियम में संशोधन 2023 करने की जरूरत पड़ी.
हालांकि, मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि ‘फैक्ट चेक’ इकाई केवल सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों से जुड़ी झूठी या भ्रामक जानकारियों को हटाने का निर्देश दे सकती है, न कि किसी कलाकार द्वारा की गई व्याख्या या व्यंग्य को.
कामरा ने अपनी अर्जी में दावा किया है कि नये नियम उनकी सामग्री को मनमाने ढंग से अवरुद्ध किये जाने या उनके सोशल मीडिया खातों को निलंबित या निष्क्रिय किये जाने का कारण बन सकते हैं, जिससे उन्हें पेशेवर रूप से नुकसान पहुंचेगा.
कामरा ने बंबई उच्च न्यायालय से संशोधित नियमों को असंवैधानिक करार देने और सरकार को नियमों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकने के लिए निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है.
इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अपने हलफनामे में जोर देकर कहा कि ‘फैक्ट चेक’ इकाई की भूमिका सिर्फ केंद्र सरकार से जुड़े मामलों तक सीमित है, जिनमें नीतियों, योजनाओं, अधिसूचनाओं, नियमों, नियामकों और कार्यान्वयन आदि से संबंधित सूचनाएं शामिल हैं.
मंत्रालय ने कहा, फैक्ट चेक इकाई सिर्फ फर्जी, झूठी और भ्रामक सूचनाओं की पहचान करेगी, न कि किसी मत, व्यंग्य या कलाकार द्वारा की गई व्याख्या की. इसलिए, संबंधित प्रावधान लाने का सरकार का उद्देश्य पूरी तरह से स्पष्ट है और यह कोई मनमानी नहीं है, जैसा कि याचिकाकर्ता (कामरा) द्वारा आरोप लगाया गया है.
मंत्रालय ने दावा किया कि झूठी और भ्रामक सूचनाएं कई मायनों में चुनावी लोकतंत्र, अर्थव्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं तथा उन्हें गंभीर व दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकती हैं.
इसने कहा कि झूठी और भ्रामक सूचनाओं में अलगाववादी आंदोलनों को हवा देने, सामाजिक तथा राजनीतिक संघर्ष को तेज करने और लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनता का विश्वास कमजोर करने की क्षमता होती है.
मंत्रालय ने कहा कि जनहित से जुड़े मामलों में, सोशल मीडिया मंचों पर भ्रामक सामग्री हकीकत के बारे में नागरिकों की धारणा को प्रभावित करती है और लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार के कार्यों और इरादों के बारे में संदेह पैदा करती है.
मंत्रालय की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि सरकारी कामकाज के संबंध में जनता को सही जानकारी उपलब्ध हो, यह सुनिश्चित करने के केंद्र के प्रयास के संदर्भ में, इस बात को जानना महत्वपूर्ण है कि जो जानकारी गलत (या नकली) और भ्रामक है, वह तथ्यात्मक रूप से सही जानकारी के मुकाबले कई गुना तेजी से फैलती है.
हलफनामे में एक अध्ययन का हवाला दिया गया है, जिससे पता चला था कि ट्विटर पर सच्ची खबरों के मुकाबले फर्जी सूचनाओं को री-ट्वीट किये जाने की संभावना 70 फीसदी अधिक होती है और झूठी खबरें 1,500 लोगों तक सच्चाई से छह गुना तेज रफ्तार से पहुंचती हैं.
केंद्र सरकार ने कहा कि भारत में प्रमुख सोशल मीडिया मंचों पर उपयोग की जाने वाली अधिकांश समाचार-संबंधी सामग्री आम उपयोगकर्ताओं द्वारा तैयार की गई होती है, जिनके पास सामग्री को प्रकाशित करने या अन्य उपयोगकर्ताओं के साथ साझा करने से पहले उसे सत्यापित करने की पर्याप्त क्षमता, संसाधन और समय का अभाव हो सकता है.
सरकार ने कहा कि फर्जी और झूठी खबरें ‘भीड़ हिंसा’ को हवा दे सकती हैं, जो ”धीरे-धीरे टाइफन जैसे राक्षस का आकार ले सकती है.” इसने कहा कि संशोधित नियम ‘जनता के हित’ में हैं और एक लक्ष्य-आधारित तथ्य-जांच प्रणाली प्रदान करते हैं.
हलफनामे में कहा गया है कि सरकार ने ‘फैक्ट चेक’ इकाई को अभी अधिसूचित नहीं किया है, लिहाजा याचिका में उसकी कार्य पद्धति के संबंध में दी गई किसी भी दलील का कोई आधार नहीं है और यह ”समय से पहले और याचिकाकर्ता की गलत धारणाओं के तहत” दी गई है.
उच्च न्यायालय मामले में अगली सुनवाई सोमवार को करेगा. केंद्र सरकार ने छह अप्रैल को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 में कुछ संशोधन किये थे.
संशोधनों के तहत, सरकार ने इससे संबंधित फर्जी, झूठी और भ्रामक ऑनलाइन सामग्री की पहचान के लिए एक ‘फैक्ट चेक’ इकाई के गठन का प्रावधान किया है.
Next Story