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चौ.चरण सिंह विवि: छात्रा को मातृत्व अवकाश देने से इनकार का आदेश खारिज

HARRY
30 May 2023 5:30 PM GMT
चौ.चरण सिंह विवि: छात्रा को मातृत्व अवकाश देने से इनकार का आदेश खारिज
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हाईकोर्ट ने कही ये बातें

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि भारतीय संविधान अपने नागरिकों के लिए एक समतावादी समाज की परिकल्पना करता है, जिन्हें शिक्षा के अधिकार और प्रजनन स्वायत्तता के अधिकार के बीच चयन करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। इस अहम टिप्पणी के साथ ही कोर्ट ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि एमएड की एक छात्रा को मातृत्व अवकाश का लाभ देने और परीक्षा में बैठने की अनुमति देने पर विचार करे। अदालत ने चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय द्वारा उसके एम.एड छात्र को मातृत्व अवकाश देने से इनकार करने के आदेश को खारिज करते हुए यह अवलोकन किया।

न्यायमूर्ति पुरुषेन्द्र कुमार कौरव ने हाल ही में एक एमएड छात्रा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान ने एक समतावादी समाज की परिकल्पना की है, जिसमें नागरिक अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि बच्चे पैदा करना एक महिला की निजता, गरिमा और शारीरिक अखंडता के अधिकार में निहित हैं और कार्यस्थल पर मातृत्व अवकाश का लाभ उठाने का महिलाओं का अधिकार जीने के अधिकार का एक अभिन्न पहलू है।

क्या है पूरा मामला

महिला याचिकाकर्ता ने दिसंबर, 2021 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में दो साल के एमएड के लिए नामांकन कराया था। उसने यूनिवर्सिटी डीन और कुलपति के समक्ष मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया था, जिसे 28 फरवरी को खारिज कर दिया गया। कक्षा में उपस्थिति मानक पूरा करने को आधार बनाकर प्रबंधन ने याचिकाकर्ता को मातृत्व अवकाश का लाभ देने से इंकार कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

यूनिवर्सिटी प्रबंधन का फैसला रद्द

हाईकोर्ट ने यूनिवर्सिटी प्रबंधन का फरवरी 2023 का फैसला रद्द करते हुए कहा कि वह याचिकाकर्ता को 59 दिन के मातृत्व अवकाश का लाभ देने पर विचार किया जाए। साथ ही निर्देश दिया कि अगर इस छुट्टी को समायोजित करने के बाद थ्योरी कक्षाओं में आवश्यक 80 फीसदी उपस्थिति का मानक पूरा होता है तो उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि मातृत्व अवकाश चाहने वालों के हितों का ख्याल रखने के साथ नियमों को पूरा करना भी आवश्यक है।

यह तो नैसर्गिक जरूरत

अदालत ने यह भी कहा कि विभिन्न फैसलों में माना गया है कि कार्यस्थल में मातृत्व अवकाश का लाभ लेना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीने के अधिकार का एक अभिन्न पहलू है। प्रजनन का अधिकार महिलाओं के निजता के अधिकार और उनकी गरिमा से भी जुड़ा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पुरुष तो पिता बनने के साथ भी उच्च शिक्षा जारी रख सकते हैं लेकिन गर्भावस्था के दौरान और उसके बाद की देखभाल महिलाओं की पसंद नहीं बल्कि नैसर्गिक जरूरत है। विश्वविद्यालय के वकील ने इस आधार पर याचिका का विरोध किया कि मातृत्व अवकाश का लाभ उठाने के इच्छुक छात्रों के लिए कोई श्रेणी बनाने का कोई नियामक प्रावधान नहीं है और इस प्रकार वह इसके लिए याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार नहीं कर सकता है।

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