संसाधनों की कमी की वजह से अगर न्यायाधिकरणों का कामकाज बाधित होता है, तो इसे केवल लापरवाही का मामला नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि यह सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति का भी सबूत है।