सम्पादकीय

सुरक्षा में सख्ती

Gulabi
12 Oct 2020 4:23 AM GMT
सुरक्षा में सख्ती
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ह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को सख्त हिदायत दी है कि महिलाओं की सुरक्षा के मामले में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हाथरस की घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को सख्त हिदायत दी है कि महिलाओं की सुरक्षा के मामले में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए। अगर कोई महिला यौन उत्पीड़न का शिकार होती है और मौत से पहले कोई बयान देती है, तो उसके कथन को इस आधार पर कतई नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि उसने किसी पुलिस अफसर या मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया या नहीं।

दुष्कर्म की शिकार महिला की चौबीस घंटे के भीतर चिकित्सीय जांच और दो महीने के भीतर उस मामले की जांच पूरी होनी चाहिए। ऐसे मामलों में अगर कोई अधिकारी लापरवाही बरतता है, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित होनी चाहिए। शायद इससे राज्यों की पुलिस में कुछ मुस्तैदी आए।

हालांकि यौन अपराध के मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय की यह पहली सख्त हिदायत नहीं है। दिल्ली में निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा संबंधी कानूनों में बदलाव कर उन्हें काफी कड़ा बनाया गया, ऐसे मामलों में पुलिस की जवाबदेही भी सुनिश्चित की गई। मगर स्थिति यह है कि उसके बाद से महिलाओं के प्रति हिंसा और यौन दुर्व्यवहार की घटनाएं कम होने के बजाय लगातार बढ़ती गई हैं। इस बीच ऐसी अनेक घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें बलात्कार के बाद पीड़िता की बर्बरता से हत्या कर दी गई।

हाथरस मामले को लेकर ऐसी घटनाओं के खिलाफ एक बार फिर इसलिए लोगों का आक्रोश फूटा है कि उसमें खुद पुलिस ने मामले पर परदा डालने का प्रयास किया। पहले तो पीड़िता की प्राथमिकी दर्ज करने में देर की गई। फिर उसकी चिकित्सीय जांच करने में करीब एक हफ्ता जाया कर दिया गया। उसके बयान को विधिसम्मत नहीं माना गया।

फिर जब दिल्ली के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया तो उसका शव परिजनों को सौंपने के बजाय पुलिस ने रात के अंधेरे में खुद उसे जला दिया। उसके बाद उसके साथ हुए यौन अपराध और अपनी लापरवाहियों, पक्षपातपूर्ण रवैए को ढंकने के लिए वह तरह-तरह की कहानियां गढ़ती और प्रचारित करती रही। इससे उत्तर प्रदेश पुलिस का चिंतित करने वाला अमानवीय चेहरा उजागर हुआ।

हालांकि महिलाओं के प्रति यौन दुराचार के मामले में दूसरे राज्यों की स्थिति भी कोई संतोषजनक नहीं है, पर उत्तर प्रदेश में जिस तरह लगातार ऐसे मामले बढ़ रहे हैं और उन्हें रोकने में पुलिस नाकाम साबित हो रही है, उससे कई गंभीर सवाल उठे हैं।

यौन दुराचार और फिर हत्या के मामलों में ज्यादातर समाज के निचले तबके की महिलाएं शिकार बनती देखी जा रही हैं। उनमें ऐसी घटनाओं में दबंग कही जाने वाली जातियों के लोगों पर आरोप अधिक लगते रहे हैं। फिर ऐसे मामलों को सुलझाने या कार्रवाई करने में पुलिस की मानसिकता पर सवाल लंबे समय से उठते रहे हैं।

आरोप है कि चूंकि पुलिस महकमे में भी अधिकतर सवर्ण और ऊंची कही जाने वाली जतियों के अधिकारी और कर्मी अधिक हैं, इसलिए जब किसी ऊंची जाति के या दबंग और रसूख वाले व्याक्ति पर किसी नीची कही जाने वाली जाति की महिला पर दुराचार का आरोप लगता है, तो पुलिस उस मामले को किसी भी तरह रफा-दफा करने में जुट जाती है। पहले तो प्राथमिकी दर्ज करने, चिकित्सीय जांच कराने आदि में देर की जाती है, ताकि साक्ष्य मिट जाएं। उसके बाद भी दबाव डाल कर पीड़िता या उसके परिवार के लोगों को मामला वापस लेने को कहा जाता है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के ताजा निर्देश से पुलिस की यह मानसिकता शायद ही बदल पाएगी।

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