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ब्रह्मदीप अलूने: श्रीलंका का संकट नव उपनिवेशवाद की चुनौतियों को सामने लाने वाला है, जिसमें गरीब देश महाशक्तियों के आर्थिक शिंकजे की दासता में उलझ जाते हैं। इसका प्रभाव उनकी राजनीतिक संप्रभुता पर भी पड़ता है। विकास के नाम पर चीनी कर्ज के कारण श्रीलंका की संप्रभुता पर संकट गहरा गया है।
विकासशील देशों में लोकतांत्रिक प्रणाली की यह लोकप्रिय मान्यता रही है कि जनता करिश्माई नेतृत्व को संपूर्ण सत्ता सौंप कर खुशियां ढंूढ़ती है। आर्थिक-सामाजिक पिछड़ापन, सांस्कृतिक टकराव, राजनीतिक अस्थायित्व और जातीय विविधता तीसरी दुनिया के देशों की बड़ी समस्या रही है। यहां अतिलोकप्रिय नेतृत्व उभरने से अधिनायकवाद के पनपने का खतरा बढ़ जाता है।
भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका अतिराष्ट्रवादी राजपक्षे परिवार के सत्ता पर एकाधिकार बनाए रखने और विपक्ष को दरकिनार करने की सत्तारूढ़ पार्टी की चेष्टा से गहरे संकट में फंस गया है। महंगाई दर में अभूतपूर्व वृद्धि और रोजमर्रा की चीजों के भाव आसमान छूने से लोगों में गुस्सा और हताशा बढ़ गई है। इसकी परिणति आज देश में हिंसा और आगजनी के रूप में सामने आई है। आपातकाल और कर्फ्यू से बेपरवाह लोग हिंसक प्रदर्शनों में शामिल हो रहे हैं। इस प्रकार एक बार फिर श्रीलंका में गृह युद्ध छिड़ने की आशंका गहरा गई है।
दरअसल, तमिलों और धार्मिक अल्पसंख्यकों को दबा कर और सिंहली राष्ट्रवाद को उभार कर सत्ता में जमा बैठा राजपक्षे परिवार काफी समय से लोकतंत्र की मूल मान्यताओं को नजरअंदाज करता रहा है। लोकतंत्र सलाह, समन्वय और सहयोग से मजबूत होता है, जबकि करिश्माई नेतृत्व में आधिपत्यवादी प्रवृति को बढ़ावा मिलने की संभावना बनी रहती है।
राजपक्षे परिवार ने अतिराष्ट्रवाद को राजनीतिक हथियार की तरह प्रयुक्त कर लोगों का भरोसा जीता और बाद में राष्ट्रहित की विपक्षी दलों की सलाह को दरकिनार कर चीन से एकतरफा समझौते कर लिए। इन्हीं समझौतों के कारण देश आर्थिक बदहाली के दुष्चक्र में उलझ गया। श्रीलंका में 2009 में एलटीटीई की समाप्ति से राजपक्षे परिवार की लोकप्रियता में अभूतपूर्व इजाफा हुआ था।
महिंदा राजपक्षे ने सिंहली राष्ट्रवाद को श्रीलंका की अस्मिता से जोड़ कर सत्ता पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली। सिंहली बहुल इस देश में तमिल और भारत विरोध राजपक्षे की प्रमुख नीतियां रहीं और इसका फायदा चीन ने उठाया। राजपक्षे सरकार के चीनी कर्ज और गलत आर्थिक प्रबंधन ने संकट और बढ़ा दिया। इससे देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। इस समय श्रीलंका चीन के भारी कर्ज तले दबा है। ऐसे में यह अंदेशा है कि कर्ज न चुका पाने की स्थिति में चीन श्रीलंका के अधिकांश क्षेत्रों पर कब्जा कर सकता है।
राजपक्षे सरकार देश के आर्थिक माडल को बदल देने की योजनाओं को आगे बढ़ा रही थी। इसी में वह छोटे किसानों के हितों की अनदेखी करके जैविक खेती के चीन के व्यापारिक माडल में उलझ गई। सरकार ने रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे कृषि क्षेत्र पर बुरा असर पड़ा और कृषि अर्थव्यवस्था चौपट होती चली गई।
चीन ने अपनी वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत भी श्रीलंका को अरबों डालर का कर्ज दे रखा है। राजपक्षे परिवार के प्रभाव में संसद ने पोर्ट सिटी इकोनामिक कमीशन बिल भी पारित किया था। यह बिल चीन की वित्तीय मदद से बनने वाले इलाकों को विशेष छूट देता है। विशेष आर्थिक जोन विकसित करने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के नाम पर बनाए गए इन कानूनों को लेकर न तो विपक्षी दलों से बात की गई और न ही देश में आम राय कायम करने की कोशिश की गई। इससे नाराज विपक्षी दलों ने सरकार की नीतियों के खिलाफ किसानों और जनता को लामबंद करना शुरू कर दिया।
राजपक्षे की श्रीलंका फ्रीडम पार्टी को देश में व्यापक जन समर्थन हासिल था। इसका प्रमुख कारण महिंदा राजपक्षे और उनके छोटे भाई गोटभाया की तमिलों के प्रति कड़ी और नफरतभरी नीतियां थीं। बाद में राजपक्षे ने श्रीलंका में सिंहली राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया और इसी के सहारे उन्होंने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। विपक्षी यूनाइटेड नेशनल पार्टी की घटती लोकप्रियता से श्रीलंका में राजपक्षे परिवार मजबूत हो गया और यहीं से पनपा सत्ता का अधिनायकवाद मुल्क की आर्थिक बर्बादी का कारण बन गया।
लोग जब सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने लगे तो सरकार दमन पर उतर आई और इस दमनकारी नीति का असर लोगों के गुस्से के रूप में दिखने लगा। राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की तो इससे पुलिस को बिना वारंट लोगों को हिरासत में लेने और सोशल मीडिया को बंद करने का अधिकार मिल गया। श्रीलंका की बिगड़ती स्थिति का प्रमुख कारण चीन की ऊंची ब्याज दर है। कर्ज लौटाना तो दूर की बात है, ब्याज के भुगतान के लिए भी श्रीलंका को और कर्ज लेना पड़ रहा है। ऐसे में लोक कल्याणकारी योजनाएं बंद हो गई हैं।
यह देखा गया है कि चीन अपनी अंतरराष्ट्रीय विकास परियोजनाओं के लिए जरूरी वित्त ीय प्रतिबद्धताओं के लिए अमेरिका और दुनिया के दूसरे कई प्रमुख देशों की तुलना में लगभग दोगुनी धनराशि खर्च करता है। इनमें से ज्यादातर धनराशि राष्ट्रीय बैंकों से उच्च ब्याज दर के जोखिम पर कर्ज के रूप में ली जाती है। विकास के नाम पर दी जाने वाली इस राशि को लेकर शुरुआत में यह अनुमान लगाना मुश्किल होता है कि कर्ज से उनकी प्रगति किस हद तक प्रभावित होगी।
भारत की तमाम कोशिशों के बाद भी श्रीलंका इस तथ्य को दरकिनार करता रहा है कि भारत से सांस्कृतिक और भौगोलिक निकटता सामरिक दृष्टि से भी उसके लिए ज्यादा असरदार साबित होती है। चीन के गहरे व्यापारिक हित श्रीलंका में है। चीन और श्रीलंका के बीच दक्षिण समुद्री बंदरगाह हंबनटोटा को लेकर अरबों डालर का समझौता भारत की अनदेखी करने की श्रीलंका की नीति के कारण ही हुआ था। श्रीलंका में चीन की अनेक परियोजनाएं चल रही है और उसने श्रीलंका को तकरीबन डेढ़ सौ करोड़ डालर का कर्ज भी दे रखा है। मध्यपूर्व से होने वाले तेल आयात के रूट में श्रीलंका एक अहम पड़ाव है, इसीलिए चीन की यहां निवेश करने में रुचि है।
भारत के लिए श्रीलंका से मजबूत संबंध सामरिक और सांस्कृतिक तौर पर भी बेहद जरूरी हैं। श्रीलंका की अस्थिरता भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी संकट बढ़ा सकती है। वहां रहने वाले तमिलों के भारत से गहरे रिश्ते हैं। वे कई दशकों से श्रीलंका में उत्पीड़न झेलने को मजबूर हैं। श्रीलंका में सिंहल बहुसंख्यकों द्वारा उत्पीड़ित श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी भारत में पनाह के लिए आते हैं और इसका प्रभाव भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु पर पड़ना स्वाभाविक है जो ऐतिहासिक रूप से तमिलों की मातृभूमि समझी जाती है।
श्रीलंका द्वीप का उत्तरी भाग भारत के दक्षिण पूर्वी समुद्र तट से मात्र कुछ किलोमीटर दूर है और तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले से जाफना प्रायद्वीप तक का समुदी सफर छोटी-छोटी नौकाओं में आसानी से प्रतिदिन लोग करते हैं। श्रीलंका की आबादी का लगभग बीस फीसद तमिल हैं और वे भारतीय मूल के हैं। भारत के दक्षिणी तमिलनाडु राज्य से इन तमिलों के रोटी और बेटी के संबंध हैं। भारत श्रीलंका को लेकर मित्रवत व्यवहार करता रहा है और आज भी कर रहा है।
श्रीलंका का संकट नव उपनिवेशवाद की चुनौतियों को सामने लाने वाला है, जिसमें गरीब देश महाशक्तियों के आर्थिक शिंकजे की दासता में उलझ जाते हैं। इसका प्रभाव उनकी राजनीतिक संप्रभुता पर भी पड़ता है। विकास के नाम पर चीनी कर्ज के कारण श्रीलंका की संप्रभुता पर संकट गहरा गया है। फिलहाल इस देश में शांति बहाल करने के लिए वहां सर्वदलीय सरकार के साथ देश के लोकप्रिय क्रिकेटरों, कलाकारों और भारत के सहयोग की दरकार है।