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तैराक वीरधवल खड़े ने राष्ट्रीय खेलों को भारत में अपना आखिरी टूर्नामेंट माना
पणजी। महाराष्ट्र के वीरधवल खड़े ने 37वें राष्ट्रीय खेलों में 50 मीटर फ्रीस्टाइल में मंगलवार को तैराकी का स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया। इस 32 वर्षीय तैराक ने भारत के उभरते हुए तैराकी सनसनी श्रीहरि नटराज को पछाड़ कर चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। उन्होंने जैसे ही दीवार को छुआ वह जोश के साथ हवा में उछल पड़े। उनके जोश और जश्न से यह बिल्कुल साफ था कि स्वर्ण पदक जीतना, उस व्यक्ति के लिए कितना मायने रखता है, जो 2008 ओलंपिक खेलों के लिए क्वालीफाई करने वाले सबसे कम उम्र के भारतीय तैराक बने थे। खड़े ने 2010 एशियाई खेलों में 50 मीटर बटरफ्लाई में कांस्य पदक जीतकर तैराकी में अपने 24 साल के पदक के सूखे को खत्म किया था।
वीर के नाम से मशहूर खड़े ने खुलासा किया कि राष्ट्रीय खेल भारत में उनका आखिरी टूर्नामेंट हो सकता है और वह इसे शानदार प्रदर्शन के साथ खत्म करना चाहते थे।
खड़े ने पदक जीतने के बाद कहा, ” इस पदक की खास बात यह है कि मैंने अपना पहला राष्ट्रीय पदक 2001 में गोवा में जीता था और आज ऐसा महसूस हो रहा है कि गोवा में ही फिर से राष्ट्रीय स्तर पर आखिरी स्वर्ण पदक जीतना, मेरे जीवन का सपना पूरा हो गया है।”
भारत के सबसे प्रतिष्ठित तैराकों में से एक ने कहा, तब, मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि मैं वैसा तैराक बनूंगा जैसा आज हूं, इसलिए मैं वास्तव में सभी कोचों और उन सभी लोगों को धन्यवाद देना चाहता हूं जो इस यात्रा का हिस्सा रहे हैं।
खड़े ने 2001 में मडगांव में जूनियर नेशनल्स में शानदार प्रदर्शन किया था और फिर उन्होंने बाद में कई राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़े। घुटने की चोट के बाद महाराष्ट्र सरकार में उनकी नौकरी की मांग के कारण कोल्हापुर में जन्मे तैराक को अपने अपने करियर के दौरान कुछ साल गंवाने पड़े।
उन्होंने कहा, ”हालांकि, मैंने 2018 में जोरदार वापसी की और टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया।”
2001 में एक प्रतिभाशाली युवा तैराक बनने से लेकर एक अनुभवी तैराक के रूप में गोवा वापस आने तक के अपने सफर के बारे में बात करते हुए खाड़े भावुक हो गए और उन्होंने आगे के अपने प्लान के बार में बताया।
खड़े ने कहा, ” दिल से, तो मैं अभी भी खुद को जवां महसूस करता हूं, लेकिन शरीर अब थका हुआ लगता है। बहुत साल बीत गए और इस दौरान मैं बहुत अधिक तैर चुका हूँ। मैं अब उतनी जल्दी ठीक नहीं हो पाता, जितनी पहले हुआ करता था।”
स्वर्ण पदक विजेता तैराक ने आगे कहा, ” पहले मैं बिना पसीना बहाए 10 इवेंट कर सकता था, लेकिन अब तीन इवेंट भी करना बहुत मुश्किल लगता है। हालांकि, मैं अभी भी दौड़ से पहले होने वाली घबराहट का आनंद लेता हूं। मुझे नहीं लगता कि वह भावना मुझे कभी छोड़ेगी।”
खड़े ने चोट से उबरने के दौरान मुंबई में युवाओं को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा, ” यह भारत में मेरी आखिरी प्रतियोगिता थी। हो सकता है कि आप किसी दिन मुझे फिर से कोच के रूप में देखें, लेकिन निश्चित तौर पर यह यहां मेरी आखिरी प्रतिस्पर्धा थी।”
खड़े का कहना है कि अपने राज्य के लिए पदक जीतना हमेशा उनके दिल के करीब रहेगा।
उन्होंने कहा, ” महाराष्ट्र के लिए पदक जीतना हमेशा खास रहता है। महाराष्ट्र ने मुझे वह बनाया जो मैं हूं। इसने मुझे एक पहचान दी है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैं कहां प्रतिस्पर्धा करता हूं, मैंने हमेशा अपने पीछे घर से करोड़ों लोगों का समर्थन महसूस किया है। हम यहां गोवा में हैं, और अब भी ऐसा लगता है जैसे हम घर पर हैं क्योंकि हम यहां से बहुत करीब हैं।”
एक एथलीट के लिए, अपने करियर को समाप्त करने का सही समय निकालना हमेशा विचार-विमर्श का विषय बना रहता है। जबकि कुछ लोग तब निर्णय लेते हैं जब वे पहले वाले स्तर पर प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं, वहीं कुछ लोग बड़े मंच पर अंतिम सफलता के साथ इसका समापन करना पसंद करते हैं।
खड़े के लिए, अपने सबसे प्रभावशाली आयोजन में अपने ही राष्ट्रीय खेलों के रिकॉर्ड को तोड़कर पदक जीतना शानदार लगता है।